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________________ इस प्रकार मुनियों की रक्षा हुई। कहते हैं जैन परम्परा में उसी दिन से रक्षाबन्धन का पर्व प्रारंभ हुआ। विष्णुकुमार मुनि ने लब्धि प्रयोग के लिए आचार्य से प्रायश्चित्त ग्रहण किया और निरतिचार संयम पालकर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गए। उसके बाद महापद्म चक्रवर्ती ने भी राजपाट छोड़कर संयम ग्रहण कर लिया और वे भी मोक्ष में गए। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 7 (क) महाबल जम्बूद्वीप के अपर विदेह में स्थित वीतशोका नगरी के राजा बल का पुत्र । युवावस्था में 500 राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। पिता की प्रव्रज्या के पश्चात् वह अपने देश का राजा बना। न्याय और नीति से राज्य करते हुए उसने पर्याप्त सुयश अर्जित किया। अंतिम अवस्था में उसने अपने छह बालमित्रों के साथ संयम धारण किया। विशुद्ध संयमाराधना तथा उत्कृष्ट तपाराधना करते हुए भी महाबल ने सूक्ष्म माया का आसेवन किया। उत्कृष्ट तप के फल-स्वरूप उसने तीर्थंकर गोत्र का अर्जन किया, पर माया के फल रूप में उसे स्त्री योनि प्राप्त हुई। कालान्तर में महाबल का जीव मिथिलानरेश महाराज कुंभ की पुत्री के रूप में जन्मा जहां उन्हें मल्ली कुमारी नाम प्राप्त हुआ। यही मल्ली भगवती जैन धर्म की उन्नीसवें तीर्थंकर के रूप में अर्चित हैं। (देखिए-मल्लीनाथ तीर्थकर) (ख) महाबल ___ महावीरकालीन पुरिमताल नगर का राजा। -विपाक सूत्र-3 (ग) महाबल (कुमार) __महापुर नगर का युवराज। नगर नरेश महाराज बल उसके पिता और महारानी सुभद्रा देवी उसकी माता थी। महाबल कुमार रूपवान और तेजस्वी युवक था। वह सभी के प्रेम का पात्र था। युवावस्था में रक्तवती प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। एक बार ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपने श्रमण संघ के साथ महापुर नगर के बाह्य भाग में स्थित रक्ताशोक नामक उद्यान में पधारे। पूरा नगर भगवान के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ा। युवराज महाबल भी भगवान के श्री चरणों में पहुंचा। प्रभु का प्रवचन सुनकर उसका हृदय हर्ष और श्रद्धाभाव से पूर्ण हो गया। उसने भगवान से श्रावक धर्म ग्रहण किया। राजकुमार और जनता अपने-अपने घरों को लौट गए। ___ महाबल की अतिशयी रूप-गुण सम्पदा देखकर श्रमण-श्रमणी वृन्द में उत्सुकता उत्पन्न हुई। श्रमण-श्रमणीवृन्द की उत्सुकता को देखकर उसके समाधान के लिए गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया-भंते! महाबल कुमार ने ऐसे क्या शुभ कर्म किए हैं जिससे उसे ऐसा रूप मिला तथा वह सभी के प्रेम का पात्र बना है? ___ भगवान ने फरमाया, गौतम! पूर्व जन्म में महाबल कुमार मणिपुर नामक नगर का नागदत्त नामक गाथापति था। वहां पर इसने एक बार चढ़ते भावों से इन्द्रदत्त नामक मासोपवासी अणगार को प्रासुक आहार का दान दिया था। दान देते हुए नागदत्त ने महान पुण्य का अर्जन किया। कालक्रम से वहां से आयुष्य पूर्ण कर नागदत्त यहां महाबल के रूप में जन्मा है। .0430 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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