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________________ पड़ा। जीवन के समस्त रंग द्रौपदी के जीवन में दिखाई पड़ते हैं। द्रौपदी का संक्षिप्त परिचय निम्नोक्त है ___ द्रौपदी पांचाल देश के कांपिल्यपुर नगर के महाराज द्रुपद की पुत्री थी। जब वह युवा हुई तो उसका रूप और सौन्दर्य अत्यधिक निखर आया। महाराज द्रुपद ने द्रौपदी के लिए स्वयंवर की रचना की। अनेक देशों के बड़े-बड़े राजा स्वयंवर में पहुंचे। द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी, पर पूर्वजन्म में द्रौपदी द्वारा किए गए निदानस्वरूप उस द्वारा अर्जुन के गले में डाली गई वरमाला शेष चार पाण्डवों के गले में भी . दिखाई देने लगी। वस्तुतः पूर्वजन्म में द्रौपदी सुकुमारिका नाम की एक श्रेष्ठी-पुत्री थी। उसने प्रव्रजित होकर कठोर तप किया था। वह बेले-बेले पारणा करती थी और सूर्य की आतापना लेती थी। एक बार उसने पांच पुरुषों से घिरी एक स्त्री को देखा। उससे सुकुमारिका साध्वी का संयम-चिन्तन क्षण-भर के लिए विदग्ध बन गया। उसने मन ही मन निदान किया कि अगर उसके तप का कोई फल है तो उसे भी अगले भव में पांच पति मिलें। उस निदान के फलस्वरूप द्रौपदी की वरमाला पांचों पाण्डवों के गले में दिखाई देने लगी और उसे पांचों पाण्डवों की पत्नी माना गया। वह पांचों भाइयों के साथ सुखपूर्वक रहने लगी। ___ युधिष्ठिर चूतप्रिय थे। एक बार वे दुर्योधन और शकुनि से द्यूत में अपना राजपाट हार गए। उन्होंने स्वयं सहित पांचों भाइयों तथा द्रौपदी को भी द्यूत में हार दिया। उन्हें कौरवों की दासता स्वीकार करनी पड़ी। इतना ही नहीं, बल्कि दुर्योधन और दुशासन ने द्रौपदी को राजसभा में अपमानित और तिरस्कृत भी किया। अंततः पांचों पाण्डवों को तेरह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा। द्रौपदी भी अपने पतियों के साथ वन में गई। वन में कितनी ही बार द्रौपदी को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। वनवासकाल का अन्तिम वर्ष पाण्डवों को गुप्त रहकर बिताना था। यह शर्त थी कि यदि तेरहवें अज्ञात वर्ष में पाण्डवों को पहचान लिया गया तो उन्हें पुनः तेरह वर्ष वनों में ही गुजारने पड़ेंगे। पाण्डवों ने अज्ञातवास विराट नगर में बिताया। राजमहल में भीम को रसोइए का, द्रौपदी को दासी का, अर्जुन को बृहन्नला के रूप में विराटराज की पुत्री को नृत्य सिखाने का और युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव को भी उनके अनुकूल कार्य मिल गए। विराटराज का सेनापति कीचक, जो विराटराज का साला भी था और साथ ही अतिशय बलवान और खूखार भी था, वह द्रौपदी के रूप पर आसक्त बन गया। द्रौपदी को अपना शील धर्म संकट में जान पड़ा तो उसने भीम से सहायता मांगी। एक सुनियोजित योजनानुसार द्रौपदी ने कीचक को रात्रि के समय नृत्यशाला में आमंत्रित किया। वहां पर उसका स्वागत भीम ने किया उसे पीट-पीट कर और पटक-पटककर मार डाला। द्रौपदी एक करुणा की प्रतिमूर्ति सन्नारी थी। महाभारत युद्ध जब परिसमाप्ति पर था तो अश्वत्थामा ने द्रौपदी के सोए हुए पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। द्रौपदी को बहुत दुख हुआ। वह बेभान हो गई। अर्जुन ने अश्वत्थामा को पकड़कर द्रौपदी के सम्मुख प्रस्तुत किया और कहा कि वह अपना बदला ले ले। उस क्षण द्रौपदी की ममता जाग उठी। उसने कहा. मैं नहीं चाहती कि पत्र विरह में जैसे मैं तड़प रही हूं, ऐसे ही अश्वत्थामा की मां को भी तड़पना पड़े, अतः उसे क्षमा कर दिया जाए। महाभारत के युद्ध के बाद द्रौपदी राजरानी बनी। एक बार जब उसने देवर्षि नारद का समुचित समादर नहीं किया तो नारद जी रुष्ट हो गए। नारद जी ने एक ऐसी चाल चली कि धातकीखण्ड के राजा पद्मनाभ के हृदय में द्रौपदी के प्रति आकर्षण जाग गया। पद्मनाभ ने मित्र देव के सहयोग से द्रौपदी का अपहरण कर उसे अपने महलों में मंगवा लिया। पर द्रौपदी कब अपने सत्यधर्म से डिगने वाली थी ! उसने एक युक्ति ...260 --- जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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