SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजदोष के कारण उसे भी कारागार में डाल दिया गया। संयोग से उसे विजय चोर की कोठरी में ही रखा गया और विजय चोर के साथ ही संयुक्त हथकड़ियां-बेड़ियां उसे पहनाई गई। धन्य के लिए यह घोर आत्मग्लानि का कारण रहा, पर वह विवश था, सो पुत्रहंता के साथ ही उसे रहना पड़ा। भद्रा ने सेवक के हाथ पति के लिए भोजन भेजा। धन्य भोजन करने लगा तो क्षुधातुर विजय चोर ने उससे भोजन की याचना की। धन्य ने घृणापूर्वक उसे भोजन देने से इंकार कर दिया। कुछ समय बाद धन्य को शौच की शंका हुई। वह विजय चोर के साथ संयुक्त बंधन से बंधा था, अतः उसके सहयोग के बिना शौच-स्थल तक जाना संभव न था। उसने विजय चोर से शौच-स्थल तक चलने को कहा। विजय चोर ने उसका सहयोग करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। आखिर सेठ द्वारा उसे भोजन का भाग देने का आश्वासन दिए जाने पर उसने सेठ का सहयोग किया। दूसरे दिन धन्य सार्थवाह ने आत्मग्लानि को छिपाते हुए पुत्रहंता चोर को अपने भोजन का भाग दिया। भद्रा को इस बात की सूचना मिली तो वह पति से रुष्ट हो गई। धन्य के परिजनों द्वारा राजकोष में अपेक्षित धन जमा करा देने पर धन्य को मुक्त कर दिया गया। सभी ने धन्य का स्वागत किया, पर भद्रा ने उसका स्वागत नहीं किया। वस्तुस्थिति से परिचित होकर धन्य ने अपनी विवशता की कथा भद्रा को सुनाई। आखिर भद्रा समझ गई कि कभी-कभी आवश्यकता की संपूर्ति के लिए शत्रु का भी सहयोग करना पड़ता है। उसने अपनी भूल के लिए पति से क्षमा मांगी। ____धन्य सार्थवाह श्रमणों के उपदेश से संसार की असारता को पहचानकर श्रमण धर्म में दीक्षित हो गया और संयम की आराधना द्वारा देवलोक का अधिकारी बना। सार्थवाह कालक्रम से देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहां विशुद्ध चारित्र पालकर सिद्ध होगा। -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, अध्ययन 2 (क) धन्या ___ सुरादेव श्रमणोपासक की धर्मपली। (देखिए-सुरादेव श्रमणोपासक) (ख) धन्या राजगृह के निकटवर्ती ग्राम में रहने वाली एक निर्धन ग्वालिन, संगम की माता। शालिभद्र के भव में जब संगम मुनि बना तो उसे भिक्षा के लिए आते हुए देखकर उस वृद्धा का अंग-अंग पुलकित हो गया और उसके स्तनों से दुग्ध धार बह चली । उसने अपने अपहचाने पुत्र को दुग्धाहार बहराया। बाद में भगवान महावीर ने शालिभद्र को स्पष्ट किया कि वह उसके पूर्वभव की माता है। (दखिए-संगम) धन्वंतरी वैद्य प्राचीनकालीन विजयपुर नगर निवासी एक वैद्य। (दखिए-उम्बरदत्त) धम्मिल कुशाग्रपुर नगर के श्रेष्ठी सुरेन्द्रदत्त का पुत्र । धम्मिल सर्वांग सुन्दर, बल-बुद्धि सम्पन्न और पुरुष की बहत्तर कलाओं में निष्णात था। यौवनावस्था में प्रवेश करने के बाद भी उसके हृदय में सांसारिक भोगोपभोगों के प्रति अरुचि थी। पिता सुरेन्द्रदत्त ने धम्मिल का विवाह यशोमती नामक श्रेष्ठीकन्या से किया। पर भोगों में अरुचि होने के कारण धम्मिल पत्नी से दूर ही रहता था। पिता ने इस रहस्य को जाना तो वह चिन्तित हो ... 286 .. .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy