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________________ (क) नंद ताम्रलिप्ति नगरी का रहने वाला एक वणिकपुत्र । उसकी पत्नी का नाम सुंदरी था, जो एक पतिव्रता सन्नारी थी। पति-पत्नी के मध्य अगाध प्रेम भाव था। एक बार नंद के मन में विचार आया कि युवा पुत्र को पिता की सम्पत्ति पर ही आश्रित होकर नहीं रहना चाहिए। सुपुत्र वही है, जो पिता की सम्पत्ति को बढ़ाए। ऐसा सोचकर उसने व्यापार के लिए विदेश जाने का निश्चय किया। सुंदरी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। जहाजों में माल भर कर नंद विदेश पहुंचा। वहां उसने पर्याप्त लाभ अर्जित कर माल बेचा। फिर वहां जो माल सस्ता मिलता था, उससे जहाज को भरा और अपने देश के लिए रवाना हुआ। दुर्दैववश समुद्री हिमखण्ड से टकराकर उसका जहाज भंग हो गया। नंद और सुंदरी को एक काष्ठ खण्ड हाथ लग गया और उसके सहारे वे एक किनारे पर पहुंच गए। वहां एक जंगल था। दोनों जंगल में आगे बढ़े। कुछ दूर चलने पर सुंदरी को जोरों से प्यास लगी। वह चलने में असमर्थ हो गई। पत्नी को एक वृक्ष की छाया में बैठाकर नंद पानी की तलाश में गया। थोड़ी ही दूर जाने पर उसे एक सिंह दिखाई दिया। नंद सन्न रह गया। पास ही वृक्ष पर बन्दर उछल-कूद कर रहे थे। नंद ने सोचा, मैं बन्दर होता तो उछलकर वृक्ष पर चढ़ जाता .... । उसी क्षण सिंह ने नंद पर आक्रमण कर दिया। आर्त्त - रौद्र ध्यान में डूबे नंद ने प्राण त्यागे और मृत्यु क्षण के विचार के अनुसार वह मरकर बन्दर बना । सुंदरी पति की प्रतीक्षा करती रही। उसके न लौटने पर उसका हृदय दुराशंका से घिर गया। वह वि करने लगी। उसी समय उधर श्रीपुर नरेश प्रियंकर वन विहार करता हुआ आया। उसने सुंदरी की व्यथा-कथा पूछी। वह उसे अपने साथ अपने नगर में ले गया। उसने सुंदरी के भोजन और आवास की व्यवस्था अपने ही महल में कर दी। कुछ दिन बाद सुंदरी का शोक कम हो गया। राजा ने उससे प्रणय निवेदन किया। पर सुंदरी एक पतिव्रता नारी थी। उसने राजा को युक्तियुक्त वचनों से समझाया। पर राजा को समझाने में वह सफल न हो सकी। तब सुंदरी ने एक कल्पित अभिग्रह की बात कहकर कुछ मास का समय राजा से ले लिया । उधर नंद का जीव बन्दर के रूप में जन्मा । उसे एक मदारी ने पकड़ लिया। एक बार मदारी उस बन्दर को लेकर श्रीपुर नगर में आया । मदारी की तान पर बन्दर कौतुक दिखाने लगा । गवाक्ष से सुंदरी भी बन्दर का कौतुक देख रही थी । सहसा बन्दर की दृष्टि भी सुंदरी पर पड़ी। पूर्व जन्म की अतिशय प्रीति के कारण बन्दर को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अनशन करके देह त्याग दी। मरकर वह महर्द्धिक देव बना । देवलोक में उसने अवधिज्ञान का उपयोग लगाया और अपनी पत्नी सुंदरी को देखा। वह सुंदरी के पास आया । राजा भी वहां उपस्थित हुआ । देव ने नंद के भय से वर्तमान तक की अपनी यात्रा - कथा कही, जिसे सुनकर राजा और सुंदरी - दोनों ही विरक्त हो गए। सुंदरी ने संयम की परिपालना कर देवगति प्राप्त की । राजा भी देव पद का अधिकारी बना। कालक्रम से ये तीनों ही जीव मोक्ष में जाएंगे। - उपदेश पद, गाथा 30 जैन चरित्र कोश + 297 944
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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