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________________ नंदीषेण नंदीग्राम के एक दरिद्र ब्राह्मण के पुत्र थे और जन्म से ही अत्यन्त कुरूप थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहान्त हो गया था । मामा ने उनका पालन-पोषण किया। एक बार मामा के पुत्रों का विवाह होते देख नंदीषेण भी विवाह के लिए ललचाया। उसने अपनी इच्छा मामा से कही। मामा की सात पुत्रियां थीं। मामा ने अपनी पुत्रियों को नंदीषेण से विवाह के लिए कहा तो पुत्रियों ने स्पष्टतः इन्कार करते हुए कहा कि वे नंदीषेण से विवाह करने के स्थान पर मर जाना पसंद करेंगी। इससे नंदीषेण को अपने आप से हो गई। आत्महत्या के संकल्प के साथ वह एक पर्वत शिखर पर चढ़ गया। सौभाग्य से वहां एक मुनि के उसे दर्शन हुए। मुनि ने नंदीषेण की दशा को देखा और उसे मानव जीवन का महत्व समझाया। मुनि ने संयम और सेवा का उपदेश नंदीषेण को दिया। मुनि के वचनों पर श्रद्धा कर नंदीषेण ने संयम ग्रहण कर लिया। सेवाव्रत के साथ-साथ वह बेले - बेले का तप करने लगा। जहां भी उसे वृद्ध, ग्लान और सेव्य संत मिलता वह पूर्ण समर्पण भाव से सेवा में जुट जाता। इससे नंदीषेण का यश चतुर्दिक् व्याप्त हो गया । घृणा एक बार देवराज इन्द्र ने अपनी परिषद् में नंदीषेण मुनि के सेवा भाव की मुक्त कंठ से प्रशंसा की । एक देव नंदीषेण की सेवा की परीक्षा के लिए आया । नंदीषेण मुनि बेले का पारणा करने के लिए बैठ ही रहे थे कि वह देव एक युवा मुनि का रूप धरकर उनके पास पहुंचा और बोला, वाह सेवाव्रति! लोगों को दिखाने को सेवाव्रती बने हो ! फलां स्थान पर एक वृद्ध मुनि अतिसार से पीड़ित है और तुम यहां भोजन करने में मस्त बने हो! सुनकर नंदीषेण तत्क्षण खड़े हो गए और वृद्ध मुनि के पास पहुंचे और मुनि को विनय भाव सहित अपने कंधे पर बैठाकर उपाश्रय की ओर चल दिए। वृद्ध मुनि ने नंदीषेण के कन्धे पर बैठे-बैठे ही दुर्गन्धमय मल-मूत्र से उनका शरीर भर दिया। पर नंदीषेण के मन में तनिक भी घृणा का भाव नहीं आया। वृद्ध मुनि रूपी देव ने कटूक्तियों और मुष्ठि प्रहारों से नंदीषेण को चलित बनाना चाहा, पर नंदीषेण के हृदय में तो भक्ति भाव और समता भाव का सागर लहरा रहा था। देखकर देवता दंग रह गया । वास्तविक रूप प्रकट होकर वह मुनि के चरणों में अवनत हो गया और बोला, देवराज का कथन अक्षरशः सच है । आपकी सेवा अद्भुत है। सुदीर्घ काल तक नंदीषेण मुनि ने सेवा और संयमव्रत का पालन कर देहोत्सर्ग किया और आठवें देवलोक गए। पर देहोत्सर्ग से पूर्व ही उन्होंने एक निदान कर लिया कि अगर उनकी करणी का कोई फल है तो वे जन्मान्तर में स्त्रीवल्लभ बनें। उसी निदान के फलस्वरूप नंदीषेण का जीव स्वर्ग से च्यवन करने पर वसुदेव के रूप में जन्मा, जिसका रूप कामदेव के समान सुन्दर था । वसुदेव स्त्रीवल्लभ थे और बहत्तर हजार स्त्रियों के साथ उन्होंने पाणिग्रहण किया था। देवकी उनकी पटरानी थी, जिससे श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । - आवश्यक चूर्णि नंदोत्तरा महाराज श्रेणिक की रानी । परिचय नंदा के समान है । - अन्तगडसूत्र वर्ग 7, अध्ययन 3 नकुल हस्तिनापुर नरेश महाराज पाण्डु की द्वितीय रानी माद्री का अंगजात। सहदेव उसका सहोदर था । नकुल अश्वकला में प्रवीण था । वह एक अति सुरूप पुरुष था । वह वीर और धीर था । आजीवन अपने भाइयों का अनुगामी बनकर देहच्छायावत् उनके पीछे-पीछे चलता रहा। अंत में अग्रजों के साथ प्रव्रजित बन उसने भी गति प्राप्त की। *** 304 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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