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________________ पटरानी असाध्य रोग से ग्रस्त हो गई। वैद्यों के समस्त उपचार व्यर्थ सिद्ध हुए। तब बलिभद्र ने रानी को रोगमुक्त किया। इससे महाराणा पर मुनि बलिभद्र का अतिशय प्रभाव पड़ा। महाराणा ने मुनि को बड़ी जागीर देनी चाही। पर मनि बलिभद्र ने उसे अस्वीकार कर दिया। इस घटना से मनि की त्यागवत्ति से महाराप चमत्कृत हो गया और उनका भक्त बन गया। अन्य अनेक लोग बलिभद्र के श्रावक बने। महाराणा ने नवीन .. श्रावक संघ के साथ मिलकर बलिभद्र मुनि की आचार्य पद पर प्रतिष्ठा की। हथंडी नगर का राठोडवंशीय राजा विदाघराज भी आचार्य बलिभद्र का अनन्य उपासक बना। हथंडी नगर में उसने आदिनाथ भगवान का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा वि.सं. 973 में आचार्य बलिभद्र के हाथों हुई। आचार्य बलिभद्र का गच्छ हथंडीगच्छ अथवा हस्तिकण्डगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हआ। बलिस्सह (आचार्य) ____ नंदी सूत्र के अनुसार एक श्रुतधर आचार्य । उनका आचार्य-काल आचार्य सुहस्ती के बाद का माना जाता है। वे आचार्य महागिरि के द्वितीय शिष्य थे। आचार्य बलिस्सह का जन्म कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। दीक्षा लेने के पश्चात् उन्होंने अपने गुरु आचार्य महागिरि से श्रुत का अध्ययन किया। विशेष प्रज्ञा सम्पन्न और मेधावी होने के कारण उनकी नियुक्ति वाचनाचार्य और गणाचार्य के पदों पर हुई थी। बाद में उनके गण की प्रसिद्धि 'उत्तर बलिस्सह गण' नाम से हुई। उत्तर उनके जयेष्ठ गुरुभ्राता थे। प्राप्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि सम्राट् खारवेल द्वारा आयोजित कुमारगिरि पर्वत पर श्रमण सम्मेलन में आचार्य बलिस्सह उपस्थित थे। आचार्य बलिस्सह का आचार्य काल वी.नि. 245 से माना जाता है। उनका स्वर्गवास वी.नि. 329 के लगभग अनुमानित है। -नन्दी सूत्र / कल्पसूत्र स्थविरावली (क) बहुपुत्रिका निरयावलिका सूत्र के अनुसार प्रथम देवलोक की एक देवी। पूर्वजन्म में वह वाराणसी नगरी के एक धनी सार्थवाह की सुभद्रा नाम की पत्नी थी। उसके कोई संतान न थी, पर उसकी संतान की लालसा अत्यन्त तीव्र थी। उसने संतानोत्पत्ति के लिए अनेक उपाय किए पर सफल न हुई। उसके निमित्त से धर्मध्यान भी किया, तंत्र-मंत्र भी जपे, पर पूर्वजन्म के निकाचित कर्म के कारण वह वन्ध्या ही रही। उदासीन होकर वह साध्वी बन गई। वह जहां भी गृहस्थों के बालक-बालिकाओं को देखती तो मुग्ध हो जाती, उन्हें खेलाने और खिलाने-पिलाने में तल्लीन बनकर साध्वाचार को विस्मृत कर बैठती। गुरुणी के पुनः-पुनः समझाने पर भी जब उसने अपनी लीक न बदली तो गुरुणी ने उसे संघ से निष्कासित कर दिया। वह अकेली रहने लगी। पर बालकों पर उसके अनुराग में न्यूनता नहीं हुई। अनशनपूर्वक मरकर वह बहुपुत्रिका नामक देवी बनी। स्वर्ग से च्यव कर वह जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के किसी नगर में ब्राह्मण-पुत्री होगी। वहां सोलह वर्षों में उसके बत्तीस पुत्र पैदा होंगे। यह उसकी पुत्र-लालसा का परिणाम होगा। पर इतने बालकों की सार-संभाल से वह आर्त बन जाएगी। पूर्वजन्म में जैसे उसने संतान के अभाव से उदासीन बनकर संयम लिया था. वैसे ही वहां संतानों के आधिक्य से संत्रस्त बनकर वह दीक्षित होगी। वहां से एक भव देवलोक का कर महाविदेह से सिद्ध होगी। -निरयावलिका, वर्ग 3, अध्ययन 4 (ख) बहुपुत्रिका (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 10 ...368 - .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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