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________________ मुष्कर-मोक्कर-कौंगणिवृद्ध (राजा) ___गंगवंश का एक राजा। गंग वंश के प्रायः सभी राजाओं की तरह वह भी परम जिनभक्त राजा था। उसका शासन काल ई.स. 513 से प्रारंभ माना जाता है। मूक सेठ उज्जयिनी नगरी के राजकुमार और पुरोहित-पुत्र में सघन मैत्री थी और दोनों श्रमण-द्वेषी थे। वे दोनों श्रमणों को नगरी में नहीं आने देते थे। अचलपुरी नगरी के राजकुमार और पुरोहित पुत्र ने एक साथ दीक्षा धारण कर तपस्या द्वारा कई सिद्धियां प्राप्त की। क्रमशः विहार करते हुए मुनि-द्वय उज्जयिनी नगरी में आए। उन्हें देखकर राजपुत्र और पुरोहित-पुत्र का श्रमण-द्वेष जाग उठा। मुनियों को अपमानित करने के लिए वे बोले-मुनियो! नृत्य दिखाओ ! मुनियों ने कहा, तुम वादिंत्र बजाओ। इससे राजपुत्र और पुरोहित-पुत्र क्रोधित होकर मुनियों को मारने दौड़े। मुनियों के तपस्तेज के प्रभाव से वे रक्त वमन करने लगे और मूर्छित होकर गिर पड़े। मुनिद्वय अपने स्थान पर रवाना हो गए। राजा को अपने पुत्र की दशा का परिज्ञान हुआ तो वह खिन्न बन गया और मुनियों की शरण में पहुंचा। उसने अपने पुत्र तथा पुरोहित पुत्र को स्वस्थ करने की मुनियों से प्रार्थना की। मुनियों ने कहा, ये दोनों कुमार मुनिधर्म अंगीकार करें तो स्वस्थ हो सकते हैं। राजा की स्वीकृति पर मुनिद्वय द्वारा उन दोनों को स्वस्थ कर दिया गया। विवश होकर राजपुत्र और पुरोहित-पुत्र को प्रव्रजित होना पड़ा। ___राजपुत्र का मन संयम में रम गया, पर पुरोहित-पुत्र ने जात्यादि अभिमान का परित्याग नहीं किया और अमन से संयम का पालन किया। आयुष्य पूर्ण कर दोनों देव हुए। फिर किसी समय दोनों देव भगवान सीमंधर स्वामी के दर्शनों के लिए गए। उन्होंने भगवान से अपने भविष्य सम्बन्धी प्रश्न पूछे। भगवान ने फरमाया-राजपुत्र सुलभ बोधि होगा और पुरोहित-पुत्र दुर्लभबोधि होगा। पुरोहित-पुत्र के प्रश्न पर भगवान ने फरमाया, देवभव से च्यव कर वह मूक सेठ का भाई बनेगा। मूकसेठ कौशाम्बी नगरी का श्रेष्ठी है। ___अपने स्थान पर लौटकर पुरोहित-पुत्र से देव हुए देव ने एक उपक्रम किया। वह मूकसेठ के पास गया और बोला, भाई ! देवलोक से च्यव कर मैं तुम्हारे सहोदर के रूप में जन्म लूंगा। तुम मुझे प्रतिबोधित करना। मूक सेठ ने देवता का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। कालक्रम से वह देव च्यव कर मूक सेठ के सहोदर के रूप में उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो मूक सेठ ने उसे प्रतिबोध देने के कई प्रयास किए, परन्तु उसकी बात सुनते ही वह रोने लगता। मूक सेठ जीवन भर उसे धर्म के लिए प्रेरित करता रहा पर वह उसे धर्मपथ पर लाने में सफल नहीं हो सका। ___ मूक सेठ श्रावक धर्म की परिपालना करते हुए स्वर्गवासी हुए। अवधिज्ञान के उपयोग में उन्होंने अपने भाई को देखा। भाई को प्रतिबोध देने के लिए मूक सेठ का जीव-देव उसके पास आया। देव ने उसे जलोदर रोगी बना दिया और स्वयं वैद्य बनकर उसके समक्ष आया। रोग से व्यथित भाई ने वैद्य रूपी देव से उपचार की प्रार्थना की। वैद्य ने कहा, वह साधु बने तो उपचार हो सकता है। मरता क्या न करता ? वह बोला, मैं साधु बनने को तैयार हूँ। देव ने उसे स्वस्थ कर दिया और आचार्य श्री के पास दीक्षा दिला दी। परन्तु वह दुर्लभबोधि अवसर लगते ही साधु-वेश का परित्याग कर भाग गया। देवता ने उसे पुनः रोगी बना दिया और फिर से साधु बनने की शर्त पर उसे रोग मुक्त किया। उसे फिर साधु बनना पड़ा। पर संयम उसे भार प्रतीत होता था। वह पुनः संयम का परित्याग कर घर की दिशा में चल दिया। ... 450 .. .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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