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________________ पद्मसिंह को तलाशने में सफल भी हो गई। इतना ही नहीं, वह दूध-दही लेकर पद्मसिंह के पास जाने लगी। उससे परिचय बढ़ाया और शनैःशनैः उसे अपने वाग्जाल और रूपजाल में आबद्ध कर लिया। अपने मन्तव्य में सफल बनकर पद्मावती अपने स्थान (वसन्तपुर) लौट गई। नौ मास के पश्चात् उसने एक सर्वांग सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। ___उधर एक दिन पद्मसिंह का हृदय परिवर्तन हुआ। उसे अनुभव हुआ कि उसने पद्मावती के साथ घोर अन्याय किया है, जो बिना बात की बात बनाकर उसे अकेली छोड़ दिया। पश्चात्ताप करता हुआ सेठ वसंतपुर पहुंचा। वहां की स्थिति देखकर वह हैरान बन गया। आखिर परत-दर-परत रहस्य खुले। पद्मसिंह नारी शक्ति को देखकर दंग रह गया। पति-पत्नी मनोमालिन्य को दूर कर पुनः एक-आत्मा बन गए। सुदीर्घ काल तक घर में रहते हुए गृहस्थ धर्म का उन्होंने पालन किया। जीवन के पश्चिम भाग में समंधर मुनि से पद्मसिंह, पद्मावती और विजयवती ने दीक्षा ली। पद्मसिंह मुनि ने उत्कृष्ट चारित्राराधना द्वारा सर्व कर्म क्षय कर मोक्ष पद पाया। पद्मावती और विजयवती देवलोक में गईं। -पद्मावती-पद्मसी रास (मुनि बालू रचित) (क) पद्मा पूर्वजन्म में निषध कुमार की माता तथा महाबल नरेश की रानी। (ख) पद्मा (आर्या) इनका समस्त परिचय कमला आर्या के समान है। (दखिए-कमला आया). __-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 13 (ग) पद्मा (आर्या) पद्मा आर्या की समग्र कथा काली आर्या के समान है। विशेषता इतनी है कि इनका जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था और कालधर्म को प्राप्त कर यह सौधर्म कल्प के पद्मावतंसक विमान में शक्रेन्द्र महाराज की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी, जहां इनका आयुष्य सात पल्योपम का है। (देखिए-काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 9, अ. 1 (क) पद्मावती ___ बारहवें विहरमान तीर्थंकर प्रभु चंद्रानन स्वामी की जननी। (दखिए-श्री चंद्रानन स्वामी) (ख) पद्मावती एक राजकुमारी, जिसका पाणिग्रहण सुसीमा नगरी के राजकुमार देवयज्ञ (विहरमान तीर्थंकर) से हुआ था। (देखिए-देवयज्ञ स्वामी) (ग) पद्मावती ___षष्ठम् वासुदेव पुरुष पुण्डरीक की पटरानी। वह राजेन्द्रपुर नरेश उपेन्द्रसेन की सुपुत्री थी। उसका रूप और लावण्य अद्भुत था। उसके रूपाकर्षण में बन्धकर ही बलि ने पुरुष पुण्डरीक से युद्ध किया था, जिसमें उसकी मृत्यु हुई। वह पतिव्रता सन्नारी थी। (घ) पद्मावती महाराज कनकरथ की रानी और कनकध्वज की माता (देखिए-तेतलीपुत्र) ... 326 - जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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