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________________ पर बैठकर मार्ग पर पलक-पांवड़े बिछाकर महाश्रमण की प्रतीक्षा करने लगा। उसका रोम-रोम श्रद्धा और भक्ति से रोमांचित बन रहा था। प्रभु की प्रतीक्षा में उसका मानसिक चिन्तन उच्च और उच्चतर बनता जा रहा था। पर उसी समय अहोदानं-अहोदानं की दिव्य ध्वनि सुनकर उसकी चिन्तन-धारा खण्डित हो गई। वह पश्चात्ताप की मूर्ति बनकर अपने दुर्भाग्य को धिक्कारने लगा। वस्तुतः भगवान बिना किसी लक्ष्य के भिक्षार्थ पधारे थे और पूर्ण नामक सेठ के द्वार पर जब पधारे तो सेठ ने अन्यमनस्कता से अपनी दासी के हाथों भगवान को उड़द-बांकुले दिलाए थे। अन्यमनस्कता से भी दिए गए उस दान की इतनी महिमा थी कि देवों ने पंच दिव्य बरसा कर उसकी सराहना की थी। कुछ ही दिन बाद नगरी में एक ज्ञानी मुनिराज पधारे। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने जीर्ण सेठ को उत्कृष्ट दान-दाता बताया। लोगों ने पूर्ण के दान की बात कही तो ज्ञानी मुनि ने स्पष्ट किया कि यदि चंद पल और जीर्ण श्रेष्ठी को यह ज्ञात न होता कि प्रभु ने पारणा कर लिया है तो वह आहारदान की उस उच्चतम भाव भूमि का स्पर्श कर रहा था कि समस्त कर्म जीर्ण कर केवलज्ञान प्राप्त कर लेता। इसलिए पूर्ण सेठ ने तो भौतिक दान ही दिया, पर जीर्ण ने तो भाव से वह दान दिया है, जिसकी महिमा अपरम्पार है। जीर्ण सेठ आयुष्य पूर्ण कर बारहवें देवलोक में गया। वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र जीवंधर हेमांगद देश का राजा। जीवंधर हेमांगद देश की राजपुरी नगरी के राजा सत्यन्धर का पुत्र था। काष्ठांगार नामक मंत्री महाराज सत्यंधर का अतिविश्वासपात्र था। राजा ने समस्त राज्यभार काष्ठांगार को प्रदान कर दिया और स्वयं महलों में रहकर अपनी रानियों के साथ सुखोपभोग में तल्लीन हो गया। काष्ठांगार राज्य लोभ में पड़कर अपने महाराज का शत्रु बन बैठा। मंत्री की विश्वासघाती प्रवृत्तियों पर सत्यंधर को अति क्षोभ हुआ। उसने अपनी सगर्भा रानी विजया को किसी तरह नगर से बाहर भेज दिया और स्वयं काष्ठांगार से उलझ गया। पर प्रजा को भूलकर विषयासक्ति में लीन होने वाले राजा को प्रजा का सहयोग कैसे मिलता? अपने मुट्ठीभर विश्वसनीय सैनिकों के साथ सत्यंधर काष्ठांगार से जूझते हुए मृत्यु का ग्रास बन गया। राजपुरी नामक नगरी के श्मशान में रानी विजया ने एक पुत्र को जन्म दिया। शिशु का पालन-पोषण उस नगरी के गन्धोत्कट सेठ के घर हुआ जहां वह जीवंधर नाम से जाना गया। जीवन्धर वीर, विज्ञ और उत्साही युवक था। उसने देश-विदेशों में भ्रमण कर अपने पौरुष से पर्याप्त ख्याति, धन अर्जित किया और कई सुन्दर बालाओं से पाणिग्रहण किया। अन्ततः काष्ठांगार को युद्ध में परास्त कर उसने अपना पैतृक राज्य भी हस्तगत किया। जीवंधर ने कई वर्षों तक प्रजा का पुत्रवत् पालन किया। उसकी कई पत्नियां थीं जिनमें गन्धर्वदत्ता प्रधान थी। गन्धर्वदत्ता से उसे जो पुत्र प्राप्त हुआ, उसका नाम वसुंधर कुमार रखा गया। ___ कालान्तर में ग्रामानुग्राम धर्मोद्योत करते महाश्रमण महावीर धर्मसंघ सहित हेमांगद देश में पधारे। वहां पर सुरमलय उद्यान में भगवान समवसृत हुए। जीवंधर नरेश भगवान की वाणी सुनकर प्रबुद्ध हुआ। अपने पुत्र वसुंधर कुमार को राजपद देकर वहां प्रभु के पास दीक्षित हो गया। राजा से मुनि हुए जीवंधर ने विशुद्ध संयम और तप की आराधना करते हुए आत्मकल्याण का संपादन किया। -तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा / (ले. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री) ... जैन चरित्र कोश ... -- 217 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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