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________________ माता-पिता और परिजनों की अनुमति प्राप्त कर वह प्रव्रजित हो गया। उत्कृष्ट संयम और तप की आराधना द्वारा उसने परम पद प्राप्त किया। -विपाक सूत्र, द्वितीय श्रुत, अ. 5 जिनदासगणी महत्तर (आचार्य) चर्णि साहित्य के रचयिताओं में आचार्य जिनदासगणी महत्तर का नाम प्रमुख है। नन्दी, अनुयोग, निशीथ आदि कई आगमों पर आचार्य श्री ने चूर्णि साहित्य का लेखन किया। आठ आगमों पर चूर्णि के रचयिता के रूप में आचार्य श्री विश्रुत हैं। - आचार्य जिनदासगणी महत्तर का गृहस्थकालीन परिचय लगभग अनुपलब्ध है। इतने भर संकेत हैं कि उनके पिता का नाम नाग और माता का नाम गोपा था। वे स्वयं सहित सात भाई थे। उनका स्वयं का क्रम चतुर्थ था। .. आचार्य जिनदास गणी महत्तर आगम साहित्य के तलस्पर्शी अध्येता और पारगामी पण्डित थे। उन द्वारा लिखित चूर्णि साहित्य विशाल और गहन है। आप वी. नि. की 12वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के मान्य आचार्य थे। __-चूर्णि साहित्य जिनदेवी ____ अमरपुर नगर के नगर सेठ वृषभदत्त की अर्धांगिनी, एक जैन श्राविका। (देखिए-सुलस कुमार) जिनपाल ___चम्पानगरी निवासी माकन्दी नामक एक समृद्ध गाथापति का पुत्र और भद्रा का आत्मज। उसका एक सहोदर था, जिसका नाम जिनरक्षित था। उन दोनों भाइयों ने लवणसमुद्र से ग्यारह बार देशाटन किया और प्रभूत धन संचित किया। बारहवीं बार पुनः वे यात्रा के लिए तैयार हुए तो माता-पिता ने उन्हें वैसा न करने के लिए कहा और संतोषवृत्ति की सीख दी। पर माता-पिता की सीख को विभिन्न तर्कों से निरस्त करते हुए वे समुद्री यात्रा पर निकल पड़े। बीच समुद्र में तूफान के भंवर में उनका जहाज फंस गया और टूटकर बिखर गया। दोनों भाई लकड़ी के पट्टों के सहारे तैरते हुए एक किनारे पर आ लगे। यह रत्नद्वीप का तट था। रत्नद्वीपा देवी वहां की अधीश्वरी थी। वह हाथ में तलवार लेकर उनके पास आई और बोली, जीना चाहते हो तो मेरे साथ मेरे महल में रहो और मेरे साथ भोग भोगो! भयभीत दोनों भाई देवी के दास बनकर उसके साथ रहने लगे। एक बार लवणसमुद्र के स्वामी सुस्थित देव ने रत्नद्वीपा को लवणसमुद्र की सफाई का कार्य सौंपा। रत्नद्वीपा ने दोनों भाइयों को आदेश दिया कि वह शीघ्र ही लौट आएगी, फिर भी उनका मन उचट जाए तो वे महल के आस-पास उद्यान में भ्रमण कर सकते हैं, पर ध्यान रहे, वे दक्षिण दिशा के उपवन में न जाएं! कहकर वह चली गई। निषेध आकर्षण बनता ही है। दोनों भाई घूमते हुए दक्षिण दिशा में गए तो वहां असह्य दुर्गन्ध उन्हें अनुभव हुई। कुछ आगे बढ़ने पर उन्होंने वहां शूली की नोक पर लटके एक व्यक्ति को देखा। उस व्यक्ति ने रत्नद्वीपा की हकीकत बयान करते हुए उनको बताया कि वे दोनों उसे तभी तक प्रिय हैं, जब तक उसे अन्य कोई पुरुष नहीं मिल जाता। अन्य पुरुष के मिलते ही उनकी भी वही दशा होने वाली है, जो उसकी हुई है। जिनपाल ने रत्नद्वीपा के चंगुल से मुक्ति का उपाय पूछा तो शूली पर लटके हुए व्यक्ति ने बताया, ... 212 - --- जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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