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________________ (ख) नारद जैन परम्परा के अनुसार नारद किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है। वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती आदि पदों की तरह नारद भी एक पद है। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में नौ-नौ नारद होते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ नारदों के नाम हैं-1. भीम, 2. महाभीम, 3. रुद्र, 4. महारुद्र, 5. काल, 6. महाकाल, 7. चतुर्मुख, 8. नवमुख, 9. उन्मुख। जैन और वैदिक-दोनों परम्पराएं इस सम्बन्ध में एकमत हैं कि नारद कलहप्रिय, अप्रतिबद्ध-विहारी और आजन्म ब्रह्मचारी होते हैं। दोनों ही परम्पराओं में नारद (नारदों) के हजारों किस्से उपलब्ध होते हैं, जो रोचक होने के साथ-साथ नैतिक और शिक्षाप्रद भी हैं। नारद परिव्राजक की-सी वेशभूषा में निरंतर परिव्रजनशील रहते हैं। परिव्रजन ही उनका स्वभाव होता है। उनकी दो ही गतियां होती हैं-स्वर्ग अथवा मोक्ष। (क) नारायण सिद्धत्यपुर नगर के राजपुरोहित यज्ञदत्त का पुत्र, एक जिज्ञास यवक। एक बार जब यज्ञदत्त राजा के आदेश पर पशु बलि यज्ञ करने की तैयारी कर रहा था तो नारायण ने उससे पूछा कि पशु बलि में धर्म कैसे हो सकता है। पिता ने वेदों के प्रमाण देने का प्रयत्न किया, पर वह यह सिद्ध नहीं कर सका कि पशु बलि पुण्य का कारण हो सकता है। नारायण धर्म के शुद्ध स्वरूप को जानने के लिए घर से प्रस्थित हुआ। वह विभिन्न सम्प्रदायों के संतों और आचार्यों से मिला, परन्तु उसे कहीं भी संतोषजनक समाधान नहीं मिला। आखिर एक जैन मुनि ने उसे धर्म के शुद्ध स्वरूप का बोध प्रदान किया। मुनि के उपदेश से नारायण विश्वस्त बन गया कि अहिंसा ही धर्म का प्राण है, अहिंसा की आराधना ही धर्म की आराधना है। नारायण ने श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किए और तन-मन-प्राण से व्रतों का पालन किया। सर्व कर्म निवृत्त होकर वह मोक्ष का अधिकारी बना। -कथा रत्नकोष - भाग 1 (ख) नारायण ___अष्टम् वासुदेव लक्ष्मण का जन्मना नाम । लक्ष्मण अपने जन्मना नाम 'नारायण' से कम और 'लक्ष्मण' इस नाम से अधिक विख्यात हैं। (विशेष परिचय के लिए देखिए-लक्ष्मण वासुदेव) निगंठ ___महावीर का एक नाम निगंठ भी है, जिसका संस्कृत रूप है-निर्ग्रन्थ । निर्ग्रन्थ अर्थात् वह साधक, जो मोह-ममत्व आदि संबंधों तथा क्रोध-कामादि समस्त कषाय-बन्धनों से मुक्त हो गया है। बौद्ध धर्मग्रन्थों में महावीर के लिए इस नाम का बहुव्यवहार हुआ है। (क) निन्हव निन्हव अथवा निर्णय नामक एक अनार्य व्यापारी, जो पुरिमताल नगर का निवासी था। (विशेष परिचय , के लिए देखिए-अभग्नसेन चोर) -विपाकसूत्र द्वि श्रु., अ.3 (ख) निन्हव 'निन्हव' जैन पारिभाषिक शब्द है। निन्हव उसे कहा जाता है जो जैन श्रमण की वेश-भूषा में रहते हुए ही तीर्थकर भाषित सिद्धान्त के विपरीत प्ररूपणा करता है। भगवान महावीर के धर्मतीर्थ में सात निन्हव .. 316 ... - जैन चरित्र कोश ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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