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________________ अन्य अनेक राजाओं और महाराजाओं पर आचार्य धर्मघोष का प्रभाव था। आचार्य धर्मघोष ने 'धम्मकप्पदुमो' और 'गृहीधर्म परिग्रह परिमाण' नामक दो ग्रन्थों की भी रचना की थी। उनके नाम से ही 'धर्मघोष गच्छ' प्रचलित हुआ। (ग) धर्मघोष (गाथापति) ___ महाघोष नामक नगर में रहने वाला एक धर्मनिष्ठ गाथापति। एक बार उसने ऊंचे भावों से धर्मसिंह नामक एक मासोपवासी अणगार को आहार दान दिया। फलतः उसने उत्कृष्ट पुण्यों का अर्जन किया। आयुष्य पूर्ण कर वह सुघोष नगर में राजपुत्र के रूप में जन्मा, जहां उसका नाम भद्रनंदी कुमार रखा गया। भद्रनंदी कुमार भगवान महावीर का शिष्य बना और मोक्ष में गया। (देखिए-भद्रनंदी कुमार) -विपाकसूत्र द्वि श्रु., अ.8 धर्मदास (आचार्य) श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा के एक तेजस्वी और क्रियोद्धारक आचार्य। आचार्य धर्मदास जी का जन्म अहमदाबाद के निकटवर्ती ग्राम सरखेज में वी.नि. 2171 (वि. 1701) में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ। उनकी जाति भावसार थी। उनकी माता का नाम डाहीबाई और पिता का नाम जीवनदास था। धर्मदास बचपन से ही एक धर्मरुचि-सम्पन्न बालक थे। उन्होंने यति तेजसिंह और श्रावक कल्याण जी से धर्म शिक्षा प्राप्त की। धर्म शिक्षा से उनका मन संसार से विरक्त हो गया। दीक्षा ग्रहण करने के लिए वे कई यतियों और मुनियों के पास गए, पर कहीं भी उन्हें आत्मतोष प्राप्त नहीं हुआ। आखिर सोलह वर्ष की अवस्था में उन्होंने स्वयं ही मुनि दीक्षा अंगीकार की। यह घटना वी.नि. 2186 (वि. 1716) की है। __ मुनि धर्मदास जी एक साहसी और उत्साही पुरुष थे। ज्ञान-दर्शन और चारित्र के वे उत्कृष्ट आराधक थे। उनकी देशना में आकर्षण था। अल्प दीक्षा पर्याय में ही उनके कई शिष्य बन गए। 21 वर्ष की अवस्था में संघ ने उनको आचार्य पद पर नियुक्त किया। आचार्य धर्मदास जी का सुयश दूर-दूर तक व्याप्त हुआ। ग्वालियर नरेश उनके व्यक्तित्व से विशेष प्रभावित था। उनके उपदेश से प्रभावित होकर उसने आषाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन शिकार, मांस व मद्य का परित्याग किया था। __ आचार्य धर्मदास जी की शिष्य संपदा विशाल थी। उनके शिष्यों की संख्या 99 थी। वी.नि. 2242 में धार नगरी में आचार्य धर्मदास जी ने अपने शिष्यों के 22 दल बनाकर उन्हें धर्मप्रचार की आज्ञा दी। तभी से उनका धर्मसंघ 22 टोले सम्प्रदाय के नाम से पहचाना जाने लगा। उनके एक शिष्य का नाम लूणकरण था। उसने आजीवन अनशन व्रत (संथारा) स्वीकार किया। पर दुर्बल मानसिकता के कारण वह उसका निर्वाह नहीं कर पाया। जिनधर्म के गौरव की रक्षा के लिए आचार्य धर्मदास जी ने शिष्य लूणकरण का आसन स्वयं ग्रहण कर सफलतापूर्वक आजीवन अनशन की आराधना की। अनशन के सातवें दिन समाधि अवस्था में उनका स्वर्गवास हो गया। यह घटना वी.नि. 2242 की है। धर्मदासगणि महत्तर (आचार्य) __ “उपदेशमाला' नामक प्राचीन ग्रन्थ के रचयिता एक विद्वान जैन मुनि। उक्त ग्रन्थ में आध्यात्मिक उपदेशों और दृष्टान्तों को प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ की 544 गाथाएं हैं। धर्मदासगणि महत्तर मुनि भूमिका में प्रवेश करने से पूर्व विजयपुर नगर के राजा थे। उनका नाम विजयसेन ... जैन चरित्र कोश .. - 289 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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