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________________ गुणचन्द्र (देखिए-मेतार्य मुनि) गुणदत्त मुनि वचनगुप्ति के उत्कृष्ट आराधक एक मुनि। किसी समय मुनि गुणदत्त विहार यात्रा में थे। मार्ग में उन्हें चोरों का एक दल मिला। चोरों ने मुनि से कहा, आप हमारे बारे में किसी को सूचना न दें! मौन भाव से मुनिवर आगे बढ़ गए। मार्ग में कुछ आगे मुनि को अपने परिजन मिले। मुनि ने उनको धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर परिजन अपने गन्तव्य पर बढ़े। मार्ग में उन्हीं चोरों ने उनको लूट लिया। चोर परस्पर कहने लगे कि मुनि ने हमारी सूचना इन्हें नहीं दी, अन्यथा ये इधर नहीं आते। चोरों की बात सुनकर मुनि की माता बोली, मेरी कोख से ऐसा पैदा हुआ, जिसने मुझे ही लुटवा दिया। चोरों ने सुना और जाना कि यह मुनि की माता है। जिसने ऐसे सुव्रती पुत्र को जन्म दिया, वह माता भी वन्दनीय है, ऐसा सोचकर चोरों ने उस परिवार का लूटा हुआ धन लौटा दिया और संत की माता को प्रणाम किया। माता ने अनुभव किया कि उसने एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया है, जिसने उपदेश दिए बिना ही चोरों के हृदय बदल दिए। -उत्त. वृत्ति गुणधर (आचार्य) ____दिगम्बर परम्परा के एक प्रभावशाली आचार्य, जिनका समय वी.नि. की चतुर्थ शताब्दी का उत्तरार्ध अनुमानित है। आचार्य गुणधर ने 'कषाय पाहुइ सुत्त' नामक उत्तम ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा में कर्मविज्ञान सम्बन्धी प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। आचार्य गुणधर एक प्रभावशाली आचार्य थे। उनके नाम पर 'गुणधर संघ' की स्थापना हुई थी। गुणभद्र (आचार्य) एक गुणनिधान जैनाचार्य । आचार्य गुणभद्र के गुरु आचार्य जिनसेन थे। अपने गुरु के समान ही आचार्य गुणभद्र प्रख्यात विद्वान और यशस्वी आचार्य थे। गुरु के प्रति अगाध आस्था उनके हृदय में थी जिसका दर्शन उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में होता है। उत्तर पुराण, आत्मानुशासन और जिनदत्त चरित्र उनके द्वारा रचित उच्चकोटि के ग्रन्थ हैं। उनका समय वी.नि. की 15वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है। -उत्तर पुराण प्रशस्ति गुणपाल (दामिया सेठ) वसन्तपुर नगर से चार योजन की दूरी पर बसे एक अनार्य गांव में रहने वाला सद्गृहस्थ । पूरे गांव में वह अकेला व्यक्ति (उसका परिवार-वह स्वयं और उसकी पत्नी) ही ऐसा था, जिसका खान-पान और व्यवहार शुद्ध और सात्विक था। संयोग से उस गांव से होकर आचार्य धर्मघोष और उनके शिष्य वसंतपुर नगर की ओर वर्षावास हेतु जा रहे थे। गांव में पहुंचते ही वर्षा प्रारंभ हो गई। कई दिनों तक वर्षा निरंतर होती रही। मार्ग अवरुद्ध हो गए। बाध्य होकर मुनिद्वय को उस ग्राम में ही वर्षावास हेतु रुकना पड़ा। गुणपाल श्रेष्ठी ने मुनिसेवा का चढ़ते भावों से भरपूर लाभ लिया। मुनिद्वय भी ग्राम की स्थिति को पहचान कर कई-कई दिनों तक उपवासी रहते। गुणपाल के आग्रह पर उसके घर भिक्षा को जाते। वह निर्दोष आहार मुनियों को बहराता पत्नी सहित स्वयं उपवास ग्रहण कर लेता। उसकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर थी। चार मास तक उसने और उसकी पत्नी ने मुनिद्वय के पारणे के दिन उपवास किए। उसकी श्रद्धा और धर्मनिष्ठा देखकर ... जैन चरित्र कोश ... - 143 -
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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