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________________ चमड़ी को भी खुरच डाला। वह रक्तरंजित हो गई। एक मांसपिण्ड की तरह दिखाई देने लगी। इस पर भी विद्याधर को सद्बुद्धि नहीं जगी। वह गुर्राया, ऐसा करके भी तू मेरे चंगुल से मुक्त नहीं हो सकती है। मेरे पास ऐसी औषधियां हैं, जिनके स्पर्श-मात्र से तुम्हारी देह के घाव भर जाएंगे। कहकर वह औषधि लेने चला गया। उधर तारासंदरी को मांस-पिण्ड समझकर एक भारण्ड पक्षी अपने पंजों में दबोचकर आकाश में ले उड़ा। एक अन्य भारण्ड पक्षी ने उसका पीछा किया। दोनों पक्षी परस्पर लड़ने लगे। उसी अवधि में तारासुंदरी भारण्ड के पंजों से छूट गई और समुद्र में जा गिरी। एक मगरमच्छ उसे अपनी पीठ पर बैठाकर किनारे पर छोड़ गया। समुद्र के क्षार-जल ने मरहम का काम किया और तारासुंदरी के जख्म सूख गए। समुद्र तट से थोड़ी ही दूरी पर एक जलाशय था। वहीं पर एक पर्वत गुफा में रहकर तारासुंदरी धर्माराधना करने लगी। एक बार एक जंघाचारी मुनि ने तारासुंदरी को दर्शन दिए और धैर्य दिया कि छह मास तक उसे पति विरह सहना होगा। उसके बाद उसका पति मिलन होगा। इससे तारासुंदरी के धैर्य को पर्याप्त बल प्राप्त हुआ। वह दोगुने उत्साह से धर्मध्यान में संलग्न हो गई। उधर तारासुंदरी को छत पर न पाकर राजपरिवार में शोक छा गया। राजकुमार मदनसेन के शोक का पारावार न था। उसकी दशा विक्षिप्तों जैसी हो गई। चारों दिशाओं से खोजी दल निराश लौट आए। अंततः मदनसेन स्वयं अपनी पत्नी को खोजने निकल पड़ा। ढूंढ़ते-ढूंढ़ते वह एक पर्वत पर पहुंचा। थक कर वह चूर-चूर बन गया। उसने वहीं रुकने का निश्चय कर लिया। भाग्य पर भरोसा कर वह वहीं रुक गया। तारासुंदरी जिस पर्वतगुफा में साधना कर रही थी, उधर से एक सार्थ गुजरा। सार्थवाह एक धर्मात्मा व्यक्ति था। उसने तारासुंदरी को पुत्री का मान दिया और विश्वास दिया कि वह उसे उसके नगर पहुंचा देगा। तारासुंदरी सार्थ के साथ यात्रा करने लगी। यह सार्थ उस पर्वत के निकट से गुजरा जहां मदनसेन अपनी पत्नी की प्रतीक्षा में रह रहा था। आखिर वहीं पर तारासुंदरी और मदनसेन का मिलन हुआ। सार्थवाह को बहुत-बहुत धन्यवाद देकर मदनसेन तारासुंदरी को साथ लेकर अपने नगर में पहुंचा। सर्वत्र हर्ष छा गया। मदनसेन को राजपद देकर महाराज रूपसेन ने प्रव्रज्या धारण कर ली। मदनसेन ने सुदीर्घ काल तक न्याय-नीतिपूर्वक शासन किया। अंतिम वय में अपनी रानी तारासुंदरी के साथ प्रव्रज्या धारण कर उसने सद्गति प्राप्त की। तिलकमंजरी ___ कनकपुरी नगरी की राजकुमारी, जिसने धीर-वीर और दृढ़ प्रतिज्ञ वणिक-पुत्र रत्नसार से विवाह रचाया था। (देखिए-रत्नसार) (क) तिलक सुंदरी ____ इन्द्रपुरी नगरी की राजकुमारी। (देखिए-चंद्रसेन) (ख) तिलक सुंदरी भविष्यदत्त की परिणीता पतिव्रता पत्नी। (देखिए-भविष्यदत्त) तिलोकसुंदरी एक पतिपरायणा और सत्य-शील की अमर साधिका, जिसने अपने शील के रक्षण के लिए असंख्य ... जैन चरित्र कोश... -229 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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