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________________ आचार्य भूतबलि नंदीसंघ पट्टावली के अनुसार वी. नि. की सातवीं शताब्दी के तथा इन्द्रनंदीश्रुतावतार के अनुसार वी. नि. आठवीं शताब्दी के आचार्य सिद्ध होते हैं । भूतश्री चम्पावासी ब्राह्मण की भार्या । (देखिए - नागश्री) भूता 1 निरयावलिया सूत्र के अनुसार भूता भगवान पार्श्वनाथ के युग में राजगृह निवासी समृद्धिशाली गाथाप सुदर्शन और उसकी पत्नी प्रिया की अंगजाता थी । पूर्वजन्मों के अशुभ कर्मों के कारण वह जन्म से ही वृद्धा जैसी लगती थी। उसका शरीर कुरूप और जीर्ण था । यौवनावस्था प्राप्त होने पर भी वह देह-दशा के कारण अत्यन्त वृद्धा दिखाई देती थी। ऐसे में कोई भी व्यक्ति उससे विवाह करने को तैयार नहीं हुआ । किसी समय भगवान पार्श्वनाथ राजगृह नगरी पधारे। भगवान का उपदेश सुनकर भूता को वैराग्य हो गया और वह पुष्पचूला आर्या की शिष्या बनकर संयम और तप की आराधना करने लगी। परन्तु धीरे-धीरे वह शिथिलाचार की ओर बढ़ने लगी तथा शारीरिक विभूषा के प्रति आकृष्ट हो गई। उसकी गुरुणी ने उसे समझाया तो वह गुरुणी से पृथक् रहकर संयम का पालन करने लगी। जहां उसमें शारीरिक विभूषा के आकर्षण का दुर्गुण था, वहीं कठोर तप करने का गुण भी मौजूद था। आयुष्य पूर्ण कर वह प्रथम स्वर्ग में गई, जहां वह श्रीदेवी नाम की देवी बनी। वहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर वह मोक्ष प्राप्त करेगी । - निरयावलिया 4 भूधर जी (आचार्य) स्थानकवासी परम्परा के एक प्रभावक आचार्य । आचार्य भूधर जी का जन्म वी. नि. 2182 (वि. 1712) में नागौर (राजस्थान - मारवाड़) में हुआ। उनका गोत्र मुणोत था । उनके पिता का नाम माणकचंद और माता का नाम रूपा देवी था । सोजत निवासी शाहदलाजी रातड़िया मूथा की पुत्री कंचनदेवी के साथ उनका विवाह हुआ । भूधर जी आकर्षक व्यक्तित्व और बलिष्ठ शरीर - सम्पदा के स्वामी थे । बाल्यकाल से ही उन्हें सैनिक बनना पसन्द था । युवावस्था में वे सेना में भरती हुए और उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारी बने। एक बार डाकुओं के एक दल ने कंटालिया ग्राम पर धावा बोला। भूधर जी ने डाकुओं का सामना किया और उनसे बहादुरी से युद्ध किया। इस क्रम में भूधर जी के ऊंट पर डाकुओं ने तलवार से प्रहार किया। ऊंट को तड़पते देखकर भूधर जी का मन निर्वेद से भर गया। भूधर जी का सम्पर्क आचार्य धन्ना जी से हुआ। उनके उपदेश से वे विरक्त बनकर दीक्षित हो गए। उन्होंने वी.नि. 2221 (वि. 1751 ) में मुनि जीवन में प्रवेश किया। वे एक तेजस्वी मुनि के रूप में मुनिसंघ में अर्चित हुए। उनके कई शिष्य बने। जयमल जी, जेतसिंह जी, कुशलो जी, जगमाल जी, रघुनाथ जी उनके प्रमुख शिष्य थे। एक बार विरोधियों ने आचार्य भूधरजी को प्रेतबाधित एक मकान में ठहरा दिया । उस स्थान पर आचार्य श्री सानन्द ठहरे। उन्हें किसी प्रकार की हानि नहीं हुई। इससे विरोधी भी उनके भक्त बन गए। आचार्य भूधर जी का स्वर्गवास (वी. नि. 2273 वि. 1803 ) में अनशनपूर्वक हुआ। ••• जैन चरित्र कोश * 401
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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