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________________ पश्चात्ताप की प्रखरता से चन्दनबाला को भी केवलज्ञान हो गया । - आवश्यक नियुक्ति गाथा 1048 / - दशवैकालिक नियुक्ति अ. 1 गाथा 76 (ख) मृगावती मृगाग्राम के राजा विजय की रानी और मृगापुत्र की जन्मदातृ । (देखिए -मृगापुत्र) (ग) मृगावती - विपाक सूत्र, 1 सुग्रीव नगर के महाराज बलभद्र की पटरानी और मृगापुत्र की माता। वह एक तत्त्वज्ञा नारी थी । संयमी जीवन की क्लिष्टताओं का उसे पूरा ज्ञान था । पुत्र द्वारा दीक्षा की अनुमति मांगने पर उसने संयम की क्लिष्टता का जैसा जीवंत शब्द - चित्र प्रस्तुत किया था वह उसके तत्त्वज्ञान का परिचायक है । ( देखिएमृगापुत्र) -उत्तराध्ययन, अध्ययन 16 मृगासुंदरी वीरपुर नरेश चन्द्रशेखर के पुत्र सज्जनकुमार की पत्नी । मृगासुंदरी एक आदर्श पत्नी और साहसी वीरबाला थी। महाराज चन्द्रशेखर ने अपने पुत्र सज्जनकुमार का विवाह आठ राजकुमारियों से सुनिश्चित किया था । तत्कालीन रीति के अनुसार आठों राजकुमारियां अपने- अपने बन्धु बान्धवों के साथ वीरपुर आईं। दूसरे ही दिन उनका विवाह राजकुमार सज्जनकुमार के साथ होने वाला था। पर जैसे ही दूसरे दिन का सूर्योदय हुआ तो राजकुमार सज्जनकुमार का अपहरण कर लिया गया। माता-पिता और नागरिकों के साथ-साथ आठों अविवाहित राजकुमारियों के लिए यह वज्रपात के समान था। महाराज चन्द्रशेखर ने आठों राजकुमारियों पर पितृ-वात्सल्य उंडेला और कहा कि वे किन्हीं अन्य राजकुमारों से विवाह रचा लें । आठों राजकुमारियों की ओर से ज्येष्ठ राजकुमारी मृगासुंदरी ने राजा से कहा, महाराज! निःसंदेह मांत्रिक विधि-विधान से हमारा विवाह आपके पुत्र से नहीं हुआ है, पर हम मन से आपके पुत्र को अपना पति मान चुकी हैं। इसलिए अब यह संभव नहीं है कि हम किसी अन्य कुमार से विवाह करें। हम आपकी पुत्र- वधूएं हैं। हमें अपने चरणों में रहने की अनुमति दीजिए । राजकुमारियों के संकल्प के समक्ष अंततः सभी को झुकना पड़ा। आठों राजकुमारियां अपने पति सज्जनकुमार के लौटने की प्रतिक्षा करती हुईं वीरपुर में ही रहने लगीं। महाराज चन्द्रशेखर ने दूर-दूर तक अपने पुत्र की खोज कराई। पर राजकुमार को खोजा न जा सका। आखिर एक दिन मृगासुंदरी ने अपने श्वसुर से विनीत प्रार्थना की कि उसे सज्जनकुमार को खोजने की अनुमति दी जाए। उसने श्वसुर की आज्ञा प्राप्त कर ली और योगिनी का वेश धारण कर वह पति को खोजने के लिए चल दी। अनेक नगरों और गांवों में भ्रमण करती हुई मृगायोगिनी दक्षिण भारत में पहुंची। वहां पर भी वीरपुर नाम का एक नगर था। नगर नाम साम्य ने राजकुमारी मृगासुंदरी (मृगायोगिनी) को आकर्षित किया और उसी नगर में वह रुक गई। एक मालिन ने उसका आतिथ्य किया। मालिन से उसे ज्ञात हुआ कि उक्त नगर के बाहर एक दुष्ट योगी रहता है जो सुन्दर नारियों का शील भंग करता है। उसके विद्याबल के समक्ष राजा भी निरुत्तर और विवश है। साथ ही मालिन ने यह भी बताया कि कुछ ही दिन पूर्व दुष्ट योगी ने सज्जनकुमार नामक एक परदेसी और उसकी पत्नी को भी बन्दी बना लिया है। पति का नाम सुनकर मृगासुंदरी को तमस में प्रकाश की किरण दिखाई दी । उसे अपने धर्म और बुद्धि पर पूरा भरोसा था। वह योगी के मठ की ओर चल दी। मार्ग पर एक अन्य मठ था जहां एक युवायोगिनी • जैन चरित्र कोश ••• *** 458
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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