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________________ कर सकता। पति-पत्नी के मध्य एक लम्बा विवाद चला। आखिर हार्दिक आघात अनुभव करता हुआ सेठ अपनी शैया पर जा गिरा। गुणसागर उदासमना सुशीला के घर पहुंचा और चेटक की मृत्यु का समाचार उसे सुनाया। सुनकर सुशीला भी खिन्नमना बन गई। कुछ देर वार्तालाप के बाद सुशीला ने गुणसागर से भोजन करने के लिए कहा। गुणसागर ने भोजन करने से इन्कार कर दिया और कहा कि उसका मन भारी है तथा उसे भूख भी नहीं है। पर सुशीला के बार-बार के आग्रह पर गुणसागर को भोजन का प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा। गुणसागर ने कहा, वह अपने जीजा जी के साथ भोजन करेगा, उन्हें भी बुला लो। सुशीला पति को बुलाने कक्ष में गई तो देखकर सन्न रह गई कि सेठ का अवसान हो चुका है। उसके कण्ठ से चीख फूट पड़ी। गृह वातावरण एकाएक बदल गया। भारी मन से गुणसागर ने सेठ का संस्कार किया और उसे सुशीला की प्रार्थना पर चम्पा में रहकर ही सेठ का व्यवसाय संभालना पड़ा। वस्तुतः उस समय सुशीला सगर्भा थी और चाहती थी कि जब तक वह पुत्रवती बने, तब तक गुणसागर उस के घर को संभाले। नौ मास व्यतीत होने पर सुशीला ने एक सुन्दर सलोने पुत्र को जन्म दिया। उधर उसी दिन चेटक श्वपाक की पत्नी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। सुशीला के पुत्र ने जन्म लेते ही गुणसागर को 'मामा' शब्द से सम्बोधित करते हुए कहा, चेटक की पत्नी अपने नवजात शिशु को मार डालना चाहती है, ऐसा वह अभावग्रस्त होने के कारण कर रही है, आप तत्काल वहां जाएं और अन्न-वस्त्रादि से श्वपाकी को सन्तुष्ट कर उस नवजात शिशु की रक्षा करें! ये शब्द बोलकर सुशीला का नवजात शिशु शैशव भाव में स्थिर हो गया। यह आश्चर्यजनक था, पर उस समय ज्यादा चिन्तन करने का अवकाश गुणसागर के पास नहीं था। वह अन्न, धन, वस्त्रादि अपने साथ लेकर श्वपाकी के घर पहुंचा! वह सामग्री श्वपाकी को देकर उसने नवजात शिशु के प्राणों की रक्षा की। साथ ही उसने श्वपाकी को विश्वस्त किया कि उसे जिस वस्तु की भी आवश्यकता हो, वह निःसंकोच उससे प्राप्त कर सकती है। सुसंयोग से उन्हीं दिनों आचार्य सुमतिसागर चम्पानगरी में पधारे। यह सुसंवाद जानकर गुणसागर का तन-मन प्रफुल्लित हो गया। वह दर्शनार्थ आचार्य श्री के पास गया। उसने आचार्य श्री से निवेदन किया, भगवन् ! उसने कई विचित्रताएं तो देखीं, पर उसका अपना प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है। आचार्य श्री ने फरमाया, गुणसागर! तुम्हें समाधान तो प्राप्त हो चुका है, पर तुम समझ नहीं पाए हो! सुनो! चेटक श्वपाक सत्कर्मों की पूंजी का अर्जन कर मृत्यु को प्राप्त हो सुशीला के गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ है। यहां उसे बिना प्रयास किए ही विशाल सम्पत्ति का स्वामित्व प्राप्त हुआ है। उधर सेठ जी बिना पुण्य कमाए चल बसे एवं श्वपाकी के गर्भ से पुत्ररूप में जन्मे। यहां पर वह श्वपाक पुत्र घोर दारिद्र्य से जीवन जीएगा। गुणसागर! मनुष्य को जो सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, वह उसके पूर्वजन्म के पुण्यों का ही फल होता है। 'बासी भोजन' की पहेली का यही गूढार्थ है कि तुम अपने पूर्वजन्म के पुण्यों का फल यहां पा रहे हो। यहां सत्कर्म करोगे तो पुण्यों का अर्जन होगा और उनके फलस्वरूप तुम्हें भविष्य में भी सुख प्राप्त होंगे। दान, पुण्य, धर्माचरण आदि ताजा भोजन है, जो प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। - गुणसागर को समाधान प्राप्त हो चुका था। वह सुशीला की अनुमति प्राप्त कर अपने नगर पहुंचा। मातृदर्शन से उसका हृत्कमल खिल उठा। वह दान-पुण्य में पूरे भाव से समर्पित हो गया। एक श्रेष्ठ जीवन जीकर वह सद्गति का अधिकारी बना। ... 148 .. ...जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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