SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थ थावच्चापुत्र द्वारिका नगरी में रहने वाली समृद्ध श्राविका थावच्चा सेठानी का पुत्र थावच्चापुत्र नाम से ही विश्रुत हुआ। उसे बचपन में ही एक घटना को देखकर संसार से वैराग्य हो गया। घटना ऐसे थी बालक थावच्चापुत्र अपने भवन की छत पर खेल रहा था । उसे पड़ौसी के घर से सुमधुर गीतों के स्वर सुनाई दिए जो उसे बहुत मधुर लगे। पर कुछ ही क्षण बाद वे गीत रुदन में बदल गए। रुदन के स्वर थावच्चापुत्र को अत्यन्त कटु लगे। उसने नीचे आकर पड़ौसी के घर पहले गीत और बाद में विलाप का कारण अपनी माता से जानना चाहा। माता ने बता दिया कि पड़ौसी के घर पुत्र उत्पन्न हुआ था, पर कुछ ही समय बाद वह पुत्र मर गया। उसके जन्म की खुशी में पहले गीत गाए जा रहे थे, उसके मरने पर विलाप किया जा रहा है। इस घटना ने थावच्चापुत्र के बाल हृदय को झिंझोड़ दिया और उसने अपनी मां से एक प्रश्न पूछ डाला कि क्या एक दिन उसे भी मरना होगा। मां ने बात बदलने के भरसक प्रयास किए पर पुत्र ने मां को उत्तर के लिए विवश कर दिया । आखिर मां को सच कहना ही पड़ा कि एक दिन उसे भी मरना होगा । पुत्र ने मां से मृत्यु को तैरने का मार्ग पूछा, तो मां ने कहा- मृत्यु को तैरने का उपाय तो अरिहंत अरिष्टनेमि ही जानते हैं। थावच्चापुत्र ने अरिहंत अरिष्टनेमि का शिष्य होने का संकल्प कर लिया। मां की प्रसन्नता के लिए थावच्चापुत्र ने बत्तीस स्त्रियों से विवाह भी किया । अरिहंत अरिष्टनेमि जब द्वारिका आए तो थावच्चापुत्र ने दीक्षा लेने की आज्ञा अपनी माता से मांगी। माता ने अनेक तर्कों से पुत्र को रोकना चाहा । पर थावच्चापुत्र के सबल तर्कों के समक्ष मां निरुत्तर हो गई और उसने पुत्र को दीक्षा की आज्ञा प्रदान कर दी। स्वयं श्रीकृष्ण ने थावच्चापुत्र के वैराग्य की थाह को टटोला। श्रीकृष्ण ने कहा, युवक ! तुम घर में रहकर ही साधना करो, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा ! थावच्चापुत्र ने कहा, यदि मृत्यु से आप मेरी रक्षा करने का वचन दें तो मैं अरिहंत अरिष्टनेमि की शरण में न जाकर आपकी शरण में आ सकता हूं। इससे श्रीकृष्ण भी निरुत्तर हो गए। थावच्चापुत्र के वैराग्य का ऐसा प्रभाव हुआ कि एक हजार अन्य पुरुष भी उसके साथ दीक्षित हुए। सुदीर्घ काल तक निरतिचार संयम की आराधना करके और हजारों भव्य प्राणियों के लिए कल्याण का द्वार बनकर थावच्चापुत्र अणगार सिद्ध - बुद्ध और मुक्त हो गए। -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - 5 थावच्चा सेठानी द्वारिका नगरी की एक श्रमणोपासिका तथा धनाढ्य महिला । थावच्चापुत्र की मां । (देखिए - थावच्चापुत्र) *** 236 - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy