SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर चारपाई में खटमल थे, सो उसे निद्रा न आई और वह पुनः नाटक देखने चला गया। उधर श्रेष्ठी-पुत्र का मन भी नाटक में नहीं लगा और वह घर आकर उसी चारपाई पर लेटकर सो गया। सेठ के अनुचरों ने उसे दामनक समझकर मार डाला। दूसरे दिन पुत्र का शव देखकर सेठ विलाप कर उठा। उसे अपने आप से घृणा हो गई। उसने संत की बात को अकाट्य मानते हुए दामनक को अपनी समस्त सम्पत्ति का स्वामी बना दिया। दामनक ने लम्बा और सुखमय जीवन जीया। एक बार एक श्लोक सुनकर उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपने पूर्वभव को देखा और जाना कि पूर्वभव में वह एक मच्छेरा था और एक संत के उपदेश से उसने अहिंसा धर्म अपनाया था। उसी अहिंसा धर्म का यह पुण्य प्रताप था कि वह न केवल पुनः मनुष्य बना बल्कि पुनः-पुनः मृत्यु के द्वार खटखटाने पर भी उसके जीवन की रक्षा स्वतः ही होती रही। दामनक ने पूर्ण-अहिंसा को साधने के संकल्प के साथ दीक्षा धारण कर ली और अहिंसा भगवती की आराधना करते हुए निरतिचार संयम का पालन किया। आयुष्य पूर्ण कर वह स्वर्ग में गया। भविष्य में वह मोक्ष प्राप्त करेगा। दारुक महाराज वसुदेव और धारिणी रानी के पुत्र । भगवान अरिष्टनेमि से प्रव्रज्या लेकर इन्होंने शत्रुजय पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया था। (शेष वर्णन सुमुखवत्) -अन्तगड सूत्र वर्ग 3, अध्ययन 12 दाहड़ ___ ग्यारहवीं सदी का एक जैन श्रेष्ठी श्रावक । वह दूबकुण्डपुर राजा विक्रमसिंह के शासनकाल में नगर सेठ था। वह परम जिनभक्त श्रावक था। उसने चण्डोभ नगर में एक विशाल जिनालय का निर्माण कराया था। दिवाकीर्ति कौशाम्बी नगरी का रहने वाला एक नापित। (देखिए-सहस्रमल्ल) दीर्घपृष्ठ यवपुर नगर का महामात्य। (देखिए-यवराजर्षि) दीर्घराजा ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीकालीन एक दुश्चरित्र और विश्वासघाती राजा। (देखिए-ब्रह्मदत्त) दीवान अमरचंद दीवान अमरचंद जयपुर नरेश के विशेष कृपापात्र थे। सत्यनिष्ठा, मधुरव्यवहार और करुणादि सद्गुणों के कारण जहां राजदरबार में उनका विशेष मान था, वहीं जनसाधारण में भी उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव था। ___एक बार राजा ने एक शेर पकड़ा। उन्होंने दरबारियों से कहा-कहो कौन दरबारी इस शेर के लिए मांसादि का उचित प्रबन्ध करेगा? इस पर दीवान जी ने कहा, महाराज! क्या यह अनिवार्य है कि शेर को मांस ही खिलाया जाए? नरेश ने मृदु व्यंग्य किया-दीवान जी! तो क्या आप शेर को जलेबियां खिलाएंगे? दीवान अमरचंद ने विश्वासपूर्वक कहा-क्यों नहीं महाराज ! शेर जलेबियां भी खा सकता है। आप ..244 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy