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________________ नगर में उसने कई दानशालाएं खुलवाईं थीं। सब के मुख पर सेठ की प्रशंसा थी। सेठ का एक पुत्र था - विवेक । जब विवेक विवाह योग्य हुआ तो उसके लिए रिश्तों की पंक्ति लग गई। पर सेठ भागचंद्र ने एक ऐसी शर्त रखी कि जिससे उनके पुत्र के विवाह की संभावनाएं तो क्षीण पड़ ही गईं, लोग भी उनके लोभ की निन्दा करने लगे। वह शर्त थी - कन्या के पिता को कोरे कागज पर पंचों के समक्ष हस्ताक्षर करने होंगे, और उस कागज पर सेठ भागचंद्र जो संख्या भरेंगे उतना धन दहेज में कन्या के पिता को देना होगा। लोग सशंकित थे कि कौन जाने सेठ कितनी रकम कागज पर लिख दें । इसी शंका के कारण सेठ के द्वार पर रिश्ते आने प्रायः बन्द हो गए । पोलासपुर के निकट ही पावा नामक एक गांव था, वहां सुदर्शन नामक एक श्रेष्ठी रहता था । उसकी पुत्री थी पुष्पश्री । वह भागचंद्र के पास गया और उसकी शर्त पूरी करके सगाई की रस्म पूर्ण कर दी। सेठ ने कोरे कागज पर लिखा - ग्यारह अशर्फियां । उपस्थित जनसमुदाय चकित रह गया। सेठ ने स्पष्ट किया, शर्त के पीछे का रहस्य मात्र इतना था कि मैं एक ऐसे सम्बन्धी को खोजना चाहता था, जो मुझ पर विश्वास कर सके। सुदर्शन ने मुझ पर विश्वास किया और सम्बन्धी के रूप में उसे पाकर मैं गद्गद हूं। समुचित समय पर बारात पावा पहुंची। सेठ सुदर्शन ने भी स्वयं को कंगला दिखाकर एक अभिनय किया। उस परीक्षा में भागचंद्र पूर्ण उत्तीर्ण हुए। इस अवस्था में भी वे सुदर्शन की पुत्री से विवाह से पीछे नहीं खिसके बल्कि सम्बन्धी के सहयोग के लिए दिल के द्वार खोल दिए । दोनों सम्बन्धी एक-दूसरे से सम्बन्ध जोड़कर अपने-अपने मनों में मुदित और गद्गद थे। भाणा जी आप स्थानकवासी परम्परा के आद्य मुनि माने जाते हैं । आप का जन्म सिरोही के निकटस्थ ग्राम अरहटवाल - अटकवाड़ा में हुआ था। आपकी जाति पोरवाल थी। वि.सं. 1531 में आपने दीक्षा ग्रहण की। पैंतालीस अन्य मुमुक्षुओं ने भी आपके साथ दीक्षा ग्रहण की थी। इन दीक्षाओं के पीछे लोंकाशाह की प्रेरणा तथा क्रियोद्धार का प्रबल संकल्प था । लोकाशाह की प्रेरणा से प्रचलित यह मत लोंकागच्छ कहलाया । भानुकुमार वासुदेव श्रीकृष्ण का सत्यभामा से उत्पन्न पुत्र । (क) भानुमति पुरिमताल नगर के सेठ जिनदत्त की अर्द्धांगिनी और रत्नपाल की जननी । (देखिए-रत्नपाल) (ख) भानुमति सत्रहवें विहरमान तीर्थंकर श्री वीरसेन स्वामी की जननी । (देखिए वीरसेन स्वामी) भामण्डल मिथिलापति महाराज जनक का पुत्र, जो बलवान, बुद्धिमान और विनीत था। राम-रावण युद्ध में श्री राम के पक्ष से युद्ध करते हुए अच्छे जौहर दिखाए। बाद के जीवन में अनेक वर्षों तक राज्य किया। एक बार जब वह अपने प्रासाद की छत पर बैठे हुए धर्मध्यान में संलग्न था तो अकस्मात् विद्युत्पात से उसका निधन हो गया । धर्मध्यान करते हुए मृत्यु का वरण करने से वह यौगलिक मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। ••• जैन चरित्र कोश - (देखिए - जैन रामायण) *** 387
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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