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________________ को उसकी अविनीतता पर प्रताड़ित किया और उसके समक्ष आचार्य श्री की उत्कृष्ट चर्या की भूरि-भूरि प्रशंसा की। दत्त मुनि को अपनी भूल का परिज्ञान हो गया। उसने आचार्य श्री से अपनी अविनय के लिए क्षमा मांगी और आलोचना प्रायश्चित्तादि से आत्मशुद्धि की। -उत्त. वृत्ति (ङ) दत्त (मुनि) ___एक अविनीत और दोषदृष्टि वाला शिष्य। एक बार आचार्य संघ-सहित कुल्लपुर ग्राम में पधारे। आचार्य श्री ने अपने ज्ञानोपयोग से जान लिया कि उस क्षेत्र में भयानक अकाल पड़ने वाला है, सो उन्होंने मुनि संघ को अन्यत्र विहार करा दिया। आचार्य श्री वृद्ध थे और विहार करने में असमर्थ थे, सो उन्होंने उसी नगर में स्थिरवास का निश्चय किया। दत्त नामक मुनि आचार्य श्री की सेवा में रह गया। पर दत्त मुनि की दृष्टि दोष-दर्शन के दुर्गुण से दूषित थी। वह अकारण ही आचार्य श्री के प्रत्येक कार्य में दोष देखता था। शासनदेवी को दत्तमुनि की दोषदृष्टि अच्छी नहीं लगी। आचार्य श्री की महानता से उसे परिचित कराने के लिए एक संध्या शासनदेवी ने जब दत्त मुनि प्रतिक्रमण के पश्चात् अपने स्थान पर लौट रहा था तो उसका मार्ग सघन अन्धकार से आछन्न कर दिया। ऐसे सघन अन्धकार की दत्त मुनि ने कभी कल्पना तक न की थी। उसे लगा जैसे वह काजल की काली कोठरी में बन्द हो गया है। वह भयभीत हो गया और चिल्लाया, गुरु महाराज! मुझे रास्ता दिखाओ! ____ आचार्य श्री भी दत्त मुनि के हृदय के कलुष से अपरिचित नहीं थे। पर उनके पास एक गुरु का हृदय था, जो शिष्य को प्रकाश-पथ पर ले जाने के लिए सदैव तत्पर था। आचार्य श्री ने अपनी अंगुली पर थूक लगाया। उससे आचार्य श्री की अंगुली दीये की भांति प्रकाशमान हो गई। उस प्रकाश में दत्त मुनि आचार्य श्री के निकट आ गया और बोला, आप अपने पास महारंभ का कारक दीपक भी रखते हैं! ___ शासनदेवी ने क्रोध में भरकर दत्तमुनि को फटकारा । शासनदेवी की फटकार से दत्त मुनि के ज्ञान-नेत्र खुल गए। उसने अपनी दोषदृष्टि को त्यागकर आचार्य श्री से क्षमा मांगी। उसके बाद उसने आचार्य श्री की बहुमानपूर्वक सेवा की। परिणामतः वह सद्गति को प्राप्त हुआ। -उपदेशमाला (च) दत्त (वासुदेव) प्रवहमान अवसर्पिणी का सप्तम् वासुदेव। उसने तिलकपुर के राजा प्रतिवासुदेव प्रह्लाद का वध कर वासुदेव पद पाया था। दत्त के पिता का नाम अग्निसिंह था, जो वाराणसी नगरी का स्वामी था।। जयंती और शेषवती-ये दो अग्निसिंह की रानियां थीं। जयंती के पुत्र का नाम नन्दन था, जो सप्तम् बलदेव हुआ। शेषवती दत्त की माता थी। दत्त ने सुदीर्घ काल तक षट्खण्ड पर शासन किया और छप्पन हजार वर्ष का कुल आयुष्य भोग कर पांचवीं नरक में गया। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र 6/5 दधिपर्ण नल कालीन सुंसुमारपुर नरेश, जिसके यहां महाराज नल वनवास काल में स्वयं को नल का रसोइया बता कर रहे थे। (दखिए-नल) (क) दधिवाहन चम्पानरेश । महासती धारिणी के पति और महासती चंदनबाला के पिता। एक शान्तिप्रिय राजा। ... 238 . - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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