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________________ (ख) कलावती देवशाल नगर के महाराज विजयसेन और महारानी श्रीमती की पुत्री तथा शंखपुर के राजा शंख की रानी। कलावती अद्भुत लावण्य की स्वामिनी थी। महाराज शंख का उस पर अनन्य प्रेमभाव था। उससे विवाह करने के लिए शंख ने सरस्वती की आराधना कर उसका आशीष प्राप्त किया था। क्योंकि कलावती की यह शर्त थी कि वह उसी पुरुष से विवाह करेगी, जो उसके चार प्रश्नों के उत्तर दे देगा। ____एक बार कलावती का भाई उसके पास आया और उसने उसे सोने के दो अतिसुन्दर कंगन दिए। रानी हर्षित होकर अपनी दासी को अपने भाई के प्रति उसके प्रेम के बारे में बता रही थी। यह प्रेमालाप की बात अचानक उधर आ गए महाराज के कानों में पड़ी। बिना यह जाने कि रानी किस से प्रेम करती है, राजा ने सशंकित बनकर चाण्डालियों को आदेश दिया कि वे उसके हाथ काटकर उसे जंगलों में धकेल आएं। वैसा ही किया गया। कलावती ने इसे अपने दुष्कर्मों का फल माना। रानी गर्भवती थी। एक नदी के किनारे उसने एक शिशु को जन्म दिया। पर कलावती के पास हाथ तो थे नहीं, जिनसे वह शिशु को उठाती। मां और नवजात शिशु की अवस्था पर नदी की देवी को करुणा आई और उसने कलावती को दो हाथ लगा दिए। बाद में शंख को जब यह ज्ञात हुआ कि कंगण कलावती के भाई ने ही उसे भेंट किए हैं तो उसे अपने कृत्य पर सघन पश्चात्ताप हुआ। उसने अपने सैनिक कलावती की खोज में दौड़ाए। अंततः कलावती को खोज लिया गया। राजा ने पश्चात्तापपूर्वक रानी से क्षमा मांगी। किसी समय एक ज्ञानी मुनि से राजा ने पूछा कि निरपराधिनी कलावती के हाथ मैंने क्यों कटवाए? वह किस जन्म के कर्मों का उदय था? ज्ञानी मुनि ने बताया, कलावती पिछले जन्म में महेन्द्रपुरनरेश नरविक्रम की पुत्री सुलोचना थी और तुम एक तोते की योनि में थे। सुलोचना ने तोते को बड़े प्रेम से पाला था। वह हर समय तोते को अपने पास रखती थी। एक बार जब वह मुनिदर्शन को गई तो मुनि का व्याख्यान सुनकर तोते को जातिस्मरण ज्ञान हो गया और उसने जान लिया कि पूर्वजन्म में संयम की विराधना करने से उसे तोते की योनि मिली है। तोते ने मन में प्रण कर लिया कि वह भविष्य में मुनिदर्शन करके ही अन्न-जल ग्रहण किया करेगा। बहुत दिनों तक उसका यह क्रम चलता रहा। एक बार वह कई दिनों तक वापिस नहीं आया। सुलोचना को यह बहुत बुरा लगा। जब तोता वापिस आया तो उसने उसके पंख काट दिए ताकि वह उड़ न सके। ज्ञानी मुनि ने कहा, राजन्! तोते के पंख काट देने के कारण ही सुलोचना से कलावती बनी तुम्हारी रानी के हाथ काटे गए। कर्म की विचित्रता सुनकर राजा और रानी प्रतिबुद्ध हो गए। उन्होंने संयम धारण कर स्वर्ग गति प्राप्त की। ग्यारहवें भव में वे निर्वाण को उपलब्ध होंगे। -पुहवीचंद चरियं कल्पक प्रथम नन्द का एक बुद्धिमान अमात्य, जो जन्मना ब्राह्मण और जैन धर्म का अनुयायी था। अपनी दूरदर्शिता और कुशल नीतियों से उसने नन्द साम्राज्य की जड़ों को मगध में सुदृढ़ बनाया था। उसका कार्यकाल आचार्य शय्यंभव के शासनकाल में होना अनुमानित है। . -परिशिष्ट पर्व सर्ग-7 कांपिल्य इनका पूरा परिचय गौतम कुमार के समान है। (देखिए-गौतम कुमार) -अन्तगड सूत्र प्रथम वर्ग, सप्तम अध्ययन ...जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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