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________________ की पोटली में बांध दिए थे। प्रत्येक मोदक में एक-एक जलकान्त मणि थी। कृतपुण्य घर गया। आखिर जलकान्त मणि ही कृतपुण्य के भाग्योदय का कारण सिद्ध हुई। उसी के कारण वह महाराज श्रेणिक का दामाद बना। अभयकुमार के सहयोग से उसने चारों पत्नियों को खोज निकाला। देवदत्ता भी निंद्य कर्म का परित्याग कर कृतपुण्य के पास आ गई। वह सौ गांवों का स्वामी भी बन गया। सात पत्नियों के साथ वह सुखपूर्वक रहने लगा। ___ एक बार भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। कृतपुण्य पत्नियों और पुत्रों के साथ भगवान के दर्शनों के लिए गया। कृतपुण्य ने भगवान से अपनी समृद्धि का मूल कारण पूछा। भगवान ने उसका पूर्वभव सुनाया और स्पष्ट किया कि वह सब सुपात्रदान का फल है। उसने एक मुनि को चढ़ते भावों के साथ खीर का दान दिया था। उसी पुण्य के फलस्वरूप स्वतः ही स्थितियां कृतपुण्य के अनुकूल होती रहीं और बिना श्रम से ही उसे अकूत लक्ष्मी और अन्य साधन सामग्री मिली। __अपनी पत्नियों के साथ कृतपुण्य प्रभु के पास दीक्षित हुआ और सुगति का अधिकारी बना। कृतवर्मा कपिलपुर के प्रतापी नरेश और तेरहवें अरिहंत श्री विमलनाथ भगवान के जनक। (देखिए-विमलनाथ तीर्थंकर) कृपाचार्य कुरु राज परिवार के कुलगुरु और एक विद्वान तथा बलवान आचार्य । धृतराष्ट्र और पाण्डु के पुत्रों की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा उनके सान्निध्य में हुई थी। उन्हें हस्तिनापुर राज्यसभा में उच्चासन प्राप्त था। वे शस्त्रास्त्र विद्या में भी निपुण थे और महाभारत के युद्ध में भी दुर्योधन के पक्ष में उन्होंने युद्ध किया था। -देखिए-जैन महाभारत कृष्ण वासुदेव ___जैन मान्यता के अनुसार एक प्रबल पराक्रमी पुरुष, त्रिखण्डाधिपति और नवम् वासुदेव। वैदिक मान्यतानुसार विष्णु के पूर्णावतार, मानव रूप में परब्रह्म परमेश्वर। जैन और वैदिक, दोनों परम्पराओं के ग्रंथों में श्रीकृष्ण का चरित्र पर्याप्त समानताओं और असमानताओं के साथ चित्रित हुआ है। जैन पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण का चरित्र यों है श्रीकृष्ण, वसुदेव और देवकी के पुत्र थे। उनका जन्म उनके मामा कंस के कारावास में हुआ था। वसुदेव जब देवकी से विवाह रचाने मथुरा गए तब उनके विवाह की प्रसन्नता में कंस की रानी जीवयशा, जो प्रतिवासुदेव जरासंध की पुत्री थी, मद्यपान करके नाच रही थी। उसी समय कंस के लघुभ्राता अतिमुक्तक, जो कई वर्ष पहले ही मुनि बन गए थे, भिक्षा के लिए जीवयशा के महल में आए। मद्य से मत्त बनी जीवयशा ने देवर मुनि से उपहास शुरू कर दिया। क्षुब्ध होकर मुनि ने कह दिया-जिस देवकी के विवाह की खुशी में तुम इतनी अविवेकी हो रही हो, उसी की सातवीं संतान तुम्हारे वैधव्य का कारण बनेगी! ___मुनि की बात सुनकर जीवयशा का नशा उतर गया। कंस को भी मुनि की भविष्यवाणी की बात ज्ञात हुई। उसने छल से वसुदेव और देवकी को कारावास में डाल दिया और प्रतिज्ञा की कि वह उनकी समस्त संतानों को जन्म लेते ही मार डालेगा। कालक्रम से देवकी ने एक-एक कर छह पुत्रों को जन्म दिया। हरिणगमेषी देव ने देवकी के पुत्रों को ... 114 .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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