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________________ जंबू मुनि __आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य। जंबू स्वामी __ भगवान महावीर के शासन के द्वितीय पट्टधर और पंचम गणधर आर्य सुधर्मास्वामी के प्रमुख शिष्य। वे प्रवहमान अवसर्पिणी काल के अन्तिम केवली और अन्तिम मोक्षगामी महापुरुष थे। वे जब मुनि बने, उस समय तीर्थंकर महावीर निर्वाण को प्राप्त हो चुके थे। उन्होंने महावीर के धर्म और उनके उपदेशों को अपने गुरु आर्य सुधर्मा के श्रीमुख से श्रवण किया। आर्य जंबू एक महान जिज्ञासु शिष्य थे। जंबूस्वामी का जीवन संक्षेप में इस प्रकार है____ जंबू राजगृह निवासी सेठ ऋषभदत्त और धारिणी के अंगजात थे। सोलह वर्ष की अवस्था में सम्पन्न श्रेष्ठियों की आठ कन्याओं से उनका सम्बन्ध तय कर दिया गया। संयोग से उन्हीं दिनों तीर्थंकर महावीर के पंचम गणधर आर्य श्री सुधर्मा स्वामी राजगृह नगरी में पधारे। जंबूकुमार भी उनका उपदेश सुनने के लिए गए। उपदेश सुनकर विरक्त हो गए। उन्होंने दीक्षित होने का संकल्प कर लिया। घर लौटकर माता-पिता को अपना संकल्प सुना दिया। इकलौते पुत्र का ऐसा संकल्प सुनकर माता-पिता का चिन्तित होना स्वाभाविक था। उन्होंने जंब को समझाने-मनाने के अनेक उपक्रम किए. पर जंब के संकल्प के समक्ष माता-पिता द्वारा उपस्थित किए गए समस्त तर्क बालू पर खींची गई लकीर साबित हुए। हारकर पिता ने उन्हें उनके निश्चित किए गए सम्बन्ध की बात कही और साग्रह कहा कि उसके द्वारा वैवाहिक प्रस्ताव को तोड़ दिए जाने पर उसे समाज में अपयश का पात्र बनना पड़ेगा। ___ अपने निर्णय से पिता को अपयश सहना पड़े, यह बात जंबू को स्वीकार न थी। उन्होंने पिता से कहा, वे विवाह हेतु तैयार हैं पर दूसरे ही दिन वे संयम लेने के लिए भी स्वतंत्र हैं। यह पूरी बात उन कन्याओं और उनके अभिभावकों के समक्ष स्पष्ट कर दी जाए। सेठ ऋषभदत्त ने जंबू का उक्त संदेश आठों सेठों के पास पहुंचा दिया। कन्याएं भी जंबू के सन्देश से अवगत हुईं। आठों ने मिलकर परस्पर मंत्रणा की। आठों की ही यह सोच थी कि जब तक वे नहीं पहुंचती हैं तभी तक जंबू दीक्षा लेने की बात करते हैं। उनके पहुंचते ही उनका दीक्षा लेने का संकल्प ध्वस्त हो जाएगा। यदि ऐसा न हुआ तो वे भी पति की अनुगामिनी बन जाएंगी। आठों ने मिलकर अपने अभिभावकों को अपने विचारों से सूचित कर दिया। ____ आठ कन्याओं से जंबूकुमार का विवाह हो गया। वधू-पक्ष ने अपार धन सामग्री दहेज में दी। पर उस समय धन की संभाल की किसी को चिन्ता न थी, जो चिन्ता थी, वह थी दूसरे ही दिन जंबूकुमार के दीक्षित होने की। आठों कन्याओं के पास चार प्रहर की एक रात थी जिसमें उनके भविष्य की गति का लेखा-जोखा होना था। आठों पत्नियां सुहागरात के लिए जंबू के कक्ष में पहुंच गईं और उन्हें रिझाने लगीं। ... 184 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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