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________________ जयपुर नरेश से पण्डित कासलीवाल के निकट सम्बन्ध थे। आप जयपुर राज्य की ओर से उदयपुर राज्य में वकील बनाकर भेजे गए थे। हिन्दी में गद्य-विधा में सर्वप्रथम आपकी रचना प्राप्त होती है। आपने अपने जीवन काल में सत्रह ग्रन्थों की रचना की, जिनकी तालिका निम्नोक्त है___(1) पुण्यास्रववचनिका (2) क्रियाकोष भाषा (3) आदि पुराणवचनिका (4) हरिवंश पुराण (5) परमात्मप्रकाशवचनिका (6) श्रीपाल चरित (7) अध्यात्मवाराखड़ी (8) वसुनन्दी श्रावकाचार टब्बा (9) पद्मपुराण वचनिका (10) विवेक विलास (11) तत्वार्थसूत्र भाषा (12) चौबीसदण्डक (13) सिद्धपूजा (14) आत्मबत्तीसी (15) सार समुच्चय (16) जीवंधर चरित्त (17) पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय। संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी भाषाओं का आपको गहन ज्ञान था। आपकी विद्वत्ता के आपके साहित्य में सर्वत्र दर्शन होते हैं। -तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा द्यानतराय (कवि) वि.सं. अठारहवीं सदी के आगरा निवासी एक जैन कवि। आपका जन्म अग्रवाल जाति में हुआ। आप गोयल गोत्रीय थे। वि.सं. 1733 में आपका जन्म हुआ। आपके प्रपितामह का नाम वीरदास तथा पिता का नाम श्यामदास था। ____ आपने पदरूपककाव्य, स्तोत्र आदि पर्याप्त रचनाएं निर्मित की। आपकी रचनाओं में मानव को धर्मबोध की प्रेरणाएं प्राप्त होती हैं। भाषा और भाव की दृष्टि से आपकी कविताएं काफी समृद्ध हैं। -तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा -श्रवणबेलगोल शिलालेख द्रोणाचार्य धृतराष्ट और पाण्डु पुत्रों के शिक्षक/आचार्य। अपने युग के वे शस्त्र और शास्त्र विद्या के निष्णात आचार्य थे। कृपाचार्य के निवेदन पर भीष्म ने उनको कुमारों की शिक्षा का दायित्व प्रदान किया। द्रोणाचार्य ने पांच पाण्डवों और दुर्योधन आदि सौ कौरवों को शस्त्र और शास्त्रविद्या में पारंगत बनाया। कर्ण भी द्रोणाचार्य का विद्यार्थी रहा। उसके अतिरिक्त द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी शस्त्र विद्या में निपुण बनाया। द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर राज्यसभा में उच्चासन प्राप्त हुआ। कई युद्धों मे वे दुर्योधन के पक्ष में लड़े। महाभारत के युद्ध में उन्होंने दुर्योधन के पक्ष में युद्ध किया। उस युद्ध में वे वीरगति को प्राप्त हुए। -जैन महाभारत द्रौपदी ____ सोलह विश्रुत महासतियों में से एक, पांचाल देश के महाराज द्रुपद की पुत्री और पांच पाण्डवों की अगिनी। महासती द्रौपदी का जीवन विभिन्न उतारों और चढ़ावों से पूर्ण जीवन था। समग्र ज्ञात इतिहास की वह इकलौती नारी है, जो पंच भर्तारी होकर भी महासती कहाई। उसने राजसी सुख भी देखा और कानन के कांटों पर भी वह मुस्काती हुई चली। उसे युधिष्ठिर जैसे सत्पुरुष और अर्जुन जैसे धनुर्धर की पत्नी होने का गौरव भी मिला तो अपने ही राजदरबार में अपने ही देवरों के हाथों चीरहरण का विष-चूंट भी पीना जैन चरित्र कोश... - 259 ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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