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________________ अष्टनः असज्ञायाम् अष्टन: - VII. ii. 84 अष्टन अङ्गको विभक्ति परे रहते आकारादेश हो जाता है)। ...अष्टमाभ्याम् -v.iii. 50 देखें - षष्ठाष्टमाभ्याम् v. iii. 50 अष्टानाम् -VII. iii. 74 (शम् इत्यादि) आठ अङ्गों को (श्यन् परे रहते दीर्घ होता अष्टाभ्यः -III. ii. 141 (शमादि) आठ धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमान काल में घिनुण प्रत्यय होता है)। अष्टाभ्यः - VII. 1. 21 आत्त्व किये हुये अष्ट शब्द से उत्तर (जश् और शस् के स्थान में औश् आदेश होता है)। अष्ठीवत् - VIII. II. 12 अष्ठीवत शब्द का निपातन किया जाता है। अस्... -V.ii. 121 देखें-अस्मायाov.ii. 121 असंयोगपूर्वस्य -VI. iv. 83 (धात का अवयव) संयोग पूर्व नहीं है जिस (इवर्ण) के, तदन्त (अनेकाच्) अंग को (अजादि सुप् परे रहते यणादेश, होता है)। . असंयोगपूर्वात् - VI. iv. 107 संयोग पूर्व में नहीं है जिसके, ऐसे (उकारान्त) अङ्ग से उत्तर (भी हि का लुक हो जाता है)। असंयोगात् -I. ii.5 ' असंयोगान्त धातु से परे (अपित लिट् प्रत्यय कित के समान होता है)। असंयोगोपधात् - IV.I.54 (स्वाङ्गवाची उपसर्जन और) असंयोग उपधावाले (अदन्त) प्रातिपदिक से (स्त्रीलिंग में विकल्प सेङीप प्रत्यय होता है)। असखि -I.iv.7 (नदी संज्ञा से अवशिष्ट हस्व इकारान्त उकारान्त शब्दों की घिसंज्ञा होती है), सखि शब्द को छोड़कर। असावा.. -V.1.39 - देखें- असमाचापरिमाणाov.1. 39 असख्यादेः-v.ii. 49 सङ्ख्या आदि में न हो जिसके, ऐसे (सङ्ख्यावाची षष्ठीसमर्थ नकारान्त) प्रातिपदिकों से (परण' अर्थ में विहित डट् प्रत्यय को मट् का आगम होता है)। असङ्ख्यादेः - V.ii. 58 सङ्ख्या आदि में न हो जिनके, ऐसे (षष्ठीसमर्थ सङ्ख्यावाची षष्टि आदि) प्रातिपदिक से (भी पूरण' अर्थ में विहित डट् प्रत्यय क्रो नित्य ही तमट् आगम होता है)। असङ्ख्यापरिमाणाश्यादेः - V.I. 38 सङ्ख्यावाची, परिमाणवाची तथा अश्वादि से भिन्न (षष्ठीसमर्थ गो शब्द तथा दो अच वाले) प्रातिपदिकों से (कारण' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि वह कारण संयोग का उत्पात हो तो)। असज्ञा...-VII. iii. 17 देखें- असंज्ञाशाणयोः VII. 1. 17 असप्क्षायाम् -I.1.33 (पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर शब्दों की जस सम्बन्धी कार्यों में विकल्प से सर्वनाम संज्ञा होती है, यदि) संज्ञाभिन्न (व्यवस्था) गम्यमान हो तो। असज्ञायाम् -III. 1. 112 असंज्ञाविषय में (भृ धातु से क्यप प्रत्यय होता है)। असज्जायाम -III. 1. 180 संज्ञा गम्यमान न हो तो (वि.प्र तथा सम्पूर्वक भू धातु से डु प्रत्यय होता है,वर्तमान काल में)। असज्ञायाम् -IV.II. 106 संज्ञा में वर्तमान न हो तो (दिशावाची शब्द पूर्वपद वाले प्रातिपदिक से शैषिक ब प्रत्यय होता है)। असज्ञायाम् -IV. III. 146 (षष्ठीसमर्थ तिल तथा यव प्रातिपदिकों से) संज्ञा गम्यमान न हो तो (विकार और अवयव अर्थों में मयट् प्रत्यय होता है)। असज्ञायाम् -V.1.24 (विंशति तथा त्रिंशद् प्रातिपदिकों से 'तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में ड्वुन् प्रत्यय होता है),सज्ञाभिन्न विषय में। असज्ञायाम् - V. 1. 28 (अध्यर्द शब्द पूर्व में है जिसके,उससे तथा द्विगुसज्ज्ञक प्रातिपदिक से 'तदर्हति पर्यन्त कथित अर्थों में उत्पन्न प्रत्यय का लुक होता है), सज्जाविषय को छोड़कर।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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