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________________ गंगवंश के राजा राचमल्ल सत्यवाक्य चतुर्थ का महामंत्री था। वह बहुत बुद्धिमान और कुशल योद्धा था। इसीलिए मंत्रीपद के साथ ही सेनापति पद भी उसके पास था। उसने कई युद्धों में अपना अद्भुत पराक्रम दिखाया। उसके नाममात्र से शत्रुदल में चिन्ता और भय व्याप्त हो जाता था। गंग वंश के तीन राजाओं के राज्यकाल में चामुण्डराय ने मन्त्रीपद का दायित्व निर्वहन किया। चामुण्डाराय की माता का नाम काललदेवी था, जो जैन धर्म की अनन्य अनुरागिणी थी। उस युग के विद्वान जैन मुनि श्री नेमिचंद्राचार्य का चामुण्डाराय पर विशेष प्रभाव रहा। चामुण्डाराय जैन धर्म का अनन्य उपासक था। जिन शासन की उन्नति के उसने कई कार्य किए। उसने कई जिनालयों का निर्माण कराया। उसके द्वारा निर्मित कराई गई गोम्मटेश्वर बाहुबली की 57 फुट की प्रतिमा शिल्पकला का अद्भुत नमूना है, जो विश्व के आश्चर्यों में गिनी जाती है। यह प्रतिमा विन्ध्यगिरि नामक पर्वत पर स्थित है, जो कर्नाटक के हासन जिले में है। इस प्रतिमा की भारी ख्याति है। विश्व के कोने-कोने से लोग इसे देखने के लिए आते हैं। इस प्रतिमा की अपनी कुछ विशेषताएं हैं। इस पर कभी धूल नहीं जमती, इसकी छाया नहीं पड़ती और इस पर पक्षी नहीं बैठते। ई.स. 990 के आस-पास चामुण्डाराय का स्वर्गवास हुआ। चित्त श्वेताम्बिका नगरी का धर्मनिष्ठ और नीति कुशल महामात्य, जिसके कुशल उपक्रम से राजा प्रदेशी नास्तिक से आस्तिक और हिंसक से अहिंसक बना था। (देखिए-राजा प्रदेशी) चित्त मुनि ___ उत्तराध्ययन और त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र के अनुसार एक निरतिचार संयम के आराधक मुनीश्वर। उन्होंने मोक्षपद प्राप्त किया था। (देखिए-ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) चित्रगति ___ चक्रवर्ती सम्राट सूरतेज का पुत्र । विनीत और साहसी राजकुमार। कालक्रम से चित्रगति युवा हुआ। अनेक कलाओं और विद्याओं में वह निपुण बन गया। वह करुणाशील युवक था। परोपकार में उसे विशेष आनन्द की प्राप्ति होती थी। उसने अपने जीवन में परोपकार के कई कार्य किए। पूर्वजन्मों के स्नेह के कारण संयोगों की संरचना हुई और उसका विवाह शिवमंदिर नगर के राजा अनंगसिंह की पुत्री रत्नवती के साथ हुआ। अनन्य प्रीतिभाव को जीते हुए चित्रगति और रत्नवती ने श्रावक धर्म धारण किया। कालक्रम से चित्रगति ने राजपद का उपभोग किया और अंतिम वय में रत्नवती सहित उसने जिनदीक्षा ग्रहण की। विशद्ध चारित्र की आराधना करते हुए वे दोनों महेन्द्रकल्प देवलोक में देव पद के अधिकारी बने। प्रलम्ब काल तक उन्होंने स्वर्गीय सुखों का उपभोग किया। देवभव से पांचवें भव में वे दोनों क्रमशः अरिष्टनेमि और राजीमती के रूप में जन्मे। अरिष्टनेमि जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर थे। चित्रलेखा कनकावती नगर की राजकुमारी और वच्छराज की परिणीता। (देखिए-हंसराज) चित्रश्रेणी कलिंग देश के वसन्तपुर नगर का पितृभक्त, सद्गुणी और सुरूप राजकुमार। ... 176 .. ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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