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________________ विशेषावश्यक भाष्य, जीतकल्प भाष्य आदि उनके द्वारा रचित भाष्य ग्रन्थ ज्ञान के अक्षय सागर हैं। जिनभद्र श्रावक राजगृह नगर का रहने वाला एक धनी श्रमणोपासक जिसकी विचारशीलता ने सुव्रत नामक मुनि को न केवल पतित होने से बचाया बल्कि उसके कुशल व्यवहार ने मुनि के चिन्तन को भी प्रबुद्ध बना दिया और मुनि कैवल्य पद पा गए। (देखिए-सुव्रत) जिनरक्षित (देखिए-जिनपाल) जिनवल्लभ (आचार्य) एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार जैन आचार्य। वर्तमान में प्राप्त उन द्वारा सृजित ग्रन्थों की संख्या डेढ़ दर्जन के लगभग है। आचार्य जिनवल्लभ सूरि पहले चैत्यवासी संघ में दीक्षित हुए थे। बाद में आचार्य अभयदेव (नवांगी टीकाकार) के सान्निध्य में अध्ययन करने से उनका चैत्य से मोह भंग हो गया। जीवन का सार उन्होंने आचार में देखा और सुविहित मार्गी आचार्य जिनेश्वर सूरि के वे शिष्य बन गए। एक उल्लेख के अनुसार आचार्य अभयदेव उनके गुरु थे। आचार्य अभयदेव के बाद जिनवल्लभ आचार्य पाट पर विराजमान हुए। . वी.नि. 1637 में तीन दिन के अनशन सहित आचार्य जिनवल्लभ स्वर्गवासी हुए। (क) जिनसेन एक पराक्रमी और धर्मप्राण राजकुमार, जो कनकपुर के राजा जयमंगल की रानी जिनसेना का अंगजात था। जयमंगल की छोटी रानी का नाम रत्नवती था, जो रूपवान तो थी पर उसका हृदय ईर्ष्यादि दुर्गुणों से भरा हआ था। उसने स्त्रैणचित्त जयमंगल को अपने रूपजाल से बांध लिया था और जिनसेना के विरुद्ध षड्यन्त्र रचकर उसे महलों से दूर राजोद्यान में निर्वासिता का जीवन जीने पर विवश कर दिया था। जिनसेना के हृदय में जिनेश्वर देव की भक्ति का निवास था। अपने निर्वासन के लिए उसने न तो रत्नवती को दोषी माना और न ही अपने पति जयमंगल को। उसने अपने ही पूर्वोपार्जित कर्मों को अपने निर्वासन का कारण माना। निर्वासन का दुखद जीवन जीते हुए भी वह आनन्दमग्न थी और जिनेश्वर देव के ध्यान में डूबी रहती थी। वहीं पर उसने जिस पुत्र को जन्म दिया, वह जगत में जिनसेन नाम से सुख्यात हुआ। रत्नवती ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रामसेन रखा गया। जिनसेन जहां धीर, वीर और धर्मात्मा था, वहीं रामसेन में इन गुणों का वैसा विकास नहीं था। कालक्रम से दोनों राजकुमार युवा हुए। जिनसेन बड़ा था और प्रजा का प्रिय भी था। युवराज पद पर उसका स्वाभाविक अधिकार था। पर रत्नवती चाहती थी कि उसका पुत्र युवराज बने। उसने राजा को इसके लिए विवश किया। राजा ने दरबारियों और मंत्रियों के समक्ष उक्त प्रस्ताव रखा। पर्याप्त वाद-विवाद और दलीलों के बाद निर्णय लिया गया कि दोनों कुमार अपनी-अपनी कलाओं का प्रदर्शन करें। इसमें जो इक्कीस सिद्ध होगा, वही युवराज पद का अधिकारी होगा। कला प्रदर्शन का आयोजन हुआ। जिनसेन की कला के समक्ष रामसेन बुरी तरह पराजित हुआ। फलतः जिनसेन को युवराज पद प्रदान किया गया। ___ एक बार जिनसेन ने अकेले ही विजयपुर नगर के एक हजार सैनिकों को एक मुठभेड़ में पीठ दिखाने ... 214 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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