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________________ हुए हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-1. जमाली, 2. तिष्यगुप्त, 3. आषाढ़ाचार्य के शिष्य, 4. अश्वमित्र, 5. गंग आचार्य, 6. रोहगुप्त, 7. गोष्ठामाहिल। उपरोक्त सात निन्हवों में से जमाली और तिष्यगुप्त भगवान महावीर की विद्यमानता में ही निन्हव दशा को प्राप्त हुए। शेष पांच वीर निर्वाण की तृतीय सदी से छठी सदी के मध्य हुए। सात निन्हवों में से द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम् निन्हव निन्हव-दशा को त्याग कर पुनः संघ में सम्मिलित हो गए। शेष तीन निन्हवावस्था में ही जीवनपर्यंत रहे। (सातों निन्हवों का परिचय नामानुक्रम में देखें) निम्बक उज्जयिनी निवासी जैन दर्शन के विद्वान ब्राह्मण अम्ब ऋषि का इकलौता पुत्र, मालुगा नामक ब्राह्मणी का आत्मज। अपने नाम के अनुरूप ही निम्बक झगड़ालू, अमिलनसार और अविनीत था। जब अल्पकालिक रुग्णता के बाद मालुगा का निधन हो गया तो अम्बऋषि ने सांसारिक नश्वरता से विरक्त बनकर आर्हती दीक्षा ले ली। निम्बक ने भी पिता का अनुगमन किया। पर निम्बक दीक्षित हो जाने पर भी अपने स्वभाव को बदल नहीं पाया। ज्येष्ठ मुनियों की वह अविनय करता, झगड़ता। गुरु और आचार्य द्वारा बार-बार समझाए जाने पर भी जब उसने अपना स्वभाव नहीं बदला तो उसे संघ से निकाल दिया गया। पुत्र-मोह के कारण अम्ब ऋषि भी निम्बक के साथ ही संघ से अलग हो गए। वे दोनों किसी दूसरे मुनिसंघ में गए, पर निम्बक के अविनीत स्वभाव के कारण उन्हें वहां से भी निकाल दिया गया। उन्होंने कई संघ बदले और प्रत्येक संघ से उन्हें निकाल दिया गया। इससे दुखी होकर अम्बऋषि एक वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगा। जिस निम्बक को कोई शिक्षा नहीं बदल पाई थी, उस निम्बक को पिता के आंसुओं ने बदल दिया। पिता के आंसुओं की भाषा ने उसे समझा दिया कि उसके पिता को भी उसके उच्छृखल व्यवहार का शिकार बनना पड़ रहा है। उसने पिता से क्षमा मांगी और अविनय को त्यागने का संकल्प कर लिया। पिता की अनुनय पर आचार्य श्री ने उनको संघ में सम्मिलित कर लिया और निम्बक ने अपने विनीत व्यवहार से सब मुनियों के हृदय जीत लिए। निरंभा (आर्या) आर्या निरंभा का जीवन परिचय शुंभा आर्या के समान है। विशेष जो है, वह है-इनके पिता का नाम निरंभ गाथापति और माता का नाम निरंभश्री था। (देखिए-शुंभा आया) । -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., द्वि.वर्ग, अध्ययन 4 निर्मोही नृप जैन परम्परा में निर्मोही नृप की कथा काफी प्रचलित है। निर्मोही नृप एक ऐसे राजा थे जिन्होंने मोह पर विजय प्राप्त कर ली थी। वे राज्य का संचालन निर्विकार, निर्लोभ और निर्मोह रहकर, मात्र कर्त्तव्य बोध के लिए करते थे। उनकी पत्नी और पुत्र भी उन्हीं के समान मोह विजेता थे। निर्मोही नृप के मोह-विजय की कथाएं लोक में किंवदंतियां बन गई थीं। लोक की सीमा को पार कर देवलोक में उनकी कीर्तिसुगंध व्याप्त हुई। एक बार देवराज इंद्र ने निर्मोही नृप के मोह-जय की गद्गद भाव से प्रशंसा की। ____एक देवता को इंद्र की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह निर्मोही नृप की परीक्षा के लिए भूमण्डल पर ... जैन चरित्र कोश ... - 317 -
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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