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________________ में दूध फट जाता। घी खराब हो जाता। यह सब होता पर सुनंदा को इस सब की चिन्ता नहीं थी। नंदा कुशल गृहिणी थी। उसने गायों और गोपालकों का पूरा ध्यान रखा। उसकी गायें हृष्ट-पुष्ट हो गईं और प्रभूत दूध देने लगीं। वह शुद्ध और स्वच्छ बर्तनों में दूध और घी को रखती। फलतः उसके पास घी-दूध की प्रचुरता रहती। निश्चित समय पर अशोक को वाराणसी नरेश को एक हजार घृतघट भेंट करने थे। उसने सुनंदा से पांच सौ घृतघट मांगे। सुनकर सुनंदा सहम गई। वह बोली, घर में तो एक घड़ा भी घी नहीं है, पांच सौ घड़े कहां से आएंगे। सुनंदा का उत्तर सुनकर अशोक निराश हो गया। वह नंदा के पास गया। उससे सारी स्थिति कही। पति को निराश देखकर नंदा ने दो हजार घृतघट उसकी सेवा में प्रस्तुत कर दिए। नंदा की कार्यकुशलता और पतिभक्ति पर अशोक गद्गद हो गया। उसने सुनंदा से गृहदायित्व के समस्त अधिकार वापिस ले लिए और नंदा को गृहस्वामिनी और सुनंदा को सेविका के कार्य प्रदान किए। पति का प्रीतिभाव नंदा पर सघन और सुनंदा पर शून्य हो गया। -बृहत्कथा कोष, भाग 1 (हरिषेण) (ख) नंदा ___ महाराज श्रेणिक की रानी । किसी समय भगवान महावीर राजगृह नगरी के गुणशीलक उद्यान में पधारे। परिषद् भगवान के दर्शनों के लिए निकली। महारानी नंदा भी भगवान के दर्शन करने गई। भगवान ने देशना दी। देशना सुनकर नंदा को वैराग्य हो आया। उसने अपने पति महाराज श्रेणिक की आज्ञा लेकर दीक्षा धारण कर ली। उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और बीस वर्ष तक चारित्र पाल कर सिद्ध हुई। -अन्तगडसूत्र वर्ग 7, अध्ययन 1 (ग) नंदा ___ एक पतिपरायणा सन्नारी, जिसे पूर्वोपार्जित कर्मों के परिणामस्वरूप कई कष्टों का सामना करना पड़ा, पर वह अपने धर्म पर दृढ़ रही और अंततः जगत में यशस्वती बनी। (देखिए-समुद्रदत्त) (घ) नंदा नवम् गणधर अचलभ्राता की माता। (ङ) नंदा भगवान शीतलनाथ की जननी। नंदिनीपिता श्रावक भगवान महावीर का एक अग्रगण्य श्रावक। वह सावत्थी नगरी का एक कोटीश्वर गाथापति था। 'अश्विनी' उसकी पत्नी का नाम था। उपासकदशांग के अनुसार उसके पास बारह कोटि सोनैये तथा दस-दस हजार गायों के चार गोकुल थे। उसने पन्द्रह वर्षों तक विशुद्ध श्रावक-धर्म का पालन किया। अन्त में अपने ज्येष्ठ पुत्र को गृह-दायित्व सौंपकर उसने अनशन कर लिया। एक मास के अनशन के साथ देह-त्यागकर वह प्रथम स्वर्ग में गया। महाविदेह से सिद्ध होगा। नंदिवर्द्धन महावीरकालीन आबू नगर का राजा। .. जैन चरित्र कोश . - 301 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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