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________________ एक ही किरण है और वह है यह श्रमण । इस श्रमण के कारण ही हमारी रक्षा हो सकती है। उधर जैसे ही नौका गंगा की मध्य धार में पहुंची वैसे ही एकाएक तूफान आ गया। यह तूफान प्रभु के पूर्वजन्म के वैरी सिंह के जीव ने उत्पन्न किया था, जो सुदंष्ट्र नाम का देव बना था। पीपल के पत्ते की भांति नौका कांपने लगी। यात्री चीखने-चिल्लाने लगे। पर भगवान महावीर भय से अतीत ध्यान में निमग्न थे। किसी भी क्षण नौका जल में विलीन हो जाने वाली थी। सहसा कंबल और संबल देवों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। प्रभु के जीवन को संकट में देखकर दोनों देव तत्क्षण वहां पहुंचे। एक ने सुदंष्ट्र देव को मार भगाया तथा दूसरे ने नौका को उठाकर किनारे पर पहुंचा दिया। इस प्रकार भगवान महावीर की अदृष्ट कृपा से सभी यात्रियों के प्राणों की रक्षा हुई। सभी यात्री प्रभु को प्रणाम कर अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। प्रभु भी अपने गन्तव्य की ओर बढ़ गए। कंस ___ मथुरा के राजा उग्रसेन और धारिणी का पुत्र । जब वह मातृगर्भ में आया तो धारिणी को पति के कलेजे का मांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। इसी से धारिणी को विश्वास हो गया कि उसके गर्भ में जो जीव आया है, वह उसके पति का शत्रु है। सो उसने पुत्र को जन्म देते ही उसे कांसी की पेटी में बन्द करके नदी में प्रवाहित कर दिया। शौरीपुर के सेठ सुभद्र ने उस पेटी को निकाला। बालक को देखकर वह अत्यन्त हर्षित हुआ। कांसी की पेटी में होने से उसका नाम कंस रख दिया। बाल्यकाल से ही कंस बड़ा उद्दण्ड था। वह बच्चों को बिच्छुओं से डसवा देता, उन्हें पीड़ा से बिलबिलाता देख कर अति प्रसन्न होता। उसकी उच्छृखलता से परेशान होकर सुभद्र सेठ ने उसे महाराज वसुदेव के पास नौकर रख दिया। महाराज वसुदेव ने कंस को शस्त्र कला में निष्णात बना दिया। किसी समय प्रतिवासुदेव जरासंध के आदेश पर वसुदेव सिंहरथ से युद्ध करने गए। कंस उनके साथ था। युद्ध में कंस का युद्ध कौशल सर चढ़कर बोला। उसने सिंहरथ को बन्दी बना लिया। कंस के शौर्य से प्रसन्न होकर जरासंध ने उससे अपनी पुत्री जीवयशा का विवाह कर दिया। कंस को अपने जन्म का भेद ज्ञात हुआ तो वह क्रोध से भर गया। उसने जरासंध से मथुरा का राज्य कर मोचन में मांग लिया। उसने अपने पिता महाराज उग्रसेन को न केवल पदच्युत किया अपितु उन्हें पिंजरे में डालकर नगरद्वार पर भी लटका दिया। ___ कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह वसुदेव से किया। उसी दौरान जीवयशा द्वारा देवर मुनि अतिमुक्तक से उपहास किया गया। मुनि ने कहा-जिसके विवाह में तुम इतनी उन्मत्त हो, उसकी सातवीं संतान तुम्हारे कुल का नाश करेगी। मुनि की भविष्यवाणी से परिचित हो कंस अति क्रूर बन गया। उसने छल से देवकी और वसुदेव को कारागृह में बन्द करवा दिया। ___ हरिणगमेषी देव देवकी और सुलसा के पुत्रों को बदलता रहा। मृत पुत्रों को प्रस्तर पर पटककर कंस प्रसन्न होता रहा। सातवीं संतान के रूप में देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया। कृष्ण गोकुल में पले बढ़े। उनके पुण्य के कवच को कंस भेद नहीं पाया। उसने कृष्णवध के अनेक निष्फल प्रयत्न किए। आखिर मथुरा की राज्यसभा में ही कृष्ण ने कंस का वध किया। महाराज उग्रसेन और अपने माता-पिता को मुक्त कराया। उग्रसेन को पुनः मथुरा के सिंहासन पर आसीन किया गया। ___ अपने क्रूर कर्मों के कारण कंस मरकर नरक में गया। ... 80 ... - जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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