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________________ किसी समय अचल व्यापारी को राजपुरुषों ने कर चोरी के अपराध में गिरफ्तार कर लिया। बन्धनों में बन्धे अचल को राजा मूलदेव के समक्ष उपस्थित किया गया। मूलदेव ने अचल को पहचान लिया और बन्धन मुक्त करवा दिया। अचल ने भी मूलदेव को पहचान लिया और उसका उपकार मानते हुए अपने स्थान पर चला गया। एक दिन मूलदेव हाथी पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उसे वह जोगी मिला जिसकी झोंपड़ी में उसने रात्रि विश्राम किया था तथा स्वप्न में चन्द्रमा देखा था। योगी ने देखते ही मूलदेव को पहचान लिया। उसने पूछा, तुम राजा कैसे बन गए? मूलदेव ने कहा, तुम्हारी झोंपड़ी में सोते हुए चन्द्रदर्शन के लाभ के कारण ही मुझे राजपद मिला है। योगी ने कहा, लेकिन वैसा ही स्वप्न मैंने भी देखा था और मुझे उसके फलस्वरूप मात्र एक रोटी का ही लाभ मिला, ऐसा क्यों? एक समान स्वप्न के भिन्न फल क्यों? ____ मूलदेव ने कहा, आपने विधि से स्वप्न का फल ज्ञात नहीं किया। योगी को अपनी भूल समझ पड़ गई। अब वह योगी सदैव अपनी झोंपड़ी में सोकर चन्द्र स्वप्न दर्शन की प्रतीक्षा करने लगा। पर क्या यह सरल है कि वह पुनः वैसा ही स्वप्न देखे और राजपद पाए? जैसे उस द्वारा वैसा स्वप्न पुनः देखा जाना सुलभ नहीं है, वैसे ही मानव जन्म का पुनः प्राप्त होना सुलभ नहीं है। -उत्तराध्ययन वृत्ति मूलश्री वासुदेव श्री कृष्ण की पुत्रवधू और राजकुमार शाम्ब की पत्नी। भगवान अरिष्टनेमि का उपेदश सुनकर उसे नश्वर भोगों से विरक्ति हो गई। उसने भगवान के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। निरतिचार चारित्र का पालन कर वह सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुई। -अन्तगडसूत्र, वर्ग 5, अध्ययन 8 मूला सेठानी कौशाम्बी नगरी के धर्मात्मा सेठ धनावह की पत्नी। (देखिए-चंदन बाला) मृग सुंदरी ___मृगपुर नगर के श्रावक जिनदत्त की पुत्री, एक दृढ़-धर्मिणी बाला । बाल्यावस्था में ही उसने गुरुदेव से कई नियम ग्रहण किए थे, जिनमें प्रमुख थे-रात्रि-भोजन त्याग, जिनस्तवन के पश्चात् ही अन्न-जल ग्रहण करना और प्रतिदिन मुनियों को प्रतिलाभित करने के पश्चात् ही भोजन करना आदि। इन नियमों का वह प्राणपण से पालन करती थी। मृगपुर से सामान्य दूरी पर वसन्तपुर नामक नगर था। वहां पर देवदत्त नाम का एक गृहस्थ रहता था। उसके चार पुत्र थे। उसके छोटे पुत्र का नाम धनेश्वर था। एक बार धनेश्वर मृगपुर नगर में गया। वहां उसने मृगसुन्दरी को देखा। वह उसके रूप पर मोहित हो गया। उसने मन ही मन मृगसुंदरी से विवाह करने का निश्चय कर लिया। पर उसे ज्ञात हुआ कि मृगसुंदरी के पिता जिनोपासक हैं और उनका प्रण है कि वे अपनी पुत्री का विवाह जिनोपासक युवक से ही करेंगे। मृगसुंदरी को पाने के लिए धनेश्वर ने कपट-श्रावक का अभिनय इतनी कुशलता से किया कि जिनदत्त उसके जाल में फंस गए और उसके प्रस्ताव पर उन्होंने अपनी पुत्री मृगसुंदरी का विवाह उससे कर दिया। पति-गृह में प्रवेश करते ही मृगसुंदरी समझ गई कि उसके साथ छल हुआ है। पर अब उसके प्रतिकार का कोई उपाय न था। देवदत्त ने धर्माराधना रत मृगसुंदरी को देखकर उसे कटु शब्दों में समझाया कि उसका यह आचार उसके घर में नहीं चलेगा। मृगसुंदरी और श्वसुर-गृह के समस्त सदस्यों के मध्य कई दिनों तक तनाव बना ... 452 .. ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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