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________________ तैयार किया, जिसमें लिखा कि उक्त युवक के साथ शीघ्र ही तिलोत्तमा का पाणिग्रहण कर दिया जाए ! ___आखिर वैसा ही हुआ। वृद्धदत्त के भाई साधुदत्त ने भाई का पत्र पढ़कर शीघ्रातिशीघ्र अपनी भतीजी तिलोत्तमा का विवाह चंपक के साथ सम्पन्न कर दिया। चंपक तिलोत्तमा के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगा। सेठ गांव से लौटा तो वस्तुस्थिति से परिचित बनकर सिर धुनकर रोने लगा। पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह विषमिश्रित आहार देकर चंपक को मार्ग से हटा दे। परन्तु तिलोत्तमा ने अपने माता-पिता की कोई चाल सफल न होने दी। सेठ ने कुछ पहलवान चंपक की हत्या के लिए नियुक्त कर दिए। परन्तु एक दिन चारपाई पर सेठ को सोते देखकर उसे चंपक समझकर पहलवानों ने मार डाला। षड्यन्त्रकारी स्वयं अपने ही षड्यन्त्र का शिकार होकर काल-गाल में समा गया। ___ चंपक तिलोत्तमा के साथ रहकर वृद्धदत्त की अकूत सम्पत्ति का उपभोग करने लगा। परन्तु वह केवल उपभोग ही नहीं करता था, दान और पुण्य में भी प्रभूत धन अर्पित करता था। पिछले जन्म में किए गए दान के फलस्वरूप उसे वर्तमान जन्म में अपार संपदा मिली थी। इस सत्य का उसे भलीभांति ज्ञान था। वर्तमान जन्म में भी उसने दया-दान के फलस्वरूप महान पुण्यों का संचय किया। आयुष्य पूर्ण कर वह देवगति में गया। देव गति से च्यव कर मानव जन्म पाकर वह मोक्ष जाएगा। -सोमसुन्दर सूरि (15वीं शती) चंपतराय जैन (बैरिस्टर) विगत सदी के पूर्वार्ध के एक जैन वकील, जिन्होंने जैनधर्म और जैन संस्थाओं के विकास के लिए अनेक रचनात्मक कार्य किए। ___ आपके पिता श्री चन्द्रमल जी देहली में कूचा परमानन्द में रहते थे। आपके माता-पिता जिनोपासक थे और जैनधर्म तथा जैन नियमोपनियमों पर उनकी दृढ़ आस्था थी। आपके पिता जी ने आजीवन दही का परित्याग कर दिया था। एक बार वे रुग्ण हुए और डॉक्टर ने उन्हें दही खाने के लिए कहा। उन्होंने डॉक्टर से कहा, मुझे रुग्णावस्था में ही मृत्यु स्वीकार है, पर अपने त्याग को खण्डित करना स्वीकार नहीं। चंपतराय के जीवन में भी माता-पिता के धार्मिक संस्कार यथारूप प्रकट हुए। बचपन में ही आप अपने वंशज सोहनलाल बांकेलाल के यहां गोद चले गए। वे बहुत धनी और धर्मात्मा थे। उन्होंने आपकी शिक्षा का उच्चस्तरीय प्रबन्ध किया। सेंट स्टीफन कालेज की पढ़ाई की पूर्णता पर बैरिस्टरी पढ़ने के लिए आपको इंग्लैंड भेजा गया। 1897 में बैरिस्टरी की पढ़ाई पूर्ण कर आप स्वदेश लौट आए। आयु के साथ-साथ जैन धर्म के संस्कार भी आप में परिपक्व होते गए। आपने झूठे मुकदमे न लेने का प्रण किया था। अदालत में आपने सदैव सत्य को सत्य कहा और असत्य को परास्त किया। आपने अपनी बुद्धिमत्ता से कई लोगों को फांसी के फन्दे से भी बचाया था। जैन जगत और भारतीय समाज में आपका काफी यश और सम्मान था। ___ आप कुछ समय तक (1922 में) लखनऊ दिगम्बर जैन महासभा अधिवेशन के अध्यक्ष भी रहे। बाद में आपने दिगम्बर जैन परिषद् का गठन किया। जैन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर के विकास और संरक्षण में आपने काफी योगदान दिया और अपनी आवाज लंदन प्रिवी कौंसिल तक पहुंचाई। लंदन में ही आपने ऋषभ जैन लायब्रेरी की स्थापना भी की। आपने 'जैन लॉ' का निर्माण कराया और देश-विदेश में जैन धर्म पर आपने कई बार भाषण दिया। जैन पुरातात्विक खोज और जैन साहित्य के विकास में भी आपका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। ... जैन चरित्र कोश ... - 173 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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