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________________ भामाशाह भारमल कावड़िया का पुत्र, ताराचन्द का सहोदर, एक वीरवर जैन श्रेष्ठी। भामाशाह ने मेवाड़ के उत्थान के लिए जो महनीय कार्य किए, उनके कारण मेवाड़ के इतिहास में वह सदैव अमर रहेगा। भामाशाह महाराणा प्रताप का महामंत्री और अंतरंग सखा था। हल्दीघाटी के विख्यात युद्ध में भामाशाह ने अपनी तलवार के जौहर दिखाए थे। युद्ध में पराजय के पश्चात् महाराणा प्रताप को अपने परिवार के साथ वनों में शरण लेनी पड़ी। सतत कष्टमय जीवन और पारिवारिक दुर्दशा ने महाराणा के वज्र हृदय को भी पिघला दिया। मेवाड़ को छोड़कर वे अन्यत्र जाने को विवश हो गए। कुछ उल्लेखों के अनुसार वे अकबर से सन्धि करने के इच्छुक हो गए। उस समय वीरवर भामाशाह उनके पास पहुंचे और उन्होंने राणा को मेवाड़ के उद्धार के लिए उत्साहित किया। महाराणा ने कहा, मेरे पास न सेना है और न धन है, ऐसे में कैसे यह कार्य संभव हो पाएगा। उस समय भामाशाह ने अपूर्व त्यागभाव को धारण कर महाराणा के चरणों में अपनी और अपने पूर्वजों की अर्जित विशाल धनराशि अर्पित कर दी और कहा मेवाड़ के उद्धार में मेरे प्राण भी प्रस्तुत हैं। ___ वीरवर भामाशाह द्वारा राणा को अर्पित की गई धनराशि इतनी थी कि उससे 25000 सैनिकों का बारह वर्षों तक निर्वाह हो सकता था। भामाशाह के इस अद्भुत त्याग और समर्पण ने महाराणा में नवीन साहस का संचार कर दिया। दोनों ने मिलकर सेना का गठन किया। अनेक युद्ध लड़े और अंततः मुगल सेना को मेवाड़ से खदेड़ दिया। मेवाड़ के इतिहास में मेवाड़ के उद्धारकों के रूप में जो सर्वप्रथम नाम है, वह वीरवर भामाशाह का है, जो एक जैन श्रावक थे। महाराणा प्रताप के आदेश पर भामाशाह के परिवार के मुखिया को पंच-पंचायती चौके का भोजन और सिंहपूजा आदि विशेष उपलक्ष्यों में प्रथम तिलक का अधिकार दिया गया जो आज तक परम्परागत रूप से यथावत् जारी है। वीरवर भामाशाह का जन्म 27 जून 1547 को और स्वर्गवास 28 जनवरी 1600 को हुआ। आज भी उदयपुर में उनकी समाधि मौजूद है। भारमल कावड़िया एक विख्यात जैन श्रावक और मेवाड़ राज्य का आधार स्तंभ महामंत्री। भारमल राणा सांगा का अंतरंग मित्र था। राणा सांगा ने उसकी नियुक्ति रणथम्भौर के दुर्गपाल के रूप में की थी। बाद में कई घटनाक्रमों के बाद भारमल कावड़िया मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह का प्रधानमंत्री बना। चित्तौड़ पर अकबर का अधिकार हो जाने के बाद राणा उदयसिंह ने उदयपुर नगर बसाया, जिसके निर्माण और विकास में भारमल का विशेष योगदान रहा। भारिका (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 12 भावदेव रेवती नामक गाथापत्नी के दो पुत्रों में से छोटा पुत्र । रेवती के बड़े पुत्र का नाम भवदेव था। भवदेव ... 388 . ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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