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________________ आधा राज्य लेने का आग्रह किया। परन्तु मुनि ने उसे अस्वीकार कर दिया। मुनि ने ब्रह्मदत्त को धर्मोपदेश दिया और संयम अपनाने की प्रेरणा दी। पर ब्रह्मदत्त ने अपनी असमर्थता प्रकट की । ब्रह्मदत्त ने सात सौ वर्ष की आयु तक राज्य किया। जब उसकी आयु अठारह वर्ष शेष थी तब एक ब्राह्मण ने छिपकर गुलेल के वार से उसकी दोनों आंखें फोड़ दीं। इससे ब्रह्मदत्त ब्राह्मण वर्ग का शत्रु बन गया। उसने आदेश दिया कि पृथ्वी के समस्त ब्राह्मणों की आंखें निकालकर उसके समक्ष रखी जाएं। मंत्री धर्मात्मा और चतुर था। उसने मनुष्य की आंख के आकार के श्लेष्मांतक फलों का थाल राजा के समक्ष रख दिया। उन फलों को ब्राह्मणों की आंख मानकर ब्रह्मदत्त उन पर हाथ फिराने लगा और प्रसन्न बनने लगा । ऐसे अठारह वर्षों तक महारौद्र ध्यान को जीते हुए मरने पर ब्रह्मदत्त सातवें नरक में गया। चित्त मुनि ने निरतिचार विशुद्ध संयम की परिपालना कर मोक्ष पद पाया । - त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 9 ब्रह्मदीपक सिंह (आचार्य) नन्दी सूत्र स्थविरावली में वाचनाचार्य ब्रह्मदीपक सिंह का स्थान आर्य नागहस्ती और आर्य रेवती नक्षत्र के पश्चात् है । आर्य रेवती नक्षत्र के बाद आर्य ब्रह्मदीपक सिंह वाचनाचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। वाचनाचार्यों क्रम में उनका बीसवां स्थान सिद्ध होता है । नन्दीसूत्र स्थविरावली में आर्य ब्रह्मदीपक सिंह के गुणों का कथन इस रूप में हुआ है - आर्य ब्रह्मदीपक सिंह कालिक श्रुत के ज्ञाता, अनुयोग कुशल, धीर, गंभीर आदि उत्तमोत्तम गुणों से सुशोभित आचार्य थे । अचलपुर नगर में उन्होंने दीक्षा धारण की थी । वी. नि. की आठवीं शताब्दी में उनका कार्यकाल अनुमानित है । - नन्दी सूत्र स्थविरावली ब्रह्म राजा काम्पिल्य नगर का सम्राट् और बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का जनक । चार अन्य राजाओं से महाराज ब्रह्म के प्रगाढ़ मैत्री सम्बन्ध थे। वे चार राजा थे - काशीनरेश कटक, हस्तिनापुर नरेश करेणुदत्त, कौशलनरेश दीर्घ और चम्पानरेश पुष्पचूल। इन पांचों राजाओं की मैत्री बढ़ते-बढ़ते इतनी घनिष्ठ हो गई कि पांचों ने यह निर्णय कर लिया कि वे अपने-अपने अंतःपुर सहित क्रमशः एक-एक वर्ष एक-एक राजा की राजधानी में साथ-साथ रहेंगे। किसी समय जब सभी मित्र राजा महाराज ब्रह्म की राजधानी काम्पिल्य नगर में एक साथ रह रहे थे तो महाराज ब्रह्म अस्वस्थ हो गए और उसी अवधि में उनका निधन हो गया। शेष चारों मित्र राजाओं ने मिलकर महाराज ब्रह्म के अल्पायु पुत्र ब्रह्मदत्त का राज्याभिषेक किया और यह सुनिश्चित किया कि जब तक ब्रह्मदत्त राज्य संचालन में समर्थ नहीं हो जाता, तब तक वे चारों एक-एक वर्ष के लिए ब्रह्मदत्त के सहायक के रूप में काम्पिल्य नगर का शासन सूत्र संभालेंगे। इसके लिए प्रथम वर्ष का दायित्व कौशल नरेश दीर्घ को सौंपा गया। दीर्घ काम्पिल्य नगर का शासनसूत्र पाकर मैत्री के पवित्र अर्थों को विस्मृत कर बैठा और राज्य हड़पने को उतावला हो गया। उसने महाराज ब्रह्म की रानी चूलनी से अवैध सम्बन्ध स्थापित कर लिए। इतना ही नहीं, वह ब्रह्मदत्त का भी जानी दुश्मन बन गया। परन्तु काम्पिल्य नगर के राजभक्त मंत्री धनदत्त की सूझ-बूझ से ब्रह्मदत्त के प्राणों की रक्षा हो गई। ब्रह्मदत्त को वर्षों तक दूर देशों में दीर्घ से छिपकर रहना पड़ा। इस • जैन चरित्र कोश ••• *** 374
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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