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________________ के अनशन के साथ वह पंचम् देवलोक का देवता बना। वहां से च्यव कर यहां आया है। पूर्व जन्म के तप के प्रभाव से ही निषध को ऐसा रूप और तेज प्राप्त हुआ है। भगवान के श्रीमुख से निषध का पूर्वभव सुनकर निषध सहित समस्त श्रोता अत्यन्त आह्लादित हुए। निषध पूरी तन्मयता से श्रावक धर्म का पालन करता था । कालान्तर में वह भगवान के पास दीक्षित हो गया। तप और संयम की सम्यक् आराधना करके तथा इक्कीस दिन के अनशन के साथ देह त्याग कर वह सर्वार्थसिद्ध में गया। वहां से च्यव कर महाविदेह में जन्म लेगा और संयम पालकर मोक्ष में जाएगा। नीर (देखिए - चन्दन राजा) नेमिचंद्र (आचार्य) एक जैन आचार्य । 'सिद्धान्त चक्रवर्ती' अलंकरण से आचार्य नेमिचन्द्र विभूषित थे, जो उनके गहन . सिद्धान्त ज्ञान को सिद्ध करता है । उनके गुरु का नाम अभयनन्दि था । वे दिगम्बर जैन आचार्य थे । गंग नरेश का प्रधानमंत्री और सेनापति चामुण्डराय आचार्य नेमिचन्द्र का परम भक्त था । चामुण्डराय का अपर नाम गोम्मट था। उसने श्री बाहुबली जी की विशाल मूर्त्ति का निर्माण कराया था, जो गाम्मटेश्वर के नाम से विख्यात हुई । आचार्य नेमिचन्द्र ने चामुण्डराय की विशेष प्रार्थना पर सैद्धान्तिक ग्रन्थ की रचना की और उस कृति का नाम गोम्मटसार रखा । आचार्य नेमिचन्द्र ने पर्याप्त साहित्य की रचना की, जिसमें गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणसार आदि ग्रन्थ विशेष रूप से विख्यात हैं । आचार्य नेमिचन्द्र का कालमान वी. नि. 15 वीं - 16 वीं सदी का माना जाता है। - गोम्मटसार कर्मकाण्ड नेमिनाथ (तीर्थंकर) जैन परम्परा के बाइसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि का ही अपरनाम । (विशेष परिचयार्थ देखिए - अरिष्टनेमि तीर्थंकर) नेमिप्रभ स्वामी ( विहरमान तीर्थंकर) सोलहवें विहरमान तीर्थंकर । अर्द्धपुष्करद्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र की नलिनावती विजय के अन्तर्गत स्थित वीतशोका नगरी में प्रभु का जन्म हुआ। वहां के महाराज वीर प्रभु के पिता हैं और सोनादेवी माता हैं । सूर्य के चिह्न से सुशोभित प्रभु ने यौवनावस्था में मोहिनी नामक राजकन्या से विवाह किया और तिरासी लाख पूर्व तक गृहवास में व्यतीत किए। तदनन्तर वर्षीदान देकर प्रभु ने दीक्षा धारण की। कैवल्य प्राप्त कर तीर्थ की स्थापना की। चौरासी लाख पूर्व का आयुष्य पूर्ण कर प्रभु मोक्ष में जाएंगे। नैषध अयोध्यापति महाराज नल के पिता । (देखिए - नल) ••• जैन चरित्र कोश •• 319
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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