SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिया था। कर्मरक्षित जब कलाचार्य के पास विद्याध्ययन कर रहा था तो नगर-नरेश जितशत्रु की पुत्री राजकुमारी भाविनी भी उसकी सहपाठिका थी। एक बार कर्मरक्षित अपने सहपाठियों को कर्मसिद्धान्त की पुष्टि करने वाला एक श्लोक सुना रहा था। श्लोक का वाक्यांश “चलतीयं भाविनी कमरेखा" को सुनकर राजकुमारी भ्रमित बन गई। उसने इसे अपना अपमान माना और काष्ठपट्टिका कर्मरक्षित के सिर पर दे मारी। इसी से वह संतुष्ट नहीं हुई। उसने अपने पिता से हठ करके कर्मरक्षित को कठोर सजा भी दिलाई। राजा के सिपाहियों ने कर्मरक्षित की कोड़ों से पिटाई की और मृत मानकर उसे श्मशान में फेंक दिया। कर्मरक्षित कर्मों से रक्षित था, अतः जीवित बच गया। निकट ग्राम के एक ब्राह्मण ने कर्मरक्षित को सेवा-शुश्रूषा और औषधोपचार से कुछ ही दिनों में स्वस्थ बना दिया। ब्राह्मण ज्योतिष शास्त्र का पारगामी पण्डित था। उसने कर्मरक्षित की हस्तरेखाओं का अध्ययन कर घोषणा की कि वह निकट भविष्य में राजा बनेगा। कर्मरक्षित स्वस्थ होने पर उपकारी ब्राह्मण की अनुमति लेकर यत्र-तत्र भ्रमण करता हुआ कंचनपुर नगर में पहुंचा। वहां एक शुष्क उद्यान में ठहरा । ब्राह्मण ने कर्मरक्षित को विदा देते हुए एक पोटली में कुछ लड्डू बांधकर पाथेय के रूप में दिए थे। कर्मरक्षित क्षुधा-शान्ति के लिए लड्डूओं का आहार करने बैठा तो उधर से एक मासोपवासी मुनि गुजरे। अत्युच्च भावों से भरे हृदय से कर्मरक्षित ने मुनि को आहार प्रदान कर महान शुभ कर्मों का अर्जन किया। रात्रि में कर्मरक्षित ने उसी उद्यान में विश्राम किया। उसके पुण्य प्रभाव से शष्क उद्यान हरा-भरा हो गया। यह उद्यान नगर सेठ यशोधर का था। दूसरे दिन उद्यान के हरे-भरे हो जाने की सूचना पाकर यशोधर उद्यान में आया। वह कर्मरक्षित को अपने घर ले गया और अपनी रूप-गुण सम्पन्न पुत्री कनकमंजरी का विवाह कर्मरक्षित से कर दिया। कर्मरक्षित कुछ समय तक कंचनपुर में रहा। एक बार उसने एक कलाकार को श्वसुर प्रदत्त अढ़ाई लाख मूल्य के कड़े इनाम में दिए। इस पर श्वसुर ने खीझकर कटूक्ति की। कर्मरक्षित को श्वसुर की कटूक्ति चुभ गई और वह रात्रि में ही घर से प्रस्थित हो गया। वह जावा नगर में पहुंचा, जहां उसका पुण्य पूरे वेग से भास्वरमान हो उठा। निःसंतान जावापति के निधन पर पंच दिव्यों ने कर्मरक्षित को जावानरेश के रूप में चुना। जावा की राजपुत्री गुणसुन्दरी का पाणिग्रहण भी कर्मरक्षित के साथ सम्पन्न हुआ। जावापति कर्मरक्षित ने अपनी प्रथम पत्नी को भी जावा बुला लिया। कर्मरक्षित के कुशल शासन से जावा में रामराज्य स्थापित हो गया। कर्म रेखाएं अटल होती हैं और भवितव्यता होकर ही रहती है। वसंतपुर नरेश ने अपनी पुत्री भाविनी के विवाह के लिए अनेक देशों के राजाओं के चित्र मंगवाए। भवितव्यतावश जावापति कर्मरक्षित ही उन्हें सर्वोत्तम वर जंचा और अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। कर्मरक्षित के अतिरिक्त भवितव्यता की इस पदचाप को कोई नहीं पहचान पाया। आखिर एक दिन एक छोटे से घटनाक्रम के संदर्भ में भेद स्पष्ट हुआ। भाविनी पश्चात्ताप के अतल में डूब गई। पश्चात्ताप से उसके पूर्वकृत कर्म हल्के हो गए। कर्मरक्षित ने अपने माता-पिता और उपकारी ब्राह्मण को अपने पास बुलाकर उनकी सेवा से अपने जीवन को धन्य किया। सुदीर्घ काल तक सुशासन कर जीवन के उत्तरार्ध भाग में उसने प्रव्रज्या धारण की और उत्तम गति प्राप्त की। -उपदेश प्रासाद, भाग 4 कलाद एक स्वर्णकार। पोटिल्ला का पिता और तेतलीपुत्र का श्वसुर। (देखिए-तेतलीपुत्र) (क) कलावती भोगपुर नगर के राजा शजय की पुत्री, एक रूप-गुण सम्पन्न कन्या। (देखिये-पुरन्दर) ...92 .. - जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy