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________________ दुर्विनीत कौंगणिवृद्ध (राजा) ___ गंगवंश का एक जैन राजा। उसे दक्षिण में धर्म एवं वर्ण व्यवस्था की रक्षा के लिए वैवस्वत मनु की उपमा दी जाती है। जैन धर्म का वह विशेष उपासक था। जैन धर्म की प्रभावना में वह आजीवन यत्नशील रहा। उसका शासनकाल ई.स. 478 से 513 तक माना जाता है। -जैन शिलालेख संग्रह दूष्यगणी (आचार्य) नन्दी स्थविरावली के अनुसार एक श्रुतसागर आचार्य। उन्हें अर्थ और महार्थ की खान कहा गया है। शिष्यों को आगम वाचना देते हुए और उनके प्रश्नों का समाधान करते हुए आचार्य दूष्यगणी समाधि का अनुभव करते थे। उनकी वाणी अत्यन्त मधुर थी। आचार्य दूष्यगणी का समय वी.नि. की दशमी शताब्दी का पूर्वार्द्ध संभावित / अनुमानित है। -नन्दी स्थविरावली दृढ़चित्त (देखिए-अगड़दत्त) दृढ़नेमि सत्यनेमि के अनुज । (दखिए-सत्यनेमि) -अन्तगड सूत्र वर्ग 4, अध्ययन 10 (क) दृढ़प्रहारी एक धार्मिक और न्यायनीति निपुण ब्राह्मण का पुत्र था दृढ़प्रहारी। पिता का एक भी सुसंस्कार उसमें उतर नहीं पाया। कुसंगति में पड़कर सातों ही कुव्यसनों का संगम स्थल बन गया था उसका जीवन। पिता ने उसे प्रेम और फटकार, दोनों विधियों से समझाया पर वह नहीं समझा। नहीं समझा तो पिता ने उसे घर से निकाल दिया। इधर-उधर भटकता हुआ वह नगर से कुछ दूर स्थित चोरपल्ली में पहुंचा। चोरों ने उसे अपनी पल्ली का सदस्य बना लिया। चोरी करने, डाके डालने, हत्या करने में वह कुशल बन गया। प्रहार करने में विशेष दक्ष होने से उसे दृढ़प्रहारी कहा जाने लगा। चोरपल्ली के सरदार ने उसे अपना पुत्र मान लिया और सरदार की मृत्यु के पश्चात् वह चोरपल्ली का सरदार बन गया। ___ एक बार दृढ़प्रहारी ने अपने चोर साथियों के साथ एक नगर को लूटा । मनचाहा धन लूटा और अनेक लोगों की हत्या कर डाली। उसी दौरान दृढ़प्रहारी एक ब्राह्मण के घर रुका। ब्राह्मणी ने खीर बनाई थी। नन्हे-नन्हे ब्राह्मण पुत्र खीर खाने को आतुर थे। दृढ़प्रहारी भी खीर खाने को आतुर बन गया। वह लपककर खीर के बर्तन के पास जा बैठा। उसके इस व्यवहार से ब्राह्मणी क्षुब्ध हो गई। उसने उपालम्भ देते हुए कहा-कुछ तो विवेक रख, भला तेरे छू जाने से यह खीर हमारे लायक तो रह नहीं जाएगी! तुझे खीर चाहिए सो अवश्य मिलेगी! ब्राह्मणी की कटूक्ति सुनकर दृढ़प्रहारी आपे से बाहर हो गया। उसने देखते ही देखते तलवार के प्रहार से ब्राह्मणी के दो टुकड़े कर दिए। उधर ब्राह्मण स्नान कर रहा था, वह पत्नी की रक्षा के लिए दौड़ा तो दृढ़प्रहारी ने उसके भी दो टुकड़े कर दिए। पास ही घास खा रही गाय ने अपने स्वामी की यह दशा देखी तो वह दृढ़प्रहारी को मारने दौड़ी। दृढ़प्रहारी ने एक भरपूर वार से उस गाय के दो टुकड़े कर दिए। गाय गर्भवती थी। गर्भ भी कटकर जमीन पर आ पड़ा। ... 248 ... --. जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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