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________________ लाख मुद्राओं की देनदारी आ गई । उसने सेठ अकलशा को वस्तुस्थिति से परिचित कराया । सुनकर सेठ प वज्रपात हो गया। उसके जीवन भर की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई । अदायगी के लिए इतनी बड़ी राशि उसके पास नहीं थी । उसने आत्महत्या का निश्चय कर लिया। आखिर भद्रा ने पति को सान्त्वना दी और कहा, कष्ट में धर्म ही सहायक होता है। उन्हें धर्म का सहारा लेना चाहिए। दोनों पति-पत्नी धर्माराधना में तल्लीन हो गए। घोघापाटण नगर के राजा का नाम मानसिंह था। मानसिंह का छोटा भाई हमीरसिंह था जो चारित्रवान् और धर्मात्मा कुमार था। मानसिंह की रानी कामलता ने हमीरसिंह पर अपना प्रेम प्रकट किया। हमीर सिंह द्वारा उसका प्रस्ताव ठुकराए जाने पर उसने उस पर बलात्कार का आरोप मढ़ दिया। विवेकान्ध मानसिंह ने बिना सत्य की जांच-पड़ताल किए अनुज हमीरसिंह को देश- निर्वासन का दण्ड दे दिया । हमीरसिंह के पास उसके माता-पिता से प्राप्त पर्याप्त व्यक्तिगत सम्पत्ति थी । उस सम्पत्ति को लेकर हमीरसिंह अकलशा सेठ के पास पहुंचा। सेठ को अपनी सम्पत्ति अर्पित करते हुए राजकुमार ने कहा, सेठ जी ! यह मेरी धरोहर है। इसे आप संभालें ! इस सम्पत्ति का आप व्यापार में उपयोग भी कर सकते हैं। कभी मेरा भाग्य सरल होगा तो जितनी सम्पत्ति चाहें मुझे लौटा दें ! अकलशा गद्गद् हो गया। उसने राजकुमार की सम्पत्ति स्वीकार करने से कई बार इन्कार किया, पर राजकुमार का विश्वास सेठ पर स्थिर था। सेठ ने राजकुमार से वचन ले लिया कि वह अपने कुशल-संवाद निरन्तर उसे भेजता रहेगा । धर्म के चमत्कार से सेठ अकलशा की प्रतिष्ठा सुरक्षित रही। इतना ही नहीं, व्यापार में उसे अप्रत्याशित लाभ भी हुआ। उसने राजा से सम्पर्क बढ़ाया और उसका प्रियपात्र बन गया। रानी के पाप का घट भर चुका था। राजा ने किसी पुरुष के साथ उसे अनाचार सेवन करते देख लिया । राजा की आंखें खुल गईं। वह अपने निरपराध भाई को याद कर आंसू बहाने लगा । आखिर अकलशा सेठ हमीर सिंह को प्रदेश से ले आया । राजा हमीर सिंह को राज्य देकर दीक्षित हो गया। सेठ अकलशा और भद्रा भी विरक्त होकर प्रव्रजित हो गए। तीनों ने ही संयम का पालन कर सद्गति का अधिकार पाया । - जैन कथाएं अक्षोभ द्वारिका के राजा अन्धकवृष्णि और रानी धारिणी के अंगजात । इनका परिचय गौतम के समान है। (दिखिए- गौतम) - अंतकृद्दशांग सूत्र, वर्ग 1 अक्षोभ कुमार समग्र परिचय गौतमवत् है । ( देखिए- गौतम ) - अंतकृद्दशांग सूत्र, वर्ग 2 उज्जयिनी निवासी सारथी अमोघरथ और उसकी पत्नी यशोमती का अंगजात । उसके जीवन में बहु उतार-चढ़ाव आए । बाल्यावस्था में ही उसके पिता का देहान्त हो गया था । उसने कौशाम्बी नगरी में जाकर अपने पिता के मित्र दृढ़प्रहारी से सारथि - विद्या सीखी। पर वापिस लौटने पर राजा ने उसे नौकरी देने से इन्कार कर दिया। अगड़दत्त उन्हीं दिनों उज्जयिनी में एक चोर ने आतंक फैला रखा था । अगड़दत्त ने न केवल उस चोर को पकड़ लिया बल्कि उसके द्वारा लूटा हुआ धन भी वास्तविक स्वामियों को सौंप दिया। इससे उसका यश चारों ओर • जैन चरित्र कोश ••• ... 8
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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