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________________ बहुरूपा (आर्या ) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान जानना चाहिए। (देखिए - कमला आर्या ) बहुला श्रमणोपासक चुल्लशतक की पतिपरायण पत्नी । ( देखिए- मेतार्य मुनि) बालचन्द्र बालि -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 6 किष्किन्धा नरेश सूर्य का पुत्र, एक धीर, वीर और सुव्रती राजा । उसके अनुज का नाम सुग्रीव और सहोदरा का नाम श्री प्रभा था । पिता की प्रव्रज्या के पश्चात् बालि राजा बना। उसने सुग्रीव को युवराज पद दिया। बालि अपने समय का अजेय राजा था। लंकापति रावण ने उसे अपने अधीन बनाना चाहा। परिणामतः युद्ध की ठन गई । युद्ध में बालि ने रावण को पराजित कर दिया और उसके अहं को चूर करने के लिए उसे बगल में दबा लिया। हेमचन्द्राचार्य के अनुसार बालि ने रावण को बगल में दबाकर समुद्र सहित पृथ्वी की परिक्रमा कर डाली । आखिर अनुकंपा भाव लाकर बालि ने रावण को मुक्त कर दिया। उन्हें स्वयं भी राज्य को क्लेश का कारण मानकर संसार से विरक्ति हो गई। अनुज सुग्रीव को राज्यभार देकर वे दीक्षित हो गए और अष्टापद पर्वत पर ध्यान साधना और तप में लीन हो गए। एक बार पुष्पक विमान में बैठा रावण आकाश मार्ग से अष्टापद पर्वत के ऊपर से जा रहा था। उसने बालमुनि को ध्यानस्थ देखा तो उसके हृदय में प्रतिशोध का भाव उभर आया। उसने मुनि सहित पर्वत को उठाकर समुद्र में फैंकना चाहा। इस पर बालि मुनि सतर्क हो गए। उन्होंने पैर के अंगुष्ठ से पर्वत को दबा दिया। उससे रावण पर्वत के नीचे दब गया और गिड़गिड़ाकर मुनिवर से प्राणों की भीख मांगने लगा । आखिर मुनिवर बालि ने अपने अंगुष्ठ को संकोच लिया। रावण मुनि के चरणों पर अवनत होकर क्षमा मांगने लगा और अपने गंतव्य की ओर चला गया । मुनिवर बालि ने कठोर साधना की और घाती कर्मों का क्षय कर सिद्ध हुए । - जैन रामायण बाहुबली भगवान ऋषभदेव और सुनंदा के पुत्र । बाहुबली के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वे अप्रतिम बलशाली पुरुष थे। पूर्वजन्म में वे एक मुनि थे । उन्होंने एक लाख वृद्ध और ग्लान मुनियों की वैयावृत्त्य की थी। उसी सेवा के फलस्वरूप उन्हें अजेय बल प्राप्त हुआ था । भगवान ऋषभदेव ने मुनि बनने से पूर्व अपने सभी पुत्रों को राज्य के समान विभाग प्रदान किए थे। बाहुबली को बहली देश का राज्य प्राप्त हुआ था । चक्रवर्ती भरत षड्खण्ड को साधकर अयोध्या लौटे। पर सुदर्शन चक्र आयुधशाला के द्वार पर आकर ठहर गया। यह इस बात का प्रमाण था कि भरत की विजय यात्रा पूर्ण नहीं हुई है। पर्याप्त चिन्तन करने के ••• जैन चरित्र कोश - *** 369
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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