SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ख) नंद गोकुल का एक गृहपति, जो वसुदेव का मित्र था और जिसके घर वासुदेव श्रीकृष्ण का लालन-पालन हुआ था। (देखिए देवकी) (ग) नंद (देखिए - धर्मरुचि तपस्वी) (घ) नंद अरिहंत अरिष्टनेमि के प्रमुख श्रावकों में से एक। नंदन (बलदेव) - कल्पसूत्र वर्तमान अवसर्पिणी काल के सप्तम् बलदेव । सुदीर्घ काल तक उन्होंने अपने भाई वासुदेव दत्त के राज्य संचालन में अपना सहयोग दिया। अन्त में नंदन मुनि बन गए। उन्होंने उत्कृष्ट संयम की आराधना की और विविध तप साधनाओं से समस्त कर्मों को निर्जीर्ण कर मोक्ष पद प्राप्त किया । नंदन भद्र श्रमण परम्परा के षष्ठम् पट्टधर और चतुर्थ श्रुतकेवली आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य । - कल्पसूत्र स्थविरावली नंदन मणिकार राजगृह नगर का एक समृद्ध और प्रतिष्ठित सद्गृहस्थ, जिसने भगवान महावीर से श्रावक धर्म ग्रहण किया था । परन्तु लम्बे समय तक संत दर्शन का सुयोग न मिलने से उसकी धर्मश्रद्धा क्षीण होने लगी । किसी समय प्रचण्ड गर्मी के मौसम में उसने तेला किया। तृतीय रात्रि में उसे गर्मी की प्रचण्डता के फलस्वरूप तीव्र प्यास लगी। नींद उचट गई। संकल्प-विकल्पों का संगम स्थल बन गया उसका मानस प्रदेश । उसे विचार आया कि सच्चे धर्मात्मा तो वे लोग हैं, जो कूपों और बावड़ियों का निर्माण कराते हैं, जहां प्यासे प्राणी पानी पीते हैं और स्नान आदि करते हैं। मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए। 1 दूसरे दिन नंदन ने राजा से अनुमति प्राप्त की और नगर के बाहर विशाल भूखण्ड खरीदकर बावड़ी बनवानी शुरू कर दी। शीघ्र ही बावड़ी तैयार हो गई। उसके चारों कोनों पर उसने चित्रशाला, भोजनशाला, अलंकारशाला और चिकित्सालय की स्थापना कराई। पथिक उस बावड़ी पर पानी पीते, स्नान करते और मुक्त मन से नंदन की प्रशंसा करते। अपनी प्रशंसा सुनकर नंदन को बड़ा सुख मिलता। नंदन को वह बावड़ी स्थल इतना मोहक लगता था कि उसने उसे ही अपना आवास बना लिया। पर वह वृद्ध तो था ही, दुर्दैववश एक बार रोगाक्रान्त बना और मर गया। बावड़ी में विशेष अनुराग होने के कारण वह उसी में मेंढ़क के रूप में जन्मा । एक बार कुछ पथिक बावड़ी में स्नान कर रहे थे। साथ ही वे नंदन मणिकार का गुणगान भी कर रहे थे। यह शब्द सुनकर मेंढ़क को 'नंदन' नाम जाना-पहचाना सा लगा । चिन्तन गहन बना तो उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया । पूर्वजन्म का पूर्ण वृत्त उसकी स्मृतियों में तैर गया। उसे लगा कि बावड़ी की आसक्ति ही उसके पतन का कारण बनी है। उसने उसी अवस्था में भगवान महावीर की साक्षी से ग्यारह श्रावक व्रत *** 298 - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy