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________________ पंडुभद्र आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य। -कल्पसूत्र स्थविरावली पंथक मुनि (देखिए-शैलक राजषि) पतंगसिंह ___ कंचनपुर नरेश जितशत्रु का इकलौता पुत्र। राजकुमार के जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने बताया था कि शिशु पर कष्ट की छाया है। कष्ट को काल बनने से तभी रोका जा सकता है, जब शीघ्र ही शिशु का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया। राजा ने खोज-पड़ताल कर ज्ञात कर लिया कि जनकपर नरेश जनकसेन को भी पुत्रीरत्न की प्राप्ति हुई है। महाराज स्वयं जनकपुर पहुंचे और जनकसेन से उसकी एक मास की वय वाली कन्या का हाथ अपने दो मास के पुत्र पतंग सिंह के लिए मांगा। जनकसेन की स्वीकृति पर नवजात शिशुओं को परिणयसूत्र में बांध दिया गया। ___पतंगसिंह पांच वर्ष का हुआ तो उसकी जननी का देहान्त हो गया। आठ वर्ष की अवस्था में उसे नगर से बाहर शान्त वनखण्ड में स्थित आचार्य के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए भेजा गया। मंत्रियों और मित्रों का दबाव मानकर राजा ने अनंगमाला नामक एक राजकुमारी से विवाह कर लिया। अनंगमाला युवा और सुरूपा थी। उसने शीघ्र ही राजा को अपने वश में कर लिया। राजा, मंत्री और आचार्य ने परस्पर मिलकर पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि विमाता से राजकुमार को छिपाकर रखा जाएगा। पतंगसिंह गुरुकुल में विद्याध्ययन करते हुए अठारह वर्ष का हो गया। शीघ्र ही उसकी शिक्षा पूर्ण होने वाली थी। राजा अनंगमाला पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगा था। उसे यह निश्चय हो गया था कि अनंगमाला विमाताओं जैसी विमाता नहीं है। अतः एक दिन उसने उसे अपने पुत्र के बारे में बता दिया। अनंगमाला पतंगसिंह को देखने के लिए उतावली हो गई। एक दिन उसने राजा की अनुपस्थिति में कपटपूर्वक पंतगसिंह को अपने पास बुलवा लिया। पंतगसिंह युवा और सुन्दर राजकुमार था। अनंगमाला उसके रूप-लावण्य पर मोहित हो गई। उसने राजकुमार से प्रणय-प्रार्थना की, जिसे सुनकर राजकुमार का हृदय वितृष्णा से भर गया। उसने युक्तियुक्त वचनों से माता को समझाने का यत्न किया। पर काम-विह्वला अनंगमाला पर उसकी हितशिक्षा का कोई प्रभाव नहीं हुआ। उसने कुमार को चेतावनी दे डाली कि वह या तो उसे चुन ले अथवा मृत्यु को चुन ले। राजकुमार अनंगमाला के पाश से निकलकर उसके महल से बाहर हो गया। इस पर अनंगमाला ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और राजकुमार पर उससे दुष्कर्म की चेष्टा का मिथ्यारोप लगा दिया। उसका नाटक सफल रहा और राजा ने अपने पुत्र के वध का आदेश दे दिया। उधर राजकुमार पंतगसिंह मंत्री और आचार्य के सहयोग से भागने में सफल हो गया। वह कई नगरों में घूमते-भटकते पहले वसंतपुर ... 320 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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