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________________ कि उदायन अपना राज्य वापिस न मांग लें, उन्हें भोजन में विष दे दिया। केशी एक स्वार्थी और कानों का कच्चा राजा था। केशी कुमार श्रमण तेईसवें अरिहंत प्रभु पार्श्व की परम्परा के प्रभावक और तेजस्वी आचार्य। किसी समय वे अपने विशाल शिष्य परिवार सहित श्रावस्ती नगरी के तिन्दुकवन नामक उद्यान में पधारे। उधर भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम भी अपने अनेक शिष्यों के साथ उसी नगरी के कोष्ठक उद्यान में विराजे। दोनों के शिष्यों ने भिक्षादि के लिए नगर में परिभ्रमण करते हुए एक-दूसरे को देखा। वेश-वैभिन्न्य को देखकर दोनों ओर के शिष्यों के मनों में जिज्ञासाएं वर्धमान हुईं कि एक ही लक्ष्य की साधना में रत दो गुरुओं के शिष्यों के वेशों में भिन्नता क्यों? इन्द्रभूति गौतम ने शिष्य-मनों को पढ़ा और वे अपने शिष्यों के साथ केशीकुमार श्रमण के पास तिन्दुकवन में गए। दो महामुनियों का प्रेम-पूर्वक मिलन हुआ। केशीकुमार श्रमण ने वेश-वैभिन्य, महाव्रतों की न्यनाधिकता आदि से सम्बन्धित बारह प्रश्न इन्द्रभूति से पूछे। इन्द्रभूति ने सम्यक समाधान दिए, जिन्हें सुनकर दोनों ओर के शिष्य समाधीत हो गए। केशी कुमार श्रमण ने अपने शिष्य-समुदाय के साथ चातुर्याम धर्म से पंच महाव्रत रूप धर्म में प्रवेश किया। अन्त में केवलज्ञान पाया और निर्वाण को प्राप्त हुए। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 23 कैलाश गाथापति साकेत नगर के एक समृद्ध गाथापति। इन्होंने भगवान महावीर के उपदेश से प्रतिबुद्ध बनकर दीक्षा ली तथा बारह वर्षों तक विशुद्ध संयम की आराधना करने के पश्चात् विपुलाचल से सिद्ध गति पाई। -अन्तगड सूत्र वर्ग 6, अध्ययन 7 कोणिक राजा ___ कोणिक अपने युग का एक पराक्रमी राजा था। उसने अपने जीवन काल में अनेक छोटे-बड़े युद्ध लड़े और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। अति महत्वाकांक्षा उसके जीवन का सबसे बड़ा दुर्गुण और भगवान महावीर का भक्त होना उसका सबसे बड़ा गुण था। उसकी परिचय रेखाएं निम्न हैं कोणिक मगध देश के महाराज श्रेणिक का पुत्र था। उसकी माता का नाम चेलना था। कोणिक का जीव जब चेलना के गर्भ में आया तो परमपतिपरायणा चेलना का मानस अपने ही पति के प्रति वैर भाव से पूर्ण बन गया। गर्भकाल में नारी के भीतर उत्पन्न होने वाली प्रबलेच्छा को दोहद कहा जाता है। एक क्रूर दोहद चेलना के मन पर छा गया। उसका वह दोहद था कि वह अपने पति के कलेजे का मांस खाए। चेलना जानती थी कि उसके गर्भ में अवतरित हुआ जीव उसके पति का दुश्मन है। पर उस गर्भस्थ शिशु की इच्छा में वह इतनी बन्ध गई कि पति के कलेजे का मांस न मिलने के कारण अत्यन्त कृश हो गई। श्रेणिक ने अनुमान लगा लिया कि उसकी रानी दोहद से संक्रमित है। उसने रानी से पुनः पुनः पूछा। आखिर चेलना ने अपने दुष्ट दोहद की बात पति को बता दी। मामला अत्यन्त जटिल था। आखिर एक युक्ति निकालकर अभयकुमार ने इस समस्या का समाधान कर दिया। उससे राजा का भी अहित नहीं हुआ और रानी का दोहद भी पूर्ण हो गया। यह सब तो हो गया पर चेलना अपने पैदा होने वाले पुत्र के प्रति विशेष सजग बन गई। और जब उसने प्रसव किया तो निर्धारित योजनानुसार उस नवजात शिशु को उकुरड़ी पर फिंकवा दिया गया। पर संयोग बना कि उधर दासी नवजात राजकुमार को उकुरड़ी पर फेंक कर आ रही थी और इधर ... 120 ... .. जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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