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________________ आयु के उत्तरार्ध पक्ष में जयानन्द ने श्रमणधर्म में प्रवेश किया और निरतिचार चारित्र की आराधना द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया। अनेक वर्षों तक केवली अवस्था में जनकल्याण का शंखनाद करते हुए जयानन्द मोक्षधाम में जा विराजे। -जयानन्द केवली रास जराकुमार वासुदेव श्रीकृष्ण का चचेरा भाई। जब वासुदेव श्रीकृष्ण ने प्रभु अरिष्टनेमि से अपनी मृत्यु का कारण पूछा तो प्रभु ने फरमाया, जराकुमार के बाण से आपकी मृत्यु होगी। जिस समय प्रभु ने ऐसा फरमाया, उस समय जराकुमार भी श्रोता परिषद् में उपस्थित था। अपने आपको भ्रातृमृत्यु का निमित्त जानकर जराकुमार आत्मग्लानि से भर गया और उसने स्वेच्छया आत्मनिर्वासन ले लिया। वह कौशाम्बी वन में चला गया और भीलवृत्ति से जीवन निर्वाह करने लगा। पर भवितव्यता भला टल ही कैसे सकती है ? द्वारिकादहन के पश्चात् श्रीकृष्ण और बलभद्र पाण्डुमथुरा जाते हुए कौशाम्बी वन से गुजरे। वहां श्रीकृष्ण को जोर की प्यास लगी। बलभद्र पानी की तलाश में निकले। वटवृक्ष के नीचे वासुदेव श्रीकृष्ण पैर पर पैर रखकर विश्राम के लिए लेट गए। दूर से जराकुमार ने श्रीकृष्ण के पैर में स्थित पद्म को मृग की आंख समझकर उसे तीर का निशाना बना दिया। उसी से वासुदेव श्रीकृष्ण का निधन हो गया। जरासंध मगध देश का पराक्रमी सम्राट्। प्रतिवासुदेव होने के कारण उसने त्रिखण्ड के राजाओं को आतंकित कर अपने अधीन कर लिया था। उसकी पुत्री जीवयशा मथुरानरेश कंस के साथ विवाहित थी। कंस-वध के समाचार से जरासंध श्रीकृष्ण का शत्रु बन बैठा। अन्त में उसने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। भीषण संग्राम में वह श्रीकृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ। वैदिक पुराणों में जरासंध के जन्म की कहानी यों दी गई है-मगधेश बृहद्रथ की दो रानियों ने आधेआधे शरीर के दो शिशुओं को जन्म दिया। जरा नाम की राक्षसी ने उन आधे-आधे शरीर वाले शिशुओं को जोड़ दिया। इस संधि से एक पूर्ण शिशु बन गया। जरा द्वारा संधित वह बालक ही जरासंध कहलाया। जांबवती वासुदेव श्रीकृष्ण की रानी। भगवान अरिष्टनेमि के पास प्रव्रजित बनकर इसने सिद्धत्व प्राप्त किया। -अन्तगड सूत्र वर्ग 5, अध्ययन 6 जाकलदेवी चालुक्यवंशी राजा त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य की रानी। जाकलदेवी का जन्म जैन कुल में हुआ था। उसके मन में जैन धर्म के संस्कार रचे बसे थे। परन्तु राजा त्रिभुवनमल्ल में धर्म के प्रति अनास्थाभाव था। जाकलदेवी विदुषी और समयज्ञा थी। उसने अपने बुद्धिबल और निरन्तर प्रेरणा से अपने पति को भी जैनधर्म के प्रति आस्थावान बना दिया। जाकलदेवी और महाराज त्रिभुवनमल्ल ने अपने राज्य में जैन धर्म का काफी प्रचार-प्रसार किया तथा धर्मोन्नति के कई उपक्रम भी किए। जालिकुमार महाराज वसुदेव और महारानी धारिणी के अंगजात। अरिहंत अरिष्टनेमि के उपदेश से बोधि को प्राप्त कर इन्होंने राजसी सुख-समृद्धि को ठोकर मारकर तथा पचास पलियों का त्याग कर संयम व्रत ले लिया। .... जैन चरित्र कोश ... - 197 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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