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________________ कमठ को सावधान किया कि उसका तप अज्ञान तप है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि उसकी धूनी की अग्नि में जल रहे लक्कड़ में नागयुगल विद्यमान है और उसकी तपस्या के हित नागयुगल के प्राण संकट में हैं। इससे कमठ चौंका। उसने राजकुमार पार्श्व को घूरा और उन्हें उनका कथन प्रमाणित करने के लिए कहा । पार्श्वकुमार ने सेवकों 'आदेश देकर सावधानीपूर्वक वह लक्कड़ चिरवाया। उसमें से मरणासन्न नाग निकले। नागयुगल को महामंत्र नवकार सुनाया गया। महामंत्र को सुनकर और पार्श्व रूप में एक परमपुनीत आत्मा को अपने निकट पाकर नागयुगल ने शान्तिपूर्वक देहोत्सर्ग किया और नागयुगल धरणेन्द्र और पद्मावती नामों से भवनपति देवों के इन्द्र और इन्द्राणी बने । उधर कमठ का यश अपयश में बदल गया। तिरस्कृत होकर इतस्ततः भटकते हुए तथा अज्ञ करते हुए देहोत्सर्ग कर वह असुर कुमार देवों में मेघमाली नामक देव बना । श्रमण पार्श्व आध्यात्मिक साधना में तल्लीन थे। पूर्व वैरवश मेघमाली ने प्रचण्ड वर्षा कर प्रभु को उपसर्ग दिया। अपने उपकारी प्रभु के जीवन को उपसर्ग में देख धरणेन्द्र और पद्मावती तत्काल वहां उपस्थित हुए। धरन्द्र ने प्रभु के सर पर सात फनों का छत्र बनाया और कुण्डली मारकर कमलासन की मुद्रा में अवस्थित हो प्रभु को अपने शरीर पर धारण कर लिया। मेघमाली (कमठ) का कुछ वश नहीं चल पाया। तदनन्तर धरणेन्द्र ने मेघमाली को कठोर शब्दों में प्रताड़ित किया । भयभीत मेघमाली ने प्रभु पार्श्व के चरणों में त हो कर अपने किए की क्षमा मांगी। धरणेन्द्र-पद्मावती से सम्बन्धित कई मंत्र, स्तवन और स्तुतियां वर्तमान में भी विद्यमान हैं, जो अतिशय प्रभावशाली हैं। धरसेन (आचार्य) आचार्य धरसेन दिगम्बर परम्परा के एक महान प्रभावक और श्रुतधर आचार्य थे। संभवतः उनके गुरु का नाम माघनंदी था। आचार्य धरसेन ने श्रुत सम्पदा की सुरक्षा के लिए सुन्दर यत्न किया। उन्होंने संघ के दो विशिष्ट मेधा सम्पन्न मुनियों को श्रुत दान दिया। उन मुनियों के नाम क्रमशः ये थे - भूतबलि और पुष्पदंत । नंदीसंघ पट्टावली के अनुसार आचार्य धरसेन का समय वी. नि. 614 से 633 तक सिद्ध होता है । - नंदी संघ पट्टावली धर्म (आचार्य) श्रमण परम्परा के एक आचार्य | आचार्य मंगू के पश्चात् आचार्य धर्म का शासन काल माना जाता है। वे 24 वर्षों तक आचार्य पद पर रहे। वि.नि. 494 में उनका स्वर्गवास हुआ। - नंदी: सूत्र स्थविरावली (क) धर्मघोष (आचार्य) धर्मरुचि अणगार के गुरु | इस नाम के अन्य अनेक आचार्यों और मुनियों का भी जैन पौराणिक साहित्य में उल्लेख मिलता है। (ख) धर्मघोष (आचार्य) .. की 17वीं सदी में धर्मघोष नामक बड़े ही प्रभावशाली, मधुर उपदेष्टा और वादनिपुण आचार्य हुए। शाकंभरी नरेश अर्णोराज की सभा में शास्त्रार्थ में उन्होंने दिगम्बराचार्य गुणधर को पराजित किया था । ... 288 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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