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________________ फैल गया। कौशाम्बी निवासी यक्षदत्त सेठ ने उससे अपनी पुत्री श्यामदत्ता का विवाह कर दिया। विवाह करके जब वह कौशाम्बी से उज्जयिनी लौट रहा था तो मार्ग में उसे एक सार्थ मिला। वह अपनी पत्नी के साथ सार्थ के साथ हो लिया। मार्ग में एक धूर्त परिव्राजक भी सार्थ में मिल गया। अगड़दत्त परिव्राजक की धूर्तता को भांप गया और उससे सावधान रहने लगा। एक दिन उस धूर्त परिव्राजक ने विषमिश्रित खीर खिलाकर सार्थ के सभी सदस्यों को मार डाला। सावधान रहने के कारण अगड़दत्त और उसकी पत्नी बच गए। अगड़दत्त ने परिव्राजक से युद्ध करके उसे मार डाला। ___ मार्ग में अर्जुन नामक चोर को मारकर तथा विभिन्न बाधाओं को पार करता हुआ अगड़दत्त उज्जयिनी पहुंचा और राजा की सेवा करते हुए जीवनयापन करने लगा। किसी समय राजाज्ञा से नगर के बाहर उद्यान में उत्सव मनाया गया। अगड़दत्त अपनी पत्नी के साथ उस उत्सव में सम्मिलित हुआ। वहां एक नाग ने उसकी पत्नी को डस लिया। उसे अपनी पत्नी पर गहन अनुराग था। वह आधी रात तक अपनी पत्नी के शव के पास बैठकर रोता रहा। उधर आकाश-मार्ग से दो विद्याधर जा रहे थे। उन्हें अगड़दत्त पर करुणा आ गई। मन्त्रोपचार से उन्होंने श्यामदत्ता को विषमुक्त बना दिया। ___ अर्ध-रात्रि का घोर तिमिर था। प्रकाश करने के लिए थोड़ी ही दूरी पर स्थित श्मशान से अग्नि लेने के लिए अगड़दत्त गया तो वहां अर्जुन चोर के छह भाई, जो अगड़दत्त को खोजते हुए वहां आ पहुंचे थे और उसे मारने का अवसर देख रहे थे, वे श्यामदत्ता के सामने प्रकट हो गए और उन्होंने बता दिया कि वे उसे और उसके पति को मारकर अपने भाई की हत्या का बदला लेंगे। श्यामदत्ता ने त्रियाचरित्र दिखाते हुए कहा कि वे उसे छोड़ दें तो वह स्वयं ही अपने पति का वध कर देगी। इस पर छहों सहमत हो गए। अगड़दत्त के लौटने पर श्यामदत्ता ने अपने पति को मारने का प्रयत्न किया, पर अगड़दत्त बच गया। साथ ही वह पत्नी की कुटिलता को भी नहीं समझ सका। सुबह होने पर अगड़दत्त श्यामदत्ता के साथ अपने घर लौट गया। उधर अर्जुन चोर के छहों भाई स्त्री की कुटिलता को देखकर विरक्त बन गए और दृढ़चित्त अणगार के पास दीक्षित हो गए। फिर किसी समय वे छहों अणगार दो-दो के सिंघाड़े से अगड़दत्त के घर भिक्षा के लिए आए। यौवन में उनकी तपस्विता देखकर अगड़दत्त बहुत प्रभावित हुआ। उपाश्रय पहुंचकर उसने मुनियों से उनके वैराग्य का कारण पूछा तो मुनियों ने पूरी घटना कह दी। मुनियों की वैराग्य-प्रधान घटना में स्वयं को प्रमुख पात्र पाकर और अपनी पत्नी का यथार्थ जानकर अगड़दत्त विरक्त और दीक्षित हो गया। -वसुदेव हिंडी पीठिका अग्निभूति (गणधर) इन्द्रभूति गौतम के अनुज और वेद-वेदांगों के प्रखर पण्डित । कर्म के अस्तित्व-नास्तित्व का महावीर से समाधान पाकर वे अपने पांच सौ शिष्यों के साथ उनके धर्मसंघ में दीक्षित हो गए। वे द्वितीय गणधर बने। सैंतालीस वर्ष की अवस्था में दीक्षित होकर बारह वर्षों तक गणधर पद पर रहने के पश्चात् उनसठ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञानी बने। चौहत्तर वर्ष की अवस्था में वे सिद्ध हुए। -महावीर चरित्त अग्निमित्रा प्रसिद्ध श्रमणोपासक सकडालपुत्र कुम्भकार की धर्मपत्नी। (देखिए-सकडाल पुत्र श्रावक) अग्निशर्मा बलसारा ग्रामवासी एक निर्धन ब्राह्मण। (देखिए-आरामशोभा) ... जैन चरित्र कोश -
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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