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________________ भूधरदास (कवि ) जीवन के सत्य और अध्यात्मामृत को सरल शब्दावली में पद्यबद्ध करने वाले एक जैन कवि । आप आगरा के रहने वाले थे और जाति से खण्डेलवाल थे । वि. की अठारहवीं शती में आपने काव्य प्रतिभा में जहां विद्वद्वर्ग का मन मुग्ध किया, वहीं अपने सरल पदों में जीवन के अमूल्य सूत्रों को प्रस्तुत कर सामान्यजन के हृदय को भी आपने छूआ । “पार्श्व पुराण" आप द्वारा रचित महाकाव्य है, जिसमें पार्श्वनाथ भगवान का आद्योपान्त जीवन चरित्र चित्रित है। 'जैन शतक' - इस ग्रन्थ में आप द्वारा रचित 107 कवित्तों, दोहों, सवैयों और छप्पयों का संग्रह है । बारह भावनाओं पर आप द्वारा रचित बारह पद आज भी जैन जगत की चारों सम्प्रदायों में अत्यन्त भक्तिभाव से पढ़े जाते हैं । वस्तुतः आप कबीर, रैदास आदि संत कवियों की कोटि के कवि थे । आपकी कविताओं में अलंकारों की योजना अत्यन्त स्वाभाविक हुई है। सरल सत्य से भरे आपके पद पाठकों के हृदय में सीधे उतर जाते हैं। - तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भूमिपाल सत्ररहवें विहरमान तीर्थंकर श्री वीरसेन स्वामी के जनक । (देखिए वीरसेन स्वामी) भृगु पुरोहित उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित एक चरम शरीरी ब्राह्मण । (देखिए - इक्षुकार राजा) भैंसाशाह (पाडाशाह) ई. की 12वीं - 13वीं सदी का बुंदेलखण्ड का एक धनकुबेर श्रेष्ठी । भैंसाशाह अपरनाम पाडाशाह के महनीय कार्यों से सम्बन्ध रखने वाली सैकड़ों किंवदन्तियां बुन्देलखण्ड में प्रचलित हैं। वह लक्ष्मीपुत्र था और उसके द्वार से कभी कोई याचक निराश होकर नहीं लौटा था। कहा जाता है कि उसने अपने जीवनकाल में सैकड़ों मंदिरों का निर्माण कराया था । जनसाधारण की सुविधा के लिए अनेक कूप, बावड़ी, तड़ाग आदि थे । बनवाए कहते हैं कि पाडाशाह अथवा भैंसाशाह अपने प्रारंभिक जीवन में निर्धन वणिक था। उसके पास एक भैंसा था, जिस पर कुप्पे लादकर वह गांव-गांव घूमकर और तेल बेचकर अपना जीवन निर्वाह करता था। एक दिन वह जंगल में बैठा सुस्ता रहा था । सहसा उसकी दृष्टि अपने भैंसे के खुर में लगी नाल पर पड़ी जो सोने की हो गई थी। इससे भैंसाशाह चमत्कृत हो गया। उसे निश्चय हो गया कि आस-पास कहीं पारस पत्थर है। उसने श्रमपूर्ण खोज से पारस पत्थर को ढूंढ निकाला और उसके कारण वह शीघ्र ही धनकु हो गया। अपने भैंसे के निमित्त से उसका भाग्योदय हुआ, इसलिए वह उक्त नाम से प्रसिद्ध हुआ । उक्त कथा में तथ्य कितना है, यह तो नहीं कहा जा सकता है, परन्तु इतना सच है कि भैंस नामक व्यक्ति अद्भुत दानी और उदार व्यक्ति था । उसकी दानवीरता के किस्से वर्तमान लोककथाओं में भी सुमधुर श्रुति का विषय बने हुए हैं। भोगवती . धन्ना सार्थवाह की चार पुत्रवधुओं में से द्वितीय। (देखिए - धन्ना सार्थवाह) *** 402 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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