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________________ राजकुमार के पास पहुंची और हाथ में जल लेकर बोली - यदि मैं तन-मन-वचन से पतिव्रता हूं तो मेरी अंजुली के जल का स्पर्श प्राप्त करते ही राजकुमार विषमुक्त बन जाए! वैसा ही हुआ भी । इससे राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने जयसुंदरी के चरणों पर अपना मुकुट रखा और यथेच्छ मांगने के लिए कहा। पर जयसुंदरी ने कुछ भी मांगने से इन्कार कर दिया। राजा ने उसे अपनी बहन बना लिया और भाई के नाते अपार धन देकर विदा किया। जयसुंदरी पति से मिलने के लिए घर से निकली। उक्त नगर में पहुंचकर नगर के बाहर उद्यान में उसने एक कक्ष किराए पर लिया। ग्वालिन का वेश बनाकर वह गोरस की मटकी सिर पर रखकर सेठ के घर के निकट पहुंची। गवाक्ष से ग्वालिन को देखकर सेठ उसके रूप पर मुग्ध हो गया। उसने ग्वालिन को ऊपर बुलाया और गोरस खरीद लिया। साथ ही उसने अपने मन के भाव ग्वालिन से कहे। ग्वालिन ने सेठ से यह वचन लिया कि वे उसका कभी परित्याग नहीं करेंगे। सेठ ने वचन दे दिया । प्रतिदिन सेठ ग्वालिन से मिलने उद्यान में जाने लगा। इससे ग्वालिन ( जयसुंदरी) गर्भवती हो गई। एक दिन ग्वालिन का वेश त्यागकर जयसुंदरी अपने नगर पाटणपुर में आ गई । कालक्रम से उसने एक पुत्र को जन्म दिया और योग्य वय में उसे अस्त्र-शस्त्र-शास्त्रादि समस्त कलाओं में निपुण बना दिया। पुत्र जवान हो गया। वह रूप गुण का निधान बन गया था। सेठ को परदेस में रहते हुए बीस वर्ष बीत गए। उसे अपने नगर की स्मृति सताने लगी तो वह पाटणपुर पहुंचा। पाटणपुर पहुंचकर उसे जन-जन के मुख से जयसुंदरी की प्रशंसा सुनाई दी। वह पत्नी के पास पहुंचा। पत्नी को देखकर उसने अपने किए पर पश्चात्ताप किया और क्षमा मांगी। पर जब उसका पुत्र सेठ के सामने आया तो वह क्रोध से लाल-पीला हो गया । आखिर जयसुंदरी ने रहस्य प्रकट किया तो सेठ पानी-पानी हो गया। जयसुंदरी की बुद्धिमत्ता और चारित्रनिष्ठा से उसने स्वयं को धन्य माना। उसने अपने व्रतों का शुद्धिकरण किया और पूर्ण श्रद्धाभाव से उनका पालन करने लगा । कालान्तर में जयसुंदरी और सुन्दर सेठ ने संयम ग्रहण किया और विशुद्ध संयम का पालन करते हुए परम पद प्राप्त किया । (ख) जयसुंदरी एक सुरूपा नट कन्या । (देखिए - आषाढ़ मुनि) (क) जयसेन चंद्रपुर का राजा । (देखिए -चंद्रसेन) (ख) जयसे देवशाल नगर के राजा विजयसेन का पुत्र और कलावती का सहोदर । ( देखिए-कलावती) जयसेना एक राजकन्या जिसका विवाह सुजात स्वामी (विहरमान तीर्थंकर) से हुआ था । (देखिए - सुजात स्वामी) (क) जयादेवी एक राजसुता, यौवन वय में जिसका विवाह श्री ऋषभानन राजकुमार (सप्तम विहरमान तीर्थंकर) से हुआ था। (देखिए ऋषभानन स्वामी) जैन चरित्र कोश **+ →→→195 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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