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________________ श्री से पूछा। आचार्य श्री ने कहा, वत्स! तुम्हारी माता का कथन सत्य है, तुम बासी भोजन ही कर रहे हो! पर इस कथन का रहस्य-सूत्र तुम्हें चम्पापुर नगरी के रहने वाले श्वपाक पुत्र चेटक से प्राप्त होगा! ___ आचार्य श्री को प्रणाम कर गुणसागर घर पहुंचा और उसने अपनी मां को आचार्य श्री के मार्गदर्शन के बारे में बताया। माता ने पुत्र को सहर्ष चम्पा जाने की अनुमति दे दी। कई दिनों की यात्रा के पश्चात् गुणसागर चम्पानगरी पहुंचा। खोज-खबर करता हुआ वह श्वपाक (भंगी) चेटक के द्वार पर पहुंच गया। चेटक ने गुणसागर का भावभीना स्वागत किया और आने का कारण पूछा। गुणसागर ने अथान्त आत्मकथा चेटक के समक्ष कह दी। चेटक यह जानकर अति प्रसन्न हुआ कि गुणसागर भी जिनोपासक है। उसने कहा, युवक! हम दोनों जिनोपासक हैं, अतः नियमतः हम सहधर्मी भाई हुए। ऐसे में मेरा प्राथमिक कर्त्तव्य यह है कि मैं सर्वप्रथम आपको भोजन कराऊं। गुणसागर श्वपाक के घर में भोजन करने से झिझका। उसने कहा, भाई! मुझे आपके घर में भोजन करने पर कोई आपत्ति नहीं है पर सामाजिक व्यवस्थाओं के अनुरूप मुझे संकोच अनुभव हो रहा है। चेटक ने गुणसागर की हृदय दशा को समझा और कहा, मैं आपके भोजन की व्यवस्था किसी श्रेष्ठी के गृह में कर देता हूं। पहले आप भोजन करें, उसके बाद आपके प्रश्न का समाधान करूंगा। इससे गुणसागर सहमत हो गया। चेटक उसे साथ लेकर एक श्रेष्ठी की दुकान पर पहुंचा और श्रेष्ठी को चार रुपए देकर कहा कि वह उसके अतिथि को भोजन करा दे। श्रेष्ठी उत्कृष्ट कोटि का लोभी था। उसने तत्क्षण चार रुपए मुट्ठी में दबा लिए और वचन दिया कि वह अतिथि को भोजन करा देगा। गुणसागर को वहां छोड़कर चेटक अपने घर के लिए रवाना हो गया। उधर दुकान पर ग्राहक कम हो गए तो श्रेष्ठी गुणसागर को साथ लेकर अपने घर गया। अपनी पत्नी सुशीला को उसने निर्देश दिया कि वह अतिथि को रूखा-सूखा भोजन करा दे। गुणसागर को घर पर छोड़कर श्रेष्ठी पुनः दुकान पर लौट गया। सुशीला वस्तुतः सुशीला ही थी, पर लोभी पति ने अपने आदेशों से उसे ऐसा जकड़ दिया था कि वह चाहकर भी दान-पुण्य नहीं कर पाती थी। उसने गुणसागर का परिचय पूछा। गुणसागर ने अपना परिचय दिया तो सुशीला का हृदय खिल गया। बोली, तुम तो मेरे काका के पुत्र हो! मैं भी उज्जयिनी की हूं और हम दोनों के पिता भाई थे। भाई-बहन का मिलन हुआ। दोनों बड़े प्रसन्न हुए। सुशीला ने गुणसागर को अपने पति की अतिशय लोभ-प्रवृत्ति का परिचय दिया और बताया कि वे पैसे को ही परमात्मा मानते हैं। भाई-बहन के मध्य लम्बा वार्तालाप चला। गुणसागर ने चम्पा आने का अपना मन्तव्य सुशीला को बताया। सुशीला ने सान्ध्यकालीन भोजन का आग्रह गुणसागर से किया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया। तब गुणसागर बहन की अनुमति प्राप्त कर चेटक के घर की ओर चल दिया। उधर चेटक गुणसागर को श्रेष्ठी के पास छोड़कर अपने घर पहुंचा। घर पहुंचते-पहुंचते वह अस्वस्थ हो गया और क्षणों में ही परलोक सिधार गया। गुणसागर चेटक के घर पहुंचा तो वहां की दशा देखकर वह सन्न रह गया। मानव जीवन की अस्थिरता उसके समक्ष थी। चेटक की धर्मप्रियता, मधुर व्यवहार और सज्जनता को स्मरण कर गुणसागर का हृदय भर आया। संस्कार क्रिया उसने सम्पन्न कराई। उसके बाद वह सुशीला के घर की ओर चल दिया। उसे चेटक की मृत्यु पर तो खेद था ही, साथ ही इस बात का भी उसे कष्ट था कि उसे समाधान प्राप्त नहीं हुआ। : संध्या समय श्रेष्ठी घर पहुंचा तो सुशीला ने उसको गुणसागर का परिचय दिया और कहा कि उसने असे सांध्य भोजन पर आमंत्रित किया है। सुशीला ने कहा, वह मेरा भाई है, मैं उसे उत्तम भोजन कराऊंगी। उसके लिए घेवर बनाऊंगी। सेठ ने सुना तो भड़क उठा। उसने कहा, धन का ऐसा अपव्यय मैं सहन नहीं जैन चरित्र कोश ... --- 147 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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