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________________ रहती थी। मृगायोगिनी उस युवा योगिनी को अपनी सहचरी बनाकर दुष्ट योगी के मठ पर पहुंची। उसने अपने वाग्चातुर्य से योगी को इस कदर मोहित बना लिया कि योगी ने उसे अपने समस्त रहस्य बता दिए। मृगायोगिनी ने जान लिया कि उसका पति योगी द्वारा तोता बना दिया गया है और साथ ही यह भी जान लिया कि योगी के प्राण एक भूसे से निर्मित समान रूपाकार वाली आकृति में निहित हैं। अवसर को साधकर मृगायोगिनी ने भूसे की मानवाकृति को मरोड़ दिया। तत्क्षण दुष्ट योगी मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस प्रकार अपने चातुर्य से मृगासुंदरी ने अपने पति और उनकी पत्नी को दुष्टयोगी के बन्धन से मुक्त कराया। सज्ज्न कुमार अपनी अविवाहिता पत्नी मृगासुंदरी की बहादुरी, साहस और बुद्धिमत्ता को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने एक विद्याधरी द्वारा अपने अपहरण की बात मृगासुंदरी को बताई और साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उसकी चारित्रिक सुदृढ़ता से प्रभावित होकर ही विद्याधर ने अपनी पुत्री का पाणिग्रहण उसके साथ कर दिया। फिर जब वह अपने नगर को लौट रहा था तो यहां वीरपुर नगर में उसे और उसकी सद्यपरिणीता पत्नी को दुष्टयोगी द्वारा बन्दी बना लिया गया। सज्जनकुमार का पुण्य प्रकर्ष पर था। उसी दिन उस नगर के निःसंतान राजा का निधन हो गया। परम्परानुसार हथिनी को पुष्पाहार देकर छोड़ा गया। हथिनी ने पुष्पाहार सज्जनकुमार के गले में डाल दिया। सज्जनकुमार राजा बन गया। आखिर कुछ दिन बाद मृगासुंदरी की प्रेरणा से सज्जनकुमार अपने नगर में लौटा। उसने मृगासुंदरी सहित आठों राजकुमारियों से पाणिग्रहण किया। महाराज चन्द्रशेखर सज्जनकुमार को राजगद्दी पर बैठाकर मुनि बन गए। राजा सज्जनकुमार ने सुदीर्घकाल तक सुशासन किया। अंत में संयम स्वीकार कर मुनि बन गए। आयुष्य पूर्ण कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में गए। मृगासुंदरी भी संयम धारण कर और आयुष्य पूर्ण कर अच्युतकल्प देवलोक में गई। वहां से मनुष्य देह पाकर सज्जनकुमार और मृगासुंदरी सिद्धत्व को प्राप्त करेंगे। मृगेश वर्मन कदम्ब वंशज एक नरेश। वनवासी क्षेत्र पर उसका आधिपत्य था जो दक्षिणापथ का एक क्षेत्र था। जैन धर्म के प्रति मृगेश वर्मन की प्रगाढ़ आस्था थी। जैन धर्म के प्रचार-प्रसार और प्रभावना के उसने कई उल्लेखनीय कार्य किए। मृगेश वर्मन का राज्य काल ई. सन् 475 से 490 तक का माना जाता है। मेघ तीर्थंकर सुमतिनाथ के पिता, विनीता नगरी के नृप। इन्हें मेघरथ भी कहा जाता था। मेघकुमार ___महाराज श्रेणिक की रानी धारिणी से उत्पन्न पुत्र । उसके उक्त नाम के पीछे भी एक तथ्य है जो इस प्रकार है-महारानी धारिणी जब गर्भवती थी तो उसे एक दोहद उत्पन्न हुआ कि वह महाराज के साथ हाथी पर बैठकर वन-विहार को जाए और उस समय आकाश मेघों से भरा हो, चारों ओर हरियाली हो, वर्षा हो.. रही हो। श्रेणिक सब कर सकते थे पर अकाल में वर्षा कराना उनके वश में न था। फलतः वे चिन्तित बन गए। उनकी चिन्ता का निदान अभयकुमार ने किया। पौषधशाला में जाकर उन्होंने तेला किया और पूर्व परिचित देव का आह्वान किया। देवता ने अकाल में वृष्टि की तो महारानी धारिणी का हृत्कमल खिल उठा। वह महाराज के साथ हाथी पर बैठकर वन-विहार को गई। इस प्रकार उसका दोहद पूर्ण हो गया। ... जैन चरित्र कोश ... - 459 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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